अमेरिका में डेमोक्रेट जो बाइडेन का राष्ट्रपति बनना सुनिश्चित हो चुका है लेकिन मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपना ही राग अलापे हुए हैं। यह साफ है कि तमाम अटकलबाजियों के बीच अमेरिका की जनता ने डेमोक्रेट्स को सरकार चलाने का जनादेश दिया है। एक तरफ डोनाल्ड ट्रंप मतगणना रुकवाने की बात कर रहे हैं तो दूसरी तरफ जो बाइडेन ने काफी संयमित प्रतिक्रिया दी है। बाइडेन ने लोगों के सामने आकर सियासी पारा ठंडा करने की कोशिश की है। ट्रंप का नाम लिए बिना उनसे अपील की कि ‘गुस्सा थूकिये, हम प्रतिद्वंद्वी हो सकते हैं लेकिन दुश्मन नहीं, हम सब अमेरिकी हैं।’ राष्ट्रपति चुनाव की मतगणना को लेकर दो राज्यों की अदालतों ने डोनाल्ड ट्रंप को तगड़ा झटका दे दिया है। ट्रंप ने मिशिगन और जार्जिया के कोर्ट में धांधली का आरोप लगाकर मतगणना रुकवाने की अपील की थी लेकिन कोर्ट ने उनकी अपील को बेबुनियाद मानते हुए खारिज कर दिया। इसी के बाद ट्रंप अपनी लीगल टीम पर भड़के हुए हैं। डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक भी वोट गिनो और वोट मत गिनो में बंट गए हैं। विश्लेषक यह भी कह रहे हैं कि ट्रंप के दावों का कोई जायज आधार नहीं है। वह जिन पोस्टल मतों की गिनती की ओर इशारा कर रहे हैं, वह अवैध नहीं हैं। पोस्टल बैलेट की गिनती बाद में इसलिए हो रही है क्योंकि अमेरिका के कई राज्यों में यही प्रावधान है। बेहतर यही होगा कि ट्रंप जनादेश को स्वीकार करें। देखना होगा कि ट्रंप कानूनी प्रक्रिया से कितना उलझाने का प्रयास करते हैं।
एक पोस्ट पोल सर्वे के मुताबिक 64 प्रतिशत युवाओं और 57 फीसदी महिलाओं ने बाइडेन को वोट दिया है। यही नहीं ट्रंप की अप्रवासी नीति के विरोध में 87 फीसदी अश्वेत और 64 फीसदी मूल के लोगों ने बाइडेन को वोट दिया है। भारतीयों की आबादी वाले 6 में से पांच राज्यों में बाइडेन की पार्टी को जीत मिली है। हाऊस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में भारतीय मूल के चार उम्मीदवार जीत गए हैं। इसका अर्थ यही है कि नस्लवाद का ट्रंप कार्ड फेल हो गया आैर अमेरिकी चुनावों में जमकर ध्रुवीकरण हुआ। अर्थव्यवस्था के मुद्दे ने चुनावों में प्रभावी भूमिका निभाई है। कोरोना महामारी, जिसमें अमेरिका सबसे अधिक संक्रमित हैं, ने भी चुनाव में अहम भूमिका निभाई। अमेरिका के मध्य-पश्चिमी क्षेत्र के राज्य तो पारम्परिक रूप से रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक रहे हैं। इन राज्यों की आबादी मुख्य रूप से श्वेत लोगों की है जबकि पूर्व और पश्चिम में तटीय राज्य ऐतिहासिक रूप से डेमोक्रेट समर्थक हैं। इन्हें उदारवादी माना जाता है और ये आमतौर पर सुधार और बदलावों के समर्थक हैं। जिस तरह की ट्रंप और बाइडेन में कांटे की टक्कर रही है उससे साफ है कि ट्रंप की नीतियों के समर्थन में और विरोध में समाज में ध्रुवीकरण हुआ है। डेमोक्रेट पार्टी के पक्ष में लहर चलने के दावे भी सही नहीं निकले। ऐसा नहीं है कि ट्रंप ने अच्छे काम नहीं किये। इस्राइल और अरब देशों में महत्वपूर्ण संधियां कराने में अहम भूमिका निभाई। कई अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों से अमेरिका को अलग किया। चीन से जमकर टक्कर ली लेकिन इन सबका लाभ ट्रंप को नहीं मिला। अमेरिका में चुनाव हमेशा राष्ट्रीय मुद्दों पर होते हैं। अमेरिकी चुनावों में प्रवासी भारतीयों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और बड़े पैमाने पर उपस्थिति भी दर्ज कराई है। अमेरिका की सरकारें भारतीय अमेरिकियों का ख्याल रखती रही हैं और उनका चुनावों में समर्थन हासिल करने के प्रयास करती रही हैं। इस बार डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ने एच-वन बी वीजा को लेकर जो पाबंदियां लगाईं, उनकी जद में अप्रवासी भारतीय भी आए, उनका असर भी निश्चित रूप से इन चुनावों पर पड़ा।
कोरोना को गम्भीरता से नहीं लेना ट्रंप को महंगा पड़ा। कोरोना से सर्वाधिक मौतों के लिए ट्रंप को जिम्मेदार ठहराया गया। अमेरिकी अश्वेत नागरिक की मौत के बाद देशभर में जमकर बवाल मचा, लाखों लोगों ने सड़कों पर आकर प्रदर्शन किये। इस बार अमेरिका में बेरोजगारी का मुद्दा भी छाया रहा। अप्रवासियों के लिए सख्त नीतियां भी ट्रंप के पिछड़ने का कारण बनी। ट्रंप द्वारा एक जज के विरुद्ध आरोप लगाना भी नुक्सानदेह रहा।
जो-बाइडेन के व्हाइट हाउस में प्रवेश करने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नया दोस्त मिलेगा। अमेरिकी इमीग्रेशन भारतीय मूल के अमेरिकियों के लिए बहुत रूचि का विषय है। उम्मीद की जानी चाहिए कि बाइडेन की सरकार भारतीय मूल के अमेरिकियों का ध्यान रखेगी और भारत के साथ रिश्ते और बेहतर होंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि ट्रंप के रहते अमेरिका और भारत के रिश्ते काफी मजबूत हुए हैं। बाइडेन को भी इन रिश्तों को देखते हुए भारतीय हितों का ध्यान रखना होगा।