मणिपुर में करीब 10 महीने से जारी हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही। कुछ दिन के अंतराल के बाद राज्य जलने लगता है। किसी का कोई न कोई अपना मारा जा रहा है। बच्चे अनाथ हो रहे हैं। महिलाएं विधवा हो रही हैं। गांव के गांव जल चुके हैं। आबाद शहरों में भी वीरानगरी नजर आती है। इन सब घटनाओं के बीच हर रोज इंसानियत घुट-घुट कर मर रही है। दो समुदायों के बीच अपने हक की लड़ाई ने बढ़कर गृह युद्ध की स्थित धारण कर ली है। दोनों समुदायों में द्वेष बहुत पुराना है। कुकी और मैतेई का द्वेष समय के साथ जख्म से नासूर बन चुका है। जिसका दर्द मणिपुर के लोगों को झेलना पड़ रहा है। हालात इतने संवेदनशील हो चुके हैं कि छोटी-छोटी बातें भी बड़ी वारदातों का रूप धारण कर रही हैं। हिंसा के ताजा मामले में चुराचांदपुर में लगभग 400 लोगों की उग्र भीड़ ने पुलिस अधीक्षक और जिला कलेक्टर के कार्यालयों पर धावा बोला। भीड़ को काबू करने के लिए सुरक्षा बलों ने फायरिंग की जिसमें कम से कम 2 लोग मारे गए और 42 लोग घायल हो गए। उग्र भीड़ ने मिनी सचिवालय के परिसर में खड़े सुरक्षा बलों के वाहनों के साथ-साथ कलेक्टर के आवास को भी जला दिया।
चुराचांदपुर जिला कुकी समुदाय बहुल्य इलाका है। हिंसा की वजह पुलिस कांस्टेबल की एक सेल्फी बताई जा रही है। दरअसल मणिपुर पुलिस के कांस्टेबल का एक वीडियो सामने आया था जिसमें वो हथियारबंद लोगों के साथ दिखाई दे रहा है। उसी कांस्टेबल की एक सेल्फी भी वायरल हुई जो उसने कुकी उग्रवादियों के बंकर में ली थी। वीडियो वायरल होते ही चुराचांदपुर के एसपी ने उसे निलम्बित कर दिया। जैसे ही आदेश सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, भीड़ ने हमले शुरू कर दिए। इस हिंसा से दो दिन पूर्व भीड़ ने पूर्वी इम्फाल जिले पेंगेई में मणिपुर पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज पर हमला कर गोला बारूद सहित 6 एके-47 राइफल, चार कारबाइन, 3 राइफल्स और 2 लाइट मशीनगन लूट ली थी।
राज्य में जातीय हिंसा से लगभग 200 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। सैंकड़ों लोग घायल हो चुके हैं और 50 हजार के लगभग लोग विस्थापित हुए हैं। 38 लाख की आबादी वाले राज्य में कुकी और मैतेई समुदाय के इलाके अब पूरी तरह बंट चुके हैं। स्थानीय समुदायों के पास बड़ी संख्या में हथियार की उपलब्धता राज्य में हिंसा की बड़ी वजह है। इसके साथ-साथ पड़ोसी म्यांमार में अस्थिरता का संघर्ष ग्रस्त पूर्वोत्तर राज्य की स्थिति पर गम्भीर प्रभाव पड़ रहा है। इसी कारण सेना, असम राइफल्स, राज्य पुलिस और सीएपीएफ की तैनाती के बावजूद स्थिति पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका है।
भारत अपने पड़ोसी देश म्यांमार के साथ 1643 किलोमीटर की लंबी सीमा साझा करता है। इसमें से 398 मीटर का बॉर्डर मणिपुर से सटा हुआ है। म्यांमार लगातार अशांत देश बना हुआ है। सीमा सटी होने की वजह से दोनों तरफ के लोग एक-दूसरे से नस्लीय और सांस्कृतिक रूप से भी जुड़े हुए हैं। 5 साल पहले दोनों देशों के बीच हुए फ्री मूवमेंट रीजीम की वजह से दोनों तरफ के लोग 16 किलोमीटर तक एक-दूसरे के एरिया में आना-जाना कर सकते हैं। इसको लेकर मणिपुर सरकार लगातार यह दावा करती रही है कि म्यांमार से नशीले पदार्थों के साथ ही अवैध प्रवासियों का आना-जाना लगा हुआ है। यह भी हिंसा की वजह है।
हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह ने भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाकर फ्री मूवमैंट बंद करने का ऐलान किया है। इस फैसले का आदिवासी समुदाय विरोध कर रहा है। आदिवासी समुदाय 16 किलोमीटर तक बिना किसी अनुमति के घूम सकते हैं, क्योंकि उनके रिश्तेदार और समुदाय के लोग इसी क्षेत्र में रहते हैं। आजादी के बाद सीमा विभाजन के चलते जनजातियां दो देशों में बंट गई थीं। एक ही जनजाति के लोगों के जीवन और रहन-सहन में आने वाली दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने 26 सितम्बर 1950 को पासपोर्ट नियमों में संशोधन करके दोनों देशों के नागरिकों को बिना पासपाेर्ट और वीजा के एक-दूसरे देश में 40 किलोमीटर भीतर तक आने की छूट दी थी। 80 और 90 के दशक में पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद बढ़ने के कारण आवाजाही की सीमा घटाकर 16 किलोमीटर कर दी थी। म्यांमार में सैन्य तख्ता पलट के बाद सीमावर्ती इलाकों में म्यांमार की सेना और विद्रोही गुटों में हिंसा बढ़ी। इस कारण लगभग 50 हजार लोग जिनमें म्यांमार के पुलिस और सेना के जवान शामल थे, भागकर मिजोरम और मणिपुर आ गए। मिजोरम और नगालैंड के मुख्यमंत्री भी सीमा पर कंटीली बाड़ लगाने का विरोध कर रहे हैं। इनका कहना है कि दाेनों ओर एक ही जनजाति के लोग रहते हैं और उनमें रोटी-बेेटी का रिश्ता है। ऐसे में कोई भी फैसला समस्या को और बढ़ा सकता है।
अब सवाल यह है कि राज्य सरकार कुकी और मैतेई समुदायों के बीच शांति और सुलह को लेकर गम्भीर प्रयास करती दिखाई नहीं दे रही। हिंसा का असर यह है कि कुकी इलाकों के कई अस्पतालों से मैतेई डाक्टर चले गए हैं। जबकि मैतेई इलाकों से कुकी कर्मचारी चले गए हैं। सरकारी सेवाएं गम्भीर रूप से प्रभावित हैं। राज्य में स्कूली शिक्षा बुरी तरह से प्रभावित है। 12 हजार से अधिक बच्चे राहत शिविराें में रहने को मजबूर हैं। स्कूलों में पढ़ाई भी कुछ घंटे ही हो रही है। अब जबकि देश में आम चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में मणिपुर में शांति बहाली कब होगी कुछ कहा नहीं जा सकता। चुनावी राजनीति के चलते हो सकता है कि स्थिति गम्भीर हो जाए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com