केन्द्र-बिहार की सरकार का सिखों के प्रति उदार रवैया
केन्द्र की मोदी सरकार के बारे में कोई कुछ भी कहे मगर सरकार का सिखों के प्रति रवैया अन्य सरकारों से हटकर रहा है इसका मुख्य कारण यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सिख इतिहास की भलिभांति जानकारी है और वह समझते हैं कि सिख गुरु साहिबान द्वारा दी गई शहादतों के कारण ही आज देश का अस्तित्व कायम है। प्रधानमंत्री जहां सिख गुरु साहिबान को सम्मान देते हैं वहीं सिख मसलों को भी संजीदगी से हल करने के इच्छुक रहते हैं। करतारपुर साहिब कॉरिडोर, साहिबजादों की शहादत की गाथा देशवासियों को बताने हेतु वीर बाल दिवस उनके नाम से मनाना, अफगानिस्तान, पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को सीएए के तहत भारतीय नागरिकता देना सहित अनेक ऐसे कार्य हैं जो मोदी सरकार के कार्यकाल में हुए हैं। बीते दिनों प्रधानमंत्री जब गुरु गोबिन्द सिंह जी के जन्मस्थली, सिखों के दूसरे तख्त पटना साहिब में नतमस्तक होने पहुंचे तो उन्होंने देखा कि तख्त साहिब पहुंचने वाला मार्ग काफी संकरा है और उसके आसपास सौंदर्यीकरण की भी आवश्यकता है जिसके चलते उन्होंने केन्द्र सरकार की ओर से 200 करोड़ का पैकेज देकर तख्त साहिब के आसपास का सौंदर्यीकरण करने के कार्यों को मंजूरी देते हुए जल्द से जल्द इसे पूरा करने की बात कही है।
इस प्रोजैक्ट में गंगा नदी पर बने पुल जिसे मैरीन ड्राईव का नाम दिया गया है वहां से तख्त साहिब तक एक कोरिडोर बनाया जायेगा जो सीधा गुरुद्वारा कंगनघाट पर मल्टीलैवल पार्किंग बनाकर उसमें जायेगा ताकि जो भी श्रद्धलुगण देश-विदेश से दर्शनों के लिए आएं उनकी गाड़ियां सीधी पार्किग में चली जायेंगी और वहां से वह आसानी से तख्त साहिब के दर्शनों के लिए जा सकेंगे। गुरुद्वारा कंगनघाट जहां गुरु गोबिन्द सिंह जी ने कंगन नदी में फेंका था वहां कंगन के आकार का एक विशाल चिन्ह लगाया जायेगा। इस कार्य को शुरु करवाने का श्रेय पूर्णतः तख्त साहिब कमेटी के अध्यक्ष जगजोत सिंह सोही को जाता है जिन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय में निरन्तर पहुंचकर उन्हें तख्त साहिब में श्रद्धालुओं को आने वाली परेशानियों से अवगत करवाया गया। केन्द्र की सरकार के साथ साथ बिहार की नीतीश सरकार भी सिख मसलों के हल के लिए हमेशा तत्पर रहती है। गुरु गोबिन्द सिंह जी का 350वां प्रकाश पर्व दोनों सरकारों ने जिस ढंग से मनाया उसकी याद आज तक ताजा है इतना ही नहीं तब से लेकर आज तक हर प्रकाश पर्व के मौके पर पूरा सरकारी तन्त्र प्रबन्धक कमेटी के साथ मिलकर पर्व को मनाता आ रहा है।
हरियाणा के सिखों की मांग
पंजाब में से ही हरियाणा राज्य बनाया गया और आज भी वहां 19 लाख से अधिक सिख समुदाय की आबादी है जो कि राज्य की प्रगति और विकास के लिए कार्य करती है। पंजाब की भान्ति हरियाणा के सिखों में भी देश भक्ति का जज्बा है जिसके चलते सिख समुदाय के ज्यादातर युवा सेना यां फिर किसानी में अपना भविष्य खोजते हैं इसलिए उनकी यह इच्छा भी रहती है कि सरकार में भी उन्हें भागीदारी मिलनी चाहिए। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से भाजपा और कांग्रेस द्वारा 2 सीटों पर सिख उम्मीदवार उतारे जाते हैं। 2019 के चुनाव में भी एक विधायक कांग्रेस और एक भाजपा का जीतकर आया था। असंद सीट जिसमें सिखों की आबादी काफी अधिक है यहां से 2014 में भाजपा ने बख्शीश सिंह असंद को टिकट दिया था और उन्होंने जीत भी दर्ज की थी मगर 2019 में वह कुछ वोट से चुनाव हार गये थे। वहीं हरियाणा गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी 10 सीटों पर सिखों की दावेदारी पेश करती दिखाई दे रही है जिसे देखते हुए लगता है पार्टी इस बार हो सकता है कि 3 से 4 सीट पर सिख उम्मीदवार उतार दे इसका मुख्य कारण यह भी है कि किसानी संघर्ष के चलते सिख और पंजाबी तबका भाजपा से नाराज चल रहा है इसलिए अधिक सिखों को टिकट देकर भाजपा उनके दम पर पूरे हरियाणा में सिखों की वोट लेने की कोशिश कर सकती है क्योंकि 20 से अधिक सीट पर उम्मीदवार की हार जीत का फैसला सिख वोटरों के द्वारा किया जाता है।
इसी के चलते हरियाणा के सिख उम्मीदवारों ने जोर आजमाइश तेज कर दी है। दिल्ली में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन इकबाल सिंह लालपुरा से भी निरन्तर सिख उम्मीदवार संपर्क कर रहे हैं क्याेंकि भाजपा संसदीय बोर्ड में इकबाल सिंह लालपुरा सदस्य हैं इसलिए सबको लगता है कि उनकी रायशुमारी से ही पार्टी हाईकमान तय करेगा कि कितने और किस क्षेत्र से सिख उम्मीदवारों को मैदान में उतारना है। सस्ती शौहरत के लिए सिखों को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए सिख एक अमन पसंद कौम है और वह कभी किसी को बिना वजह परेशान नहीं करते मगर आम तौर पर देखा जाता है कि कुछ लोग जानबूझकर अपनी सस्ती शौहरत के लिए सिख समुदाय को बदनाम करने की कोशिश करते हैं। उन लोगों द्वारा बिना वजह की गई बयानबाजी से प्रभावित होकर कुछ नासमझ लोग सिखों से द्वेश भावना रखते हुए उन पर हमले तक कर देते हैं। इसी का शिकार बीते दिनों मुम्बई में टिकट इंस्पैक्टर जसबीर सिंह को होना पड़ा और भी कई मामले इस तरह के अक्सर देखने में आते हैं। देश की आजादी से लेकर आज तक सिख समुदाय इस देश के लिए अपनी शहादतें देने में पीछे नहीं हटता, आज भी सबसे अधिक सिख परिवारों के युवा देश की सरहद पर तैनात होकर देश की रक्षा करते हैं। जब कभी जरुरत पड़ी सिखों ने आगे आकर देशवासियों की मदद की।
लंगर लगाने में तो सिख कौम कभी पीछे नहीं रहती और कोरोना काल में तो सांसो तक के लंगर इस कौम ने लगा दिये। हाल ही में इमरजेंसी फिल्म को लेकर भी सिख समुदाय में रोश देखा जा रहा है जबकि इमरजेंसी के खिलाफ सबसे पहले विरोध पंजाबियों ने दर्ज करवाया था और अकेले शिरोमणि अकाली दल ने 16 महीनों तक जेलों में रहकर आंदोलन किया था जिसका फिल्म में जिक्र तो क्या ही करना था उल्टा फिल्म के ट्रेलर में सिखों को आतंकी दिखाया गया है जबकि एक बात तय है कि कोई भी गुरु का सिख कभी निहत्थे और बेकसूरों पर हमला नहीं कर सकता। यह तब तक संभव नहीं है जब तक सेंसर बोर्ड में सिख उम्मीदवारों को शामिल नहीं किया जाता और फिल्मकारों को यह हिदायत नहीं दी जाती कि फिल्म में सिखों का किरदार यां किसी तरह की भूमिका दिखाने से पहले सिखों की धार्मिक जत्थेबंदियों से मंजूरी लेना
अनिवार्य होना चाहिए।
ढाडीयों को प्रोत्साहन
गुरु गोबिन्द सिंह जी के द्वारा जहां कवियों को सम्मान दिया जाता वहीं ढाडीयों को भी बुलाकर उनसे ढाडी वारें गुरु साहिब सुना करते। तभी से ढाडी प्रथा का प्रचलन चल निकला, ढाडी जत्थे संगीत के साथ सिख इतिहास संगत को श्रवण करवाते। हर गुरुद्वारा साहिब में कीर्तनी जत्थों के साथ साथ ढाडी जत्थों को भी समय दिया जाता। मगर धीरे धीरे इसमें कमी आती चली गई। सिर्फ गुरुपर्व के मौके पर लगने वाले दीवान मंे ही ढाडी जत्थे दिखाई पढ़ते। आज हालात यह बन चुके हैं कि लोग महंगे से महंगे कीर्तनी जत्थों को बुलाकर कीर्तन करवाते हैं जिनमें से ज्यादातर को तो गुरबाणी स्मरण भी नहीं होती, मोबाईल से देखकर शबद गायन किये जाते हैं यां फिर फिल्मी धुनों का इस्तेमाल कर कच्ची बाणी पढ़ते हैं। इसी सोच को गंभीरता से लेते हुए दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक के अधीन चलते गुरु हरिकृष्ण पब्लिक स्कूल लोनी रोड मंे बच्चों का ढाडी जत्था तैयार किया गया है जिसके द्वारा गुरुपर्व के मौके पर दी गई परफारमेंस बेहतरीन दिखी और सभी ने उसकी प्रशंसा की। दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी सदस्य परविन्दर सिंह लक्की की माने तो इसी तरह से अन्य खालसा स्कूलों को भी इस ओर ध्यान देते हुए ढाडी प्रथा को बढ़ावा देना चाहिए ताकि युवा वर्ग शिक्षित होने के साथ-साथ अपने विरसे की संभाल करते हुए ढाडी प्रथा को आगे लेकर जाए।