लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

तमाम उम्र ऊर्जावान रहे महाशय जी

जीवन में सबसे बड़ा सत्य है मृत्यु जिसे कोई टाल नहीं सकता। जिसने इस लोक में जन्म लिया है उसे एक दिन अपने शरीर को छोड़ कर जाना ही है। शरीर में मौजूद ऊर्जा, जिसे आत्मा कहते हैं, शरीर से निकल जाती है तो यह कुहासे के समान होती है।

‘‘उनको रुखसत तो किया था, मगर मालूम न था
 सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला। 
इक मुसाफिर के सफर जैसी है सबकी ​दुनिया
कोई जल्दी में कोई देर से जाने वाला।’’
जीवन में सबसे बड़ा सत्य है मृत्यु जिसे कोई टाल नहीं सकता। जिसने इस लोक में जन्म लिया है उसे एक दिन अपने शरीर को छोड़ कर जाना ही है। शरीर में मौजूद ऊर्जा, जिसे आत्मा कहते हैं, शरीर से निकल जाती है तो यह कुहासे के समान होती है।
कोरोना काल में हमने बहुत कुछ खोया, जिनमें अनेक लोग ऐसे रहे जो हर सुख-दुख में हमारे साथ खड़े रहे। आज सुबह ही खबर मिली कि देश की दिग्गज मसाला कम्पनी एमडीएच के मालिक महाशय धर्मपाल जी का 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया। कोरोना से ठीक होने के बाद हार्ट अटैैक ने उनकी जान ले ली। व्यापार और उद्योग में उल्लेखनीय योगदान के ​लिए पिछले वर्ष उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मभूषण से सम्मानित किया था।
जो भाव मैंने ग्रहण किया वह यह है कि पंचतत्व तो पंच महाभूत में विलय हो गए तो मृत्यु किसकी हुई लेकिन हम साधारण जीव हैं और ऐसे मौकों पर विचलित होना स्वाभाविक है।  आंखें अश्रुपूरित हैं, लिखते वक्त हाथ भी कभी-कभी थम जाते हैं, पर्याप्त शब्द नहीं मिल रहे। महाशय धर्मपाल जी कर्मयोगी थे। उनका जीवन काफी चर्चित रहा। उनका जन्म 1923 में ​सियालकोट (पाकिस्तान) में हुआ था। मेरे पूर्वजों की तरह ही उनके परिवार ने भी 1947 में देश विभाजन की त्रासदी को झेला और घर बार  छोड़कर भारत आना पड़ा था। पाकिस्तान में उनका व्यापार था। भारत आए तो परिवार के पास केवल 1500 रुपए थे। महाशय धर्मपाल ने कई काम किए, लेकिन जम नहीं पाए। एक समय पर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुतुब रोड और करोल बाग से बाड़ा हिन्दूराव तक तांगा चलाया। तब हर सवारी का दो आना (12 पैसे) मिलते थे। फिर उनके पास इतने पैसे हो गए कि उन्होंने अपनी पैतृक मसालों की दुकान ‘महाशय दी हट्टी’ स्थापित कर ली। यहीं से शुरू हुई उनके जीवन की सफलता की कहानी। यह कहानी संघर्ष से भरी हुई है। इससे पहले उन्होंने बढ़ई का काम किया, फिर अपने पिता की दुकान पर बैठ कर हार्डवेयर का काम किया। एक बार चोट लगी तो काम छोड़ दिया और फिर घूम-घूम कर मेहंदी का काम किया।
मसालों के व्यापार ने उन्हें मसालों का बादशाह बना दिया। लोग भी उनकी सफलता पर आश्चर्य करने लगे। उन्होंने अपनी मेहनत, ईमानदारी और लगन की वजह से व्यापार को विदेशों तक पहुंचाया। उन्होंने एक अस्पताल, 15 फैक्ट्रियां और 20 स्कूल स्थापित किए। उन्होंने करोड़ों का साम्राज्य स्थापित किया लेकिन समाज के कमजोर वर्गों की सहायता के लिए कभी पीछे नहीं रहे। मेरे पूजनीय दादा रमेश चन्द्र जी और ​पिता अश्विनी कुमार के महाशय जी से संबंध काफी करीबी रहे। उन जैसा भावुक और संवेदनशील व्यक्ति मैंने दूसरा नहीं देखा। मेरे पिता अश्विनी कुमार के निधन पर मुझसे संवेदना व्यक्त करते समय वह अत्यंत भावुक हो गए थे और जब भी मिलते तो मुझे आशीर्वाद देते थे।  मेरी माता किरण चोपड़ा द्वारा संचालित वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब की स्थापना के समय से ही उससे जुड़े हुए थे। वह हमेशा लाल रंग की पगड़ी पहन कर आते थे। यह पगड़ी उनका ब्रैंड बन चुकी थी। जैसे ही अपने दोनों हाथ ऊपर उठाकर कार्यक्रम में पहुंचते लोगों में नई ऊर्जा भर देते। उम्रदराज होने के बावजूद उनका जोश देखते ही बनता था। एमडीएच के 62 उत्पाद हैं। इन उत्पादों के प्रचार के लिए महाशय जी ऐड भी खुद करते थे। उन्होंने कभी किसी फिल्मी सितारे को कम्पनी का ब्रैंड एम्बैसडर नियुक्त नहीं किया था। उन्होंने कभी इसकी जरूरत भी नहीं समझी। उन्हें दुनिया का सबसे उम्रदराज ऐड स्टार माना गया। उन्हें ऐड फिल्मों में देखकर चोटी के सितारे भी दातों तले अंगुली दबाने को मजबूर थे। महाशय जी केवल पांचवीं तक पढ़े थे। उन्होंने भले ही ​किताबी शिक्षा न ली हो लेकिन कारोबार में बड़े-बड़े दिग्गज उनका लोहा मानते थे। वह एफएमसीजी सैक्टर के सबसे ज्यादा कमाई वाले सीईओ थे। उन्हें 25 करोड़ रुपए इन हैंड सैलरी मिलती थी और वह अपने वेतन का काफी हिस्सा दान में दे देते थे।
अब उनकी चिरपरि​चित मुस्कान हमेशा याद आती रहेगी। वह हमारे आदर्श और प्रेरणा स्रोत थे। वह हमारे मार्गदर्शक भी थे। वह एक अजीम इंसान थे जिन्होंने समाज को बहुत कुछ दिया। पंजाब केसरी परिवार उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करता है। परम पिता परमात्मा उनके परिवार को दुख सहने की शक्ति प्रदान करें। मैं सोचता हूं अब कहां मिलेंगे ऐसे लोग जो हमारी पीठ थपथपाएगा, कौन हमें स्नेह और आशीर्वाद देगा।
‘‘दुख की नगरी कौन सी, आंसू की क्या जात।
सारे तारे दूर के, सबके छोटे हाथ।’’
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

eight + 4 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।