उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य के विधानसभा चुनावों को लगातार दूसरी बार जीत कर अपनी सत्ता जिस प्रकार कायम रखी उससे बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित भी चकरा गये थे क्योंकि उनके विरोध में राज्य के चुनावी घमासान में जिस तरह की व्यूह रचना हुई थी उसका विमर्श उनके पिछले पांच साल का शासन ही था। इसे कांग्रेस समेत समाजवादी पार्टी के गठबन्धन ने अपने निशाने पर लिया कि उनके शासन करने की पद्धति को न केवल साम्प्रादायिक रूप से विद्वेश से भरा बताया बल्कि जन विरोधी भी कहा। इसके बावजूद राज्य में ‘बुलडोजर बाबा’ के नाम से प्रसिद्धी प्राप्त करने वाले योगी आदित्यनाथ ने आम जनता का दिल जीता और अपनी पार्टी भाजपा को दो-तिहाई बहुमत दिला कर सिद्ध कर दिया कि आम जनमानस उनकी शासन पद्धति को ही ‘जन हित’ की पद्धति मानता है।
लोकतन्त्र में यह कहावत हर वक्त चरितार्थ होती है कि ‘दुल्हन वही जो पिया मन भाये’। योगी बाबा ने अपनी शासन कला से यह तो सिद्ध कर दिया है कि उनके राज्य में किसी भी धर्म की ‘तास्सुबी’ राजनीति सफल नहीं हो सकती विशेषकर समाज के किसी भी वर्ग को उसके विशिष्ट धर्म की वजह से किसी प्रकार की रियायत नहीं दी जा सकती। कानून सबके लिए बराबर होगा और अपना काम कान-आंखें बन्द करके करेगा। अतः योगी बाबा ने हिजाब, अजान, हलाल आदि के विवाद के चलते आदेश दिया है कि सभी धर्म स्थलों पर लगे लाऊड स्पीकर एक स्थापित मानकों के तहत ही चलाये जायेंगे और इतनी आवाज में चलाये जायेंगे कि उनकी आवाज धर्म स्थलों के परिसर से बाहर न जाये। ऐसे सभी धर्म स्थलों की थानावार सूचि बनाई जायेगी जहां ध्वनि सीमा के मानकों का पालन नहीं हो रहा है। ऐसे सभी लाऊड स्पीकर उतरवाये जा सकते हैं और कानून का उल्लंघन करने पर कार्रवाई भी हो सकती है। आदेश के अनुसार लाऊड स्पीकर ध्वनि सीमा की साप्ताहिक समीक्षा होगी और जो भी इसे तोड़ने का दोषी होगा तुरन्त कार्रवाई की जा सकती है।
राज्य के मुख्य सचिव के पास सभी थानों से पहली समीक्षा रिपोर्ट 30 अप्रैल तक भेजने के लिए कहा गया है और इसकी प्रतिलिपि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड को भी भेजी जायेगी परन्तु अवैध लाऊड स्पीकरों को धर्म गुरुओं से संवाद करने के बाद हटाया जायेगा जिससे किसी प्रकार की कोई गलतफहमी समाज में न फैले। यदि हम बाबा की शासन प्रणाली के मिजाज का जायजा लें तो अभी तो 125 धर्मस्थलों से अवैध लाऊड स्पीकर हटा भी दिये गये हैं और 17 हजार के लगभग लाऊड स्पीकरों की आवाज स्वयं ही लोगों ने मद्धिम कर दी है। ध्वनि प्रदूषण का सरोकार केवल धर्म स्थलों से ही हो ऐसा भी नहीं है क्योंकि शादी-ब्याह व अन्य समारोहों के अवसर पर भी लोग बहुत तेज ‘डी जे’ व अन्य कथित संगीत उपकरण चालू करके ‘कान फोड़ू’ शोर मचाते हैं और इस हद तक बजाते हैं कि लोगों के घरों के शीशे तक टूट जाते हैं। वास्तव में यह संगीत के नाम पर फूहड़ व भौंडा प्रदर्शन ही होता है।
इस सन्दर्भ में भी बाबा की सरकार ने आदेश जारी किया है कि समारोहों के अवसर पर भी एक निश्चित ध्वनि सीमा में गाना-बजाना किया जा सकता है। वास्तव में संगीत उसे ही कहते हैं जो कर्ण प्रिय हो। इसके ऊपर वह ‘शोर-शराबा’ ही कहलाता है। राग-रंग का शोर भरा प्रदर्शन केवल कोलाहल ही होता है। उत्तर प्रदेश को साम्प्रदायिक रूप से सबसे ज्यादा संवेदनशील राज्य भी कहा जाता है क्योंकि इसी प्रदेश में इस्लाम धर्म का ऐसा एक वैचारिक स्कूल है जिसे ‘बरेलवी स्कूल’ कहा जाता है और एतिहासिक सच यह है कि इसी स्कूल की विचारधारा से निकले मुस्लिम मुल्ला व उलेमाओं ने पाकिस्तान का निर्माण कराने में मुहम्मद अली जिन्ना की सबसे ज्यादा मदद की थी और हिन्दुओं के खिलाफ नफरत संयुक्त पंजाब व बंगाल में फैलाने में सारी सीमाएं तोड़ दी थीं।
आजाद भारत में भी मुसलमानों में रौशन खयाली को रोकने के लिए मुल्ला ब्रिगेड ने जी तोड़ कोशिशें की हैं जिसकी वजह से आज 74 साल बाद भी हम हिजाब व हलाल जैसे मसले देख रहे हैं। वरना यह वहीं हिन्दोस्तान है जिसके संयुक्त पंजाब में मुस्लिम शादियों के अवसर पर औरतें दुल्हन को सजाते हुए यह गीत गाया करती थीं कि ‘चुन्नी केसरी ते गोटे दिया तारियां’ और दूल्हे के स्वागत में गाया जाना वाला गीत होता था ‘अम्बा- शहतूतां ठंडी छांव बे इक पल बैह बनया’। हिन्दू और मुसलमान दोनों के ही साझे गीत होते थे। मगर भारत में केसरी रंग को ही हिन्दू धर्म का ‘पेटेंट’ बता दिया गया। इसी प्रकार लिबास के मामले में भी मजहबी चोले डाले गये। मगर बरेलवी स्कूल के उलेमाओं की नसीहतों के खिलाफ ही आजादी के आन्दोलन में देवबन्द के उलेमाओं ने संयुक्त भारत का पूरा समर्थन किया था और बादशाह खान जैसे कितने ही अन्य पंजाबी व सिन्धी मुस्लिम नेताओं ने जिन्ना की मुस्लिम लीग के ‘बयानिया’ के खिलाफ ‘संयुक्त भारत- एक भारत’ का ‘बयानिया’ मुसलमानों में फैलाया था परन्तु अग्रेजों के हाथ में जिन्ना ऐसा मोहरा लग गया था जिसकी वजह से जाते-जाते वे हिन्दोस्तान को बांट गये। अतः जिन्ना की जहनियत का आजाद भारत में कभी कोई स्थान नहीं हो सकता और भारतीय संस्कृति के ‘समावेशी व उदात्त’ चरित्र के भीतर ही हिन्दू-मुसलमानों को आपस में मिल कर रहना होगा और मुगल बादशाह अकबर की इस बात को ध्यान में रखना होगा जो उसने ईरान के शहंशाह के एक खत के जवाब में लिखी थी कि ‘न मैं सुन्नी मुस्लिम हूं और न शिया मुस्लिम हूं बल्कि हिन्दोस्तानी मुसलमान हूं”। जिस हिन्दोस्तान से इस्लाम धर्म के संस्थापक ‘हजरत मुहम्मद सलै अल्लाह अलैह वसल्लम’ को भी खुशबू आती हो उसकी जमीन कितनी पाकीजा और नैमतों तथा बरकतों से नवाजी गई होगी ? क्या इस पर भी कभी मुस्लिम उलेमाओं ने गौर फरमाया है।