मणिपुरः नई सुबह की उम्मीद

मणिपुरः नई सुबह की उम्मीद
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मई महीने से लगातार जारी हिंसा के बीच मणिपुर से एक अच्छी खबर आई है कि वहां के सबसे बड़े उग्रवादी समूह ने राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल होकर शांति का रास्ता अपनाने का फैसला किया है। गृहमंत्री अमित शाह की रणनीतिक पहल के तहत यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) ने हथियार डाल दिए हैं और उसका सरकार से समझौता हो गया है। एक तरफ मणिपुर सरकार इस संगठन से बातचीत कर रही थी तो दूसरी तरफ केन्द्र सरकार अपना कड़ा रुख बरकरार रखे हुए थी। गृह मंत्रालय ने 16 दिन पहले ही यूएनएलएफ पर पांच सालों के ​लिए प्रतिबंध बढ़ाया था। इसके अलावा चार उग्रवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगाया था। यूएनएलएफ की स्थापना 1964 में हुई थी और इसके संस्थापक के तौर पर आरंबम सैमेन्द्र थे। धीरे-धीरे इस संगठन की ताकत बढ़ती गई और इसने 3 हजार से अधिक सदस्य बना लिए थे। ब्रिटिश इंडिया के समय में मणिपुर एक रियासत था। जब देश आजाद हुआ तो मणिपुर के महाराजा को कार्यकारी प्रमुख बनाकर यहां पर एक सरकार बनाई गई थी। 1972 में मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला। मणिपुर के पूर्ण राज्य बनने से पहले ही मैतेई समुदाय के ऐसे लोग भारत में विलय से नाराज थे। उन्होंने यूएनएलएफ का गठन किया था। इस संगठन की गतिविधियां बढ़ने पर 1980 में केंद्र ने पूरे मणिपुर को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया था और राज्य में चल रहे विद्रोही आंदोलनों को रोकने के लिए आफस्पा एक्ट लगा दिया था। इस सब के बीच 90 के दशक में कुकी समुदाय ने अपना संगठन बना लिया। इसके बाद मणिपुर में जातीय संघर्ष शुरू हो गया।
पूर्वोत्तर भारत में कई अलगाववादी समूह आजादी के बाद से ही सक्रिय रहे हैं। पूर्वोत्तर भारत के सात राज्यों जिन्हें 7 सिस्टर्स भी कहा जाता है, में विद्रोहियों और केन्द्र सरकार के साथ-साथ उनके मूल निवासियों और भारत के अन्य ​हिस्से से आए प्रवासियों और अवैध प्रवासियों के बीच तनाव के चलते असम, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल, मिजोरम, मणिपुर और नगालैंड वर्षों तक अशांत रहे। असम ने हिंसा का भीषण दौर भी देखा और अन्य राज्यों में भी​ विद्रोही गतिविधियां चलती रहीं। विद्रोह के कई कारण रहे। जातीय विविधता के कारण सभी समूह अपनी संस्कृति और ​विशिष्ट पहचान बनाए रखने के लिए अपने अलग राज्यों की मांग करने लगे। असम का छात्र आंदोलन, मिजोरम का ​विद्रोह, नगालैंड का विद्रोह, त्रिपुुरा का विद्रोह बार-बार राज्यों को सुलगाता रहा है। विद्रोह को शांत करने के लिए कई प्रयास किए गए। स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी के काल में हिंसा को समाप्त करने के लिए पंजाब, असम और मिजोरम समझौते किए गए थे।
पंजाब समझौता, जिसे राजीव-लोंगोवाल समझौते के रूप में भी जाना जाता है, पंजाब में शांति के लिए 24 जुलाई 1985 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और शिरोमणि अकाली दल के नेता हरचंद सिंह लोंगोवाल द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे। मिज़ोरम शांति समझौता, 1986 मिज़ोरम में उग्रवाद और हिंसा को समाप्त करने के लिए भारत सरकार और मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के बीच एक आधिकारिक समझौता था। प्रभावशाली छात्र संगठन ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू) द्वारा 1979 में अवैध प्रवासियों की पहचान और निर्वासन की मांग को लेकर छह साल तक चला आंदोलन 15 अगस्त, 1985 को राजीव गांधी की उपस्थिति में असम समझौते पर हस्ताक्षर के साथ समाप्त हुआ।
2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद पूर्वोत्तर राज्यों पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया। विभिन्न जनजातियों और संगठनों के साथ किये गए समझौतों के चलते पूर्वोत्तर के लगभग 66 फीसदी से ज्यादा क्षेत्र में अफस्पा हटा लिया गया। उग्रवादी घटनाओं में 60 फीसदी की कमी आई और नागरिकों की मौत का आंकड़ा भी 80 फीसदी कम हुआ। मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर के राज्यों में नई सड़कें, पुल और रेलवे सम्पर्क बढ़ाया और विकास की बयार बहाई। पूर्वोत्तर के लोगों का देशभर से सम्पर्क बढ़ा। जहां शांति होती है वहीं विकास होता है। मणिपुर सरकार ​हिंसक घटनाओं के बीच उग्रवादी संगठनों से बातचीत कर रही थी और अंततः उसे सफलता मिल ही गई। दो साल पहले मार्च 2021 में मणिपुर के इम्फाल में विभिन्न आतंकी संगठनों के कई सदस्यों ने हथियार डाले थे। यूएनएलएफ के सभी सदस्य अगले तीन सालों तक कैम्पों में रहेंगे और उन्हें 4 लाख रुपए की एकमुश्त वित्तीय सहायता दी जाएगी तथा उनका पुनर्वास किया जाएगा। यूएनएलएफ के हथियार डालने से मणिपुर में अब शांति लौटने की उम्मीद है। यह समूह जबरन वसूली, हथियार व्यापार करता था लेकिन समझौते के बाद उम्मीद है कि मणिपुर में एक नई सुबह का सूरज उगेगा। गृहमंत्री अमित शाह की कुशल रणनीति के चलते पूर्वोत्तर में अब शांति का मार्ग प्रशस्त हो रहा है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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