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जैसी मां वैसा बेटा

आज के कलियुग में कई तो अपने ही साथ छोड़ देते हैं परन्तु अगर आपके बच्चे आपके साथ हैं तो कोई भी मुश्किल आसान हो जाती है।

जैसा कि हम सब जानते हैं कि बीता साल सभी के जीवन में बहुत कठिन उतार-चढ़ाव लेकर आया, जिसने जिन्दगी के मायने ही बदल कर रख दिये। मेरे लिए तो 2020 जिन्दगी का सबसे गंदा साल था, जो मैं कभी नहीं भूल सकती। उसके बाद तो मानो कुदरत का ऐसा कहर आया कि सारा संसार ही हिल गया। फिर एक के बाद बुरी खबर आने लगी। कहीं कोई ईश्वर को प्यारा हो रहा, कोई वैंटीलेर पर था।
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मुझ पर तो दुख का पहाड़ था परन्तु साथ ही बहुत जिम्मेवारी थी। परिवार, बिजनेस, छोटे बच्चे और समाज के वो लोग जिनके लिए काम करती हूं। 
जिनका मैं हर वक्त हौसला और साहस हूं, जिन्दगी खुशी से जीने का कारण हूं। जिनको मैं हमेशा कहती हूं शो मस्ट गो आन तो मुझे उसके लिए आनलाइन काम शुरू करना पड़ा परन्तु आंसू रुकने का नाम नहीं लेते थे। तब मुझे मेरे भाई शिवशंकर और बहनों ने बहुत सम्भाला। एक-एक मिनट मेरे पास नहीं थी, पर उनका  मेरे साथ होने का अहसास था। कभी फोन, कभी वीडियो काल। खाना खाया, पानी पीया, नींद आई। 
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हमें हमारे मां-बाप ने बहुत अच्छे संस्कार दिये। आपस में इतना प्यार कि उसे जिन्दगी की कोई?रुकावट तोड़ नहीं सकती। मेरी बड़ी बहन प्रेम शर्मा अमेरिका में परन्तु उसकी हमेशा जान मेरे में,  वीना शर्मा लंदन में परन्तु सांसें मेरे में अटकी हुईं। मेरी बहन मधू शर्मा जो खुद कैंसर की बड़ी सर्जरी से गुजर रही थी परन्तु पूरा ध्यान मेरे में, मेरी बहन सोनिया सूरी, गीता चोपड़ा, भाई शिव जो मेरे से छोटे हैं, इन दुख की घड़ी में मेरे से बड़े बनकर मेरे पल-पल साथ थे। मेरे तीनों बेटे, मेरी बहू मेरे जीने का कारण थे।  यही नहीं मेरी सारी सहेलियां जिनके मेरे साथ 30-40 साल पुराने रिश्ते हैं, रिश्तेदारों से आगे थीं। मेरे भान्जे-भान्जियों को मौसी जान से ज्यादा प्यारी थी।
यह सब हमारी मां के संस्कार हैं। 
यही नहीं मेरी लंदन वाली बहन वीना शर्मा जो  हिन्दू टैम्पल की सैकेट्री हैं, ने वहां से आक्सीजन कंसट्रेटर ब्रिटिश एशियन ट्रस्ट द्वारा भेजे। फिर फूड एंड मैडिसन सोनू सूद को भिजवाया। 
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फिर वहां नाटिंघम के सभी भारतीय लोगों ने वीना शर्मा जी के साथ 108 बार महामृत्युंज्य पाठ और आहुतियां इंडिया में बीमार लोग  और डाक्टर, नर्स जो सेवा कर रहे थे, उनके लिए की। उसके बाद एनएचएस के डाक्टर, नर्सों के लिए महामृत्युंज्य का पाठ किया।
यही नहीं जैसी मां वैसा बेटा क्योंकि मां-बाप के संस्कार, संस्कृति हमेशा बच्चों में दिखाई देती है। उनका सबसे छोटा बेटा संजीव शर्मा जो लंदन का जाना-माना बेरिस्टर है। मार्च में देशव्यापी तालाबंदी से ठीक पहले 40 वर्षीय संजीव नाटिंघम घर वापस आया। आते ही वह गम्भीर रूप से अस्वस्थ हो गया। सीने में दर्द, सांस लेने में कठिनाई के कारण उसे एम्बुलैंस द्वारा नाटिंघम के क्वयंस मेडिकल में, फिर बाद में उसकी हालत और खराब होने पर नाटिंघम के सिटी अस्पताल में शिफ्ट किया गया। 
उसकी इतनी हालत खराब हो गई कि उसे कोमा की हालत में वेंटीलेटर पर रखा गया। 14 दिन वेंटीलेटर पर आंखें बंद रहीं। हम सबकी सांसें रुकी रहीं। किसी भी परिवार या दोस्तों को उनके करीब जाने की इजाजत नहीं थी। डाक्टर ने कह दिया फिफ्टी-फिफ्टी चांस परन्तु उसकी मां वीना शर्मा और पत्नी प्रीती शर्मा (जो वीना की बेटियों से बढ़ कर है) का विश्वास था कुछ नहीं होगा। मां शिव योग पर बहुत विश्वास करती है। उसने 14 दिन आंखें नहीं झपकीं। दिन-रात पाठ किया। इंटरनेशनल पाठ था। सभी शिव योगी आस्ट्रिया, लंदन, अमेरिका, इंडिया से उसके साथ जुड़े, तब 28 दिन के बाद संजीव ठीक हुआ और घर की वापसी हुई। इस दौरान वहां के डाक्टर, नर्सों, स्वास्थ्य कार्यकर्ता उनका परिवार बन गए। उसने स्वस्थ होकर 40वां जन्म दिवस अपने घर आकर अपनी पत्नी, बच्चों, माता-पिता, भाइयों-भाभियों के साथ मनाया। उसके बाद उसके बड़े भाई-भाभी ने उसे एक पल के लिए नहीं छोड़ा। यानी दु:ख बहुत कुछ सिखाता है।
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यही नहीं संजीव के ठीक होने की खुशी में संजीव शर्मा, उसके भाई राजेश शर्मा ने 16 अक्तूबर को माऊंट सोडन पर चढ़ाई करने का एक चैलेंज लिया। 
42,000 पाउंड इकट्ठे करके अस्पताल के डाक्टर, नर्स को चैरेटी के रूप में दिए। बीबीसी न्यूज की हैड लाइन बनी। कमाल है संजीव शर्मा, उनके भाई और दोस्तों का, उन्होंने वहां माऊंटन पर जाकर भारत का झंडा फहराया और संजीव शर्मा ने साबित कर दिया कि उसने संस्कार मां से लिए हैं। जो हमेशा दूसरों के लिए जीती है, हीलिंग करती है। यानी जैसी मां वैसा बेटा।
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यही नहीं संजीव शर्मा ने अपने सौ साल के दादा की खुशी के लिए शादी इंडिया में आकर की और उन्हें व्हीलचेयर पर अपने साथ-साथ रखा और व्हीलचेयर पर और अपनी गोदी में उठाकर उन्हें चिंतपूर्णी लेकर गया, जो उनकी इच्छा थी।  मेरा यह सब आप सबको बताने का अर्थ है कि अच्छे कर्म, संस्कार कभी खाली नहीं जाते। वो बच्चों पर भी असर करते हैं। जैसे वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के सदस्य आनलाइन कम्पीटिशन में हिस्सा ले रहे हैं, उनके बच्चे, बेटे-बेटियां, बहुएं,पोते-पोतियां उनका साथ दे रहे हैं, बहुत बड़ी बात है।  मैं उन बच्चों को साधूवाद देती हूं, आशीर्वाद देती हूं जो अपने मां-बाप की सेवा करते हैं। हर सुख-दु:ख में साथ देते हैं, क्योंकि आज के कलियुग में कई तो अपने ही साथ छोड़ देते हैं परन्तु अगर आपके बच्चे आपके साथ हैं, अच्छे संस्कारों के साथ या मां-बाप अपने बच्चों के साथ हैं तो कोई भी मुश्किल आसान हो जाती है।

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