Mandate of Arunachal: अरुणाचल का जनादेश

Mandate of Arunachal: अरुणाचल का जनादेश
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Mandate of Arunachal: लोकसभा चुनाव के परिणाम आने से पहले ही भारतीय जनता पार्टी के लिए शानदार खबर यह है कि अरुणाचल में एक बार फिर भाजपा की सरकार बनने जा रही है। राज्य में पेमाखांडू की सरकार ने प्रचंड बहुमत के साथ वापसी की है। 60 सदस्यीय विधानसभा में 10 सीटें भाजपा पहले ही निर्विरोध जीत चुकी है। चुनाव परिणामों में एक बार ​िफर भगवा लहरा दिया है। इसके साथ ही पूर्वोत्तर भारत ने समूचे राष्ट्र को संदेश भी दे दिया है कि उसने केन्द्र की मोदी सरकार के कामों पर मोहर लगा दी है। यद्यपि सिक्किम विधानसभा चुनावाें में सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा सरकार बनाने जा रहा है। दोनों ही राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। सिक्किम में सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा ने अपना एकतरफा जलवा दिखाया है। सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा का गठन 4 फरवरी 2013 को हुआ था और भारती शर्मा को इसका पहला अध्यक्ष बनाया गया था। एसकेएम के गठन में प्रेम सिंह तमांग की भूमिका महत्वपूर्ण रही। प्रेम सिंह तमांग पहले सि​क्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट में थे। हालांकि 2009 में पूर्व मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग से मतभेद हो गए थे। 2019 में प्रेम सिंह तमांग मुख्यमंत्री बने थे। अरुणाचल में भाजपा की बंपर जीत पहले ही तय लग रही थी। वर्ष 2019 के चुनावों के दौरान भगवा पार्टी ने 41 सीटें हासिल की थी। अरुणाचल वही राज्य है जिस पर चीन अपनी नजरें गड़ाए बैठा है। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने अलगावादी हिंसा और अराजकता का दंश झेल रहे पूर्वोत्तर में विकास की बयार बहा दी है। अरुणाचल और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों की जनता अब रचनात्मक राह पर चल रही है। वहां के लोग राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल होकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वि​कसित भारत के सपने को साकार रूप देने में अहम भूमिका निभाने को तैयार है।

यह सब कुछ संभव हो सका है पीएम मोदी की प्रभावी नीतियों और दूरगामी सोच की वजह से। पूर्वोत्तर के विकास को लेकर पीएम मोदी की कोशिशों का एक अहम प्रमाण यह है कि अरुणाचल प्रदेश के सबसे दूरस्थ गांव को प्रधानमंत्री ने भारत का पहला गांव बताया और उसे विकास की प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर रखा गया जबकि, पहले की सरकारों ने इसे देश के अंतिम गांव के तौर पर देखा था। पहले की सरकार और मोदी सरकार के बीच विजन का एक यह बड़ा फर्क है, जो पूर्वोत्तर में विकास के तौर पर नजर आ रहा है। पूर्वोत्तर को अहमियत देने को लेकर मौजूदा केंद्र सरकार की सोच को खुद पीएम मोदी ने ही जाहिर कर दिया है। पहले के सारे प्रधानमंत्रियों ने कुल मिलाकर जितनी बार पूर्वोत्तर के सूबों का दौरा किया, उससे अधिक बार वे खुद इन राज्यों में जा चुके हैं। यही तथ्य तो मोदी सरकार की पिछली सरकारों से भिन्न उन कोशिशों को रेखांकित करते हैं, जो पूर्वोत्तर में विकास के लिए अहम रही हैं।

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि अपने अद्भुत, अकल्पनीय और अविस्मरणीय संस्कृति और विरासत के लिए समस्त विश्व में सर्व विख्यात पूर्वोत्तर के सूबे दुर्भाग्यवश पिछले कई दशकों तक उपेक्षा, हिंसा, अराजकता और अलगाव का शिकार रहे, लेकिन अब विकास का तेज सूर्योदय भारत के पूर्वोत्तर हिस्से को चौतरफा रोशन कर रहा है। यहां के बाशिंदे पिछले कई सालों से अभूतपूर्व विकास की अनुभूति प्राप्त कर रहे हैं। देश से अलग-थलग पड़ने की वजह से जनमानस में पैदा हुई हीन भावना को उत्साह और उमंग ने हरा दिया है। पीएम मोदी के प्रेरक संबोधनों और पर्यटन के विकास को लेकर उनकी विस्तारित नीति ने पूर्वोत्तर की चमक को बढ़ा दिया है। पहले जो पूर्वोत्तर भारत महज हिंसा, दंगा, उन्माद और उत्पात के लिए जाना जाता था, आज उसी पूर्वोत्तर भारत में विकास की गंगा बह रही है। पिछले दस सालों में केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर भारत में शांति स्थापित करने के मकसद से विभिन्न उग्रवादी संगठनों के साथ एक या दो नहीं, बल्कि 11 शांति समझौते किए।

2023 में असम अरुणाचल बॉर्डर एग्रीमेंट पर समझौता किया गया था। अरुणाचल के लोग महसूस करते हैं कि इटानगर में डोनी पोलो एयरपोर्ट, एयरपोर्ट से लेकर पोर्ट से सम्पर्क तक टूरिज्म, टेलीकॉम या टैक्सटाइल सबमें विकास हुआ है। राज्य की दुर्गम ऊंचाई पर सीमांत क्षेत्रों में सड़कें और हाइवे बने हैं। बेहतर बुनियादी ढांचा बनने से पर्यटक राज्य की प्राकृतिक खूबसूरती की ओर आकर्षित हुए हैं। होम स्टे और स्थानीय उत्पादों के जरिए परिवारों की आय बढ़ी हैं।

अरुणाचल के 85 प्रतिशत से अधिक गांव में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क बनाई जा चुकी है। कृषि क्षेत्र में काम करने वालों और आदिवासियों का जीवन पहले से सहज हुआ है। राज्य में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं पर काफी धन खर्च किया गया है। आदिवासी इलाकों में एकलव्य मॉडल स्कूल खोले गए हैं ताकि आदिवासियों का कोई भी बच्चा अशिक्षित न रहे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जिन गांवों में बिजली नहीं पहुंची थी उनमें अब ​िबजली पहुंची है। सीमा से सटे गांवों को वाइब्रैंट बॉर्डर विलेज का दर्जा देकर सशक्त बनाया गया है। सीमांत गांव के युवकों को एनसीसी से जोड़ा जा रहा है। इसके जरिए उनमें देश में प्रति सेवा का जज्बा पैदा किया जा रहा है। अरुणाचल के मतदाता यह महसूस कर रहे हैं कि अब वे दिल्ली के ज्यादा करीब हैं। इसलिए उन्होंने एक बार फिर कमल ​खिला दिया है। 2014 से पूर्व पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा का कोई नामलेवा नहीं था ले​िकन आज इस क्षेत्र में भाजपा अपना परचम लहरा रही है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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