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लुटती आबरू, तमाशबीन लोग

देश की राजधानी दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर हाई अलर्ट के बीच आरोपियों ने कस्तूरबा नगर में एक महिला को घर से उठाया।

देश की राजधानी दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर हाई अलर्ट के बीच आरोपियों ने कस्तूरबा नगर में एक महिला को घर से उठाया। आरोपियों ने उस महिला को अपने घर में बंद कर हैवानियत की। शोरशराबा भी हुआ, लोग भी इकट्ठे हुए। पीड़िता मदद के लिए चिल्लाती रही, लेकिन किसी ने भी महिला की मदद करने का साहस नहीं जुटाया। बाहर लाकर उस महिला के बाल भी काटे, कालिख भी पोती, उसे पीटते भी रहे, कोसते भी रहे। भीड़ केवल हूटिंग करती दिखी। तमाशबीनों की भीड़ असहाय बनकर देखती रही। यह हृदय विदारक दृश्य दूरदराज के ग्रामीण इलाके का नहीं बल्कि महानगर दिल्ली में देखने को मिला। दिल्ली एक बार फिर शर्मसार हुई। एक नाबालिग लड़के की आत्महत्या के लिए इस महिला को दोषी मानते हुए दबंग परिवार के तीन लोगों ने उसका यौन शोषण भी किया। 
वायरल हुए वीडियो में कुछ महिलाओं द्वारा युवती को कहे गए अपशब्द सुने जा सकते हैं और कुछ लोग पीछे से सीटी बजाते देखे जा सकते हैं। सभ्य समाज में ऐसी घटनाएं बर्दाश्त से बाहर हैं। यह कैसा समाज है जो किसी असहाय महिला की मदद की बजाय उसे बीच बाजार अपनी अस्मत लुटाने को​ विवश कर देता है। लोगों द्वारा मदद नहीं करने का कारण आरोपी परिवार की दबंग पृष्ठभूमि भी है। भारत में ​महिलाओं पर अत्याचार, हिंसा और शोषण जैसी अमानवीय घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं।
पूरे देश में हर क्षण, हर परिस्थिति में हिंसा के किसी रूप का शिकार हो रही हैं, जैसे-जैसे देश आधुनिकता की तरफ बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे महिलाओं पर हिंसा के तरीके और आंकड़े भी बढ़ते जा रहे हैं। अवैध व्यापार, बदला लेने की नीयत से तेजाब डालने, साइबर अपराध और लिव इन रिलेशन के नाम पर यौन शोषण हिंसा के तरीके हैं। जबकि पहले से ही डायन समझ कर महिलाओं को पीट-पीट कर मार डालना, जादू-टोना के नाम पर महिलाओं का यौन शोषण और घरेलू हिंसा आज भी जारी है। पहले कहा जाता था कि ऐसे अपराध केवल निरक्षर और दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा होते हैं लेकिन आजकल शहरों और महानगरों में महिलाओं के साथ अन्याय की खबरें देखने और पढ़ने को ​मिल  जाती हैं। महिलाओं के खिलाफ हिंसा केवल चारदीवारी तक सीमित नहीं है। कार्यस्थल से लेकर सड़कों तक महिलाओं को हिंसा का शिकार बनाया जाता है। आजादी के अमृत महोत्सव तक आते-आते भारत ने न जाने प्रगति की कितनी सीढ़ियां चढ़ ली हैं। विकास का पैमाना माने जाने वाला ऐेसा कोई क्षेत्र नहीं जहां भारत की पहुंच न हुई हो। इसमें सिर्फ पुरुषों ने ही नहीं बल्कि महिलाओं ने भी अग्रणी भूमिका​ निभाई है। गणतंत्र दिवस परेड में लड़ाकू विमानों की महिला पायलटों, मोटर साइकिल पर जांबाज करतब दिखाती महिलाओं, भारतीय नौसेना के दस्ते का नेतृत्व करती महिला को देखकर गर्व होता है। लेकिन जब हम सामाजिक परिवेश को देखते हैं तो ऐसा महसूस होता है ​िक महिलाओं की दशा पूर्ववत है। अमानवीय कृत्यों के चलते महिलाएं असुरक्षित हैं।
सामाजिक परिवेश का दूसरा पहलु यह भी है कि बढ़ते शहरीकरण, पुरुषों के साथ बराबरी करने की होड़ और सामाजिक आर्थिक स्रोतों पर महिलाओं का भी बढ़ता नियंत्रण तथा अन्मुक्त वातावरण इन सबके चलते महिलाओं ने खूब विकास किया है। इसलिए न तो अब उनकी छवि पहले जैसी छुई-मुई वाली रह गई है और न ही कोई क्षेत्र इनमें वर्जित रहा है। ​नतीजा यह निकला कि अपराधों में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ती जा रही है। शायद ही ऐसा कोई दिन गुजरे जब अखबारों में आने वाले आपराधिक वारदातों की सूत्रधार महिलाएं न हों। चाहे नशे का अवैध कारोबार की बात हो या मानव तस्करी की बात हो महिलाएं हर जगह मौजूद हैं। यह सच है कि यौन शोषण के रैकेट में महिलाओं की भागीदारी बहुत ज्यादा है। भले ही महिलाएं अभी तक शार्पशूटर या सीरियल किलर की भूमिका में नहीं हैं। लेकिन राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों का ​विश्लेषण करें तो नाजुक और अबला समझी जाने वाली महिलाओं की दिल दहला देने वाली आपरा​धिक  वारदातें बढ़ती ही जा रही हैं। दिल्ली की घटना रंजिश का परिणाम मानी जा सकती है लेकिन पीड़ित महिला पर अत्याचार ढाने में महिलाओं की भागीदारी भी ज्यादा​ दिखाई देती है। अगर दबंग परिवार का ​​चरित्र आपराधिक है तो मानसिकता भी वैसी ही होगी। आधुनिक जीवन शैली और सामाजिक मूल्यों में आ रही ​गिरावट के चलते महिलाओं के जीने का तरीका ही बदल गया है। इसका बड़ा कारण उपभोक्तावादी जीवन शैली की लालसा है। कुछ भी हो लेकिन दिल्ली में किसी महिला के बाल काट, मुंह पर कालिख पोत कर घुमाने का अधिकार किसी को नहीं है। 
यह घटना शिक्षित समाज के​ लिए बदनुमा दाग है। अगर ऐसी घटनाएं होती रहीं तो फिर कानून का खौफ किसी को नहीं रहेगा और अराजकता की​ स्थिति पैदा हो जाएगी। ऐसी हिंसा  के खिलाफ महिलाओं को स्वयं आवाज बुलंद करनी चाहिए। कानून कितने भी क्यों न हों जब तक समाज स्वयं महिलाओं को सम्मान नहीं देगा तब तक कुछ नहीं हो सकता। उम्मीद तो की जाती है कि पुलिस अत्या​चारियों को कड़ी सजा दिलाने में सफल रहेगी, इसमें गफलत हुई तो महिलाओं का भविष्य अंधकारमय होता जाएगा। समाज तमाशबीन बना रहेगा तो फिर कौन रोकेगा हैवानियत।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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