शहादत-दर्द और भावनाओं का सैलाब

शहादत-दर्द और भावनाओं का सैलाब
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ऐसा लगता है कि नारी के जीवन के दु:खों का कोई अंत नहीं, उसे जिंदा जी कदम-कदम पर परीक्षा देनी पड़ती है। अगर वह विरांगना है तो हालात और भी गंभीर हो जाते हैं। कल्पना कीजिए कि सेना के जिस कैप्टन अंशुमान सिंह ने सियाचिन में शहादत दी हो और उन्हें मरणोपरांत कीर्ति चक्र प्रदान किया गया हो और उनकी पत्नी स्मृति बहुत ही दर्दनाक याद के लिए कीर्ति चक्र अपने साथ ले जाए और पति का घर छोड़ जाये तो इसे क्या कहेंगे? सब जानते हैं कि 5 जुलाई 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जवान की शहादत के लिए कीर्ति चक्र दिया था। लेकिन बेटा खोने वाले जवान के माता-पिता का कहना है कि कीर्ति चक्र हमारी बहू अपने मायके ले गयी और हमारे पास अब कोई याद बेटे की नहीं बची। बहू तेरहवीं के अगले दिन हमें छोड़कर अपने घर गुरदासपुर चली गयी।
हकीकत क्या है यह हम नहीं कह सकते क्योंकि जब भावनाओं का सैलाब आंसुओं के रूप में बह रहा हो तो कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन मेरा मानना है कि दर्द के इस समुंद्र में हमारा पक्ष शहीद जवान के माता-पिता और बहू दोनों के साथ है। सब कुछ एक विवाद में बदल गया लेकिन शहादत देश के लिए दी गयी थी हम इसलिए इस शहादत को नमन करते हैं। शहीद कैप्टन अंशुमान के माता-पिता का यह कहना कि अब हमारे पास सिवाए दर्द के कुछ नहीं और बेटे का सबसे बड़ा सम्मान कीर्ति चक्र भी हमारी बहू ले गयी। हमारे पास याद के तौर पर केवल तस्वीर है। उधर शहीद अंशुमान की पत्नी कहती है कि अपने शहीद पति की यादों के तौर पर कीर्ति चक्र मेरा अधिकार है। अलग-अलग बातें हैं, अलग-अलग कहानी है लेकिन एक चीज कॉमन है और उसका नाम दर्द है। शहीद के पिता राम प्रताप सिंह जो खुद सैनिक रह चुके हैं का कहना है कि नियम यह कहते हैं कि कीर्ति चक्र प्राप्त करने मां और पत्नी दोनों जाते हैं। शहादत हमारे बेटे की हुई है और देश के इस प्रतिष्ठित कीर्ति चक्र को मैं छू भी नहीं पाया। माता-पिता का कहना है कि हम अपनी बहू को बहू नहीं मानते बल्कि बेटी मानते हैं और अगर हमारी बहू स्मृति चाहेगी तो हम उसकी मिलकर दोबारा शादी भी करेंगे। उसे बेटी की तरह विदा करेंगे।
आज की सूचना और प्रौद्योगिकी के युग में बहुत कुछ नकारात्मक रूप से भी वायरल हो जाता है। जो बातें इस शहीद परिवार के लोगों ने नहीं भी कही उसके बारे में भी तरह-तरह की बातें आ रही हैं। जबकि अगर सोशल मीिडया पर भरोसा किया जाये तो कुछ आरोप शहीद की पत्नी स्मृति पर भी लगे हैं। यहां तक कहा गया कि शहीद की पत्नी ने वह एटीएम ब्लॉक कर दिया है जो अंशुमान की माता इस्तेमाल किया करती थी। यह भी आरोप है कि स्मृति ने अपने सास-ससुर की सोच पर सवाल उठाए हैं। व्यक्तिगत रूप से मैं सोशल मीडिया पर बिना तहकीकात अर्थात सच का पता लगाए बगैर जल्दी से यकीन नहीं कर सकती। मेरा अनुरोध है कि सोशल मीडिया पर इस मामले को लेकर कुछ भी वायरल नहीं किया जाना चाहिए।
स्मृति एक जवान की पत्नी है, एक सास-ससुर की बहू है एक ननद की भाभी है और खुद का उसका मायका भी है। छ: महीने शादी चली कि इतनी बड़ी तबाही देखनी पड़ी जबकि मैं इस दर्द को इसलिए गंभीरता पूर्वक आंसुओं से देख रही हंू और उनकी पीड़ा को समझ सकती हूं क्योंकि हम भी शहीदों के परिवार से आते हैं जहां मेरे दादा ससुर परमश्रद्धेय लाला जगतनारायण और परमपूजनीय श्री रमेश जी ने शहादत दी थी। पूरा देश हमारे साथ खड़ा है हालांकि हमारा दर्द कम नहीं हुआ इसी तरह इस अंशुमान की शहादत और जो पीड़ा उनके माता-पिता और बहू को हुई है वह भी कम नहीं हो सकता लेकिन इस दर्द में पूरा देश उनके साथ खड़ा है, यह बात मैं दावे के साथ कह सकती हूं। सरकार नियमों के तहत जो अच्छा और विवाद के बगैर हल हो सकता हो वह करे। लोग क्या कहते हैं और क्या नहीं शहीद परिवार के परिजनोंं को इससे दूर रहना होगा और इस बहुत ही दु:खद घड़ी में मजबूत बनकर धैर्य भी दिखाना होगा। हमारे दिल की मजबूती दर्द को कम कर सकती है। कलेजे पर पत्थर रखना पड़ता है। कई  बार ऐसी परिस्थितियां आती हैं कि बहुत कठिन चुनौतियां न चाहते हुए भी झेलनी पड़ती हैं। ऐसे में सांत्वना और मजबूती के शब्द उसे अच्छे नहीं लगते जिसके प्रिय ने कुर्बानी दी हो। कैप्टन अंशुमान की शहादत पर पूरे देश को गर्व  है। यह सिर्फ भावनाओं का सैलाब था जो गुजर जाना चाहिए लेकिन शहादत को लेकर सब कुछ सहज और नियमों के मुताबिक सैटल हो जाना चाहिए। हमें भारत माता के लाल कैप्टन अंशुमान की शहादत पर नाज है। यह बात अलग है कि वह माता-पिता का प्यारा बेटा और स्मृति का प्यारा पति और एक बहन का प्यारा भाई था। वह पूरे देश के लिए सम्मानित था, पूजनीय था और सपूत था, है और सबकी आंखों का तारा रहेगा।

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