जेल के अंदर नहीं, कारागार के द्वार पर भी देखें

जेल के अंदर नहीं, कारागार के द्वार पर भी देखें
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कभी-कभी टीवी चैनलों वाले बड़े जोर-शोर से ब्रेकिंग न्यूज या सनसनी फैल गई नाम से खबर देते हैं कि किस जेल में हवालातियों या कैदियों से कितने मोबाइल फोन पकड़े गए और सभी कानून के संबंध में जानने वाले जानते हैं कि जिससे मोबाइल पकड़ा जाए उसे दो या तीन वर्ष का अतिरिक्त कारावास का दंड मिलता है, पर न जाने क्यों जानबूझकर या कुछ लोगों को बचाने के लिए यह नहीं बताया जाता कि आखिर जेल में बंद बंदियों के पास मोबाइल पहुंचे कैसे। न आकाश से बरसते हैं और न ही धरती से निकलते हैं। जेल में जो भी पहुंचता है जेल के कर्मचारियों, अधिकारियों, सुरक्षा में तैनात पुलिस कर्मियों की मेहरबानी या उनकी अपनी ड्यूटी में लापरवाही नहीं लालच के कारण कैदियों तक कोई भी सामान, मोबाइल, नशा तथा अत्यंत आपत्तिजनक वस्तुएं पहुंचाई जाती हैं।
पिछले दिनों हाईकोर्ट के आदेशों के कारण या जेल अधिकारियों की सूझबूझ के कारण बहुत सी जेलों के कर्मचारी भी सहायक सुपरिंटेंडेंट समेत दंडित हुए या निलंबित हुए या उन्हें ट्रांसफर कर दिया गया। इसी दिसंबर माह में पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने जेलों में हो रहे अपराधों पर बहुत चिंता जताई। यहां तक कि एडीजीपी पंजाब जेल को भी इसके लिए कानूनी भाषा में डांटा गया। इसमें कोई संदेह नहीं कि जेल में बहुत कुछ ऐसा होता है जो नहीं होना चाहिए। सच्चाई तो यह है कि जेल के बाहर जो सुधारगृह शब्द लिखा है उसे ही उतार देना चाहिए। कभी जेलें सुधारने वाली नहीं रहीं। कुछ लोग वहां पूरा रौब जमाकर रहते हैं और कुछ बेचारे जिनमें से अधिकतर निर्दोष या छोटा-छोटा अपराध करने वाले या ऐसे लोग जो बड़े अपराधियों के कारिंदे बनकर काम करते रहे वहां बंद हैं। बहुत से बेचारे तो ऐसे हैं जिनके पास भी कोई जमानत देने वाला न होने से या आर्थिक दंड न भर पाने के कारण जेल में बंद हैं। उनका कोई न तो वारिस, न बचाने वाला, न जेल से जाएंगे तो परिवार में रखने वाला है।
पिछले दिनों केंद्र सरकार के सूत्रों से यह जानकारी तो मिली थी कि जो लोग जेलों में सजा भुगत चुके हैं, पर जुर्माना भरने की क्षमता न होने के कारण जेलों में बंद हैं उनको केंद्र सरकार संरक्षण देगी। उनके लिए जो जुर्माना तय है उसे सरकार भरेगी। अभी तक दिखाई कुछ नहीं दिया। मेरा तो माननीय न्यायाधीशों से यह कहना है कि कभी-कभी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश और अधिकतर जिला सत्र न्यायाधीश अर्थात सेशन जज जेल में बंदियों की कठिनाइयां सुनने, उनकी हालत देखने, कोई सुधार की आवश्यकता है तो सुधार करवाने के लिए जाते हैं। ऐसे कुछ अवसरों पर मैं स्वयं उपस्थित थी। वहां डरे-सहमे कैदी पंक्तिबद्ध खड़े रहते हैं और अपनी कोई भी कठिनाई लगभग नहीं बता पाते। वैसे भी जल में रहकर मगरमच्छ से बैर करेगा कौन। जज साहिब तो कभी-कभी जाएंगे, शेष समय तो जेल अधिकारियों की दया पर बेचारे अभागे बंदी रहते हैं।
सही बात तो यह है कि जो बड़े-बड़े अपराधी, गैंगस्टर, आतंकवादी जेल में बंद हैं, जेल के अंदर उन्हीं का राज चलता है। वह धन बल से भी और डराकर भी हर सुविधा ले लेते हैं। मेरा तो माननीय उच्च न्यायालय से यह निवेदन है कि किसी तरह केवल एक बार ही सही जेल के अंदर की वास्तविक स्थिति जाननी है, वहां कितना कैदियों का आर्थिक शोषण होता है। जो महिलाएं जेल में बंद हैं उन्हें क्या-क्या सहना पड़ता है, जरा बाहर से पूछिए। अगर हर जिले को केवल चार सप्ताह के लिए यह काम सौंप दिया जाए कि जेल में जितने भी बंदी हैं उनके परिजनों को पूछा जाए, उनका साक्षात्कार लिया जाए, पुलिस और जेल अधिकारियों को इस इंटरव्यू मीटिंग में निकट भी न आने दिया जाए तभी जेल के अंदर क्या-क्या हो रहा है प्रशासन, शासन और न्यायपालिका जान पाएगी। मेरा अपना यह विश्वास है कि इस प्रकार जो जानकारी प्राप्त होगी उससे जेलों के अंदर अधिकारियों व कर्मचारियों को डर भी होगा, निश्चित ही सुधार भी होगा। अगर सरकार अपने कुछ बड़े अधिकारियों तथा नेताओं और सत्तापतियों की सही जानकारी रखना चाहती है, उनके क्रियाकलापों को निकट से देखना चाहती है तो जितने भी सुरक्षा कर्मी इन सबकी सुरक्षा में लगाए हैं उनकी ड्यूटी का यह हिस्सा बन जाए कि अगर उनके द्वारा सुरक्षित व्यक्ति कोई समाज विरोधी, देश विरोधी, जन विरोधी काम करता है तो उसकी जानकारी देना उनकी ड्यूटी का हिस्सा है।

– प्रो. लक्ष्मीकांता चावला

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