योगी-भागवत की मुलाकात के माएने?

योगी-भागवत की मुलाकात के माएने?

सियासी नेपथ्य की आहटों में ही भविष्य की सियासत का ‘रोड मैप’ छुपा होता है, यूपी विधानसभा के उपचुनावों से ऐन पहले मथुरा में दो घंटे से ज्यादा लंबे समय तक चली भागवत व योगी की मुलाकात ने न सिर्फ भाजपा शीर्ष नेतृत्व, बल्कि योगी विरोधियों की भी नींद उड़ा दी है
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‘देखा है तुझे सौ-सौ बार रंग बदलते तेरी आहट पर क्यों बज्म सजाऊं मैं

तुझसे दुआ सलाम ही काफी है, तेरी फिक्र में क्यों पलकें बिछाऊं मैं’

सियासी नेपथ्य की आहटों में ही भविष्य की सियासत का ‘रोड मैप’ छुपा होता है, यूपी विधानसभा के उपचुनावों से ऐन पहले मथुरा में दो घंटे से ज्यादा लंबे समय तक चली भागवत व योगी की मुलाकात ने न सिर्फ भाजपा शीर्ष नेतृत्व, बल्कि योगी विरोधियों की भी नींद उड़ा दी है। अयोध्या में रामलला के मंदिर के पूर्ण हो जाने के बाद शायद अब संघ अपने अगले एजेंडे की तैयारियों में जुट गया है, संघ एक ओर तो ‘सर्वधर्म समभाव’ की अलख जगा रहा है दूसरी ओर हिंदुत्व के नए उद्घोष की प्रतिध्वनियों को भी धार देने में जुटा है, जिसकी एक बानगी इस भगवा तान से समझी जा सकती है कि ‘बंटोगे तो, कटोगे।’ यानी अपने शताब्दी वर्ष में संघ मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थली और काशी के ज्ञानवापी मस्जिद जैसे मुद्दों से आने वाली सियासत को नया चेहरा मोहरा दे सकता है।

वैसे भी अपने शताब्दी वर्ष में संघ का इरादा प्रत्येक न्याय पंचायत में अपनी शाखा स्थापित करने का है, यूपी में अभी खंड स्तर पर नियमित तौर पर कोई 14 हजार से ज्यादा शाखाएं संचालित होती हैं। अगर संघ को खास कर यूपी में अपना विस्तार करना है तो वह योगी जैसे रथी को वहां बदलना नहीं चाहेगा, क्योंकि माहौल में शोर बहुत है खास कर हरियाणा में भगवा परचम फहराने के बाद कि आने वाले इस नवंबर माह में योगी को बदला जाएगा। सो, अब संघ प्रमुख चाहते हैं कि ऐसे कयासों पर तुरंत विराम लगाया जाए। कहते हैं संघ प्रमुख ने योगी के साथ हुई अपनी इस बैठक में 2027 में आहूत होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर गंभीर मंत्रणा की है।

हरियाणा मॉडल को महाराष्ट्र में दुहराया जाएगा

हरियाणा में भाजपा की हारी बाजी को पलटने में संघ की एक महती भूमिका मानी जाती है। हरियाणा की अप्रत्याशित जीत से गद्गद् संघ अब महाराष्ट्र में भाजपानीत गठबंधन महायुति को विजयी बनाने के लिए उन्हीं तौर-तरीकों को फिर से आजमा रहा है। हरियाणा में संघ का ‘माइक्रो मैनेजमेंट’ ही कमल के प्रस्फुटन का एक प्रमुख कारण बना, संघ ने वहां चुपचाप हरियाणा के गांवों में छोटी-छोटी बैठकें की, एक अनुमान के अनुसार चुनाव के दो सप्ताह में संघ ने हरियाणा के गांवों में 16 हजार से ज्यादा ऐसी छोटी बैठकों को अंजाम दिया ताकि वहां की जनता से सीधा संवाद स्थापित किया जा सके। अब यही योजना महाराष्ट्र में भी दुहराने की है, संघ ने इसके लिए एक चाक-चौबंद योजना बनाई है जिससे पूरे महाराष्ट्र में 75 हजार से ज्यादा ऐसी छोटी बैठकें आयोजित की जाएगी।

क्या कर रहे हैं सिसोदिया?

जेल से जमानत से छूटने के बाद आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने पूरी तरह दिल्ली विधानसभा चुनाव की कमान संभाल ली है, संभावना जताई जा रही है कि दिल्ली में चुनाव आने वाले वर्ष के फरवरी माह में हो सकते हैं। दिल्ली के ​िशक्षा मंत्री रहते सिसोदिया ने दिल्ली के सरकारी स्कूलों का कायाकल्प करने का काम किया था, जिसके लिए उनकी दुनिया भर में सराहना भी हुई।

अब चूंकि दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी मनीष की खास विश्वासी रहीं आतिशी के पास है, बावजूद इसके वह दिल्ली सरकार के कामकाज से खुद को दूर रख रहे हैं। वे थोकभाव में पद यात्राएं कर रहे हैं, अपने विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले स्कूलों का निरीक्षण कर रहे हैं। और वे इन दिनों ‘फ्यूचर ऑफ एजुकेशन’ को लेकर अपना ढेर सारा ज्ञान उड़ेल रहे हैं। मनीष अब अपनी खास शैली में लोगों को खास कर युवा वर्ग को समझाते नज़र आते हैं कि पहले शिक्षा का मूल उद्देश्य ज्ञान था, समय बदला तो ‘ज्ञान’ की जगह ‘विस्डम’ (बुद्धि) ने ले ली, फिर अब विस्डम को ‘एआई’ रिप्लेस कर रहा है। पहले शिक्षा नौकरी पाने का ध्येय मात्र हो गया था, क्या अब हमें यह संगठित करने का नया औजार बनने वाला है?’

हरियाणा की लैंड पॉलिसी दिल्ली में?

दिल्ली के लिए भाजपा यहां की लैंड पॉलिसी में एक आमूल-चूल बदलाव करना चाहती है, और कहीं न कहीं इसका सिरा डीडीए के लैंड पूलिंग पॉलिसी से भी जुड़ी है। भाजपा को लगता है दिल्ली के आने वाले विधानसभा चुनाव में यह एक बड़ा चुनावी मुद्दा हो सकता है। केंद्रीय आवास व शहरी मामलों के मंत्री मनोहर लाल खट्टर को यह महती जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वे हरियाणा के सफल लैंड पॉलिसी एक्ट को कैसे दिल्ली में भी आजमा सकते हैं।

अभी दिल्ली में एमपीडी-2041 (दिल्ली-एनसीआर मास्टर प्लॉन) का प्रारूप तय करने पर काम चल रहा है, पर यह काम भी काफी रुक-रुक कर हो रहा है। पिछले 4-5 सालों से इस मास्टर प्लॉन का काम भी एक तरह से ठंडे बस्ते के हवाले है। अब 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव की आहटों को भांपते डीडीए के शीर्ष अधिकारियों को मंत्रालय की ओर से निर्देश प्राप्त हुए हैं कि वे हरियाणा मॉडल का आधो पांत अध्ययन करें और उसके आधार पर दिल्ली की लैंड पॉलिसी का प्रारूप तय करें। एमपीडी-41 की अधिसूचना में देरी होने की वजह से दिल्ली के बाहरी इलाकों में जहां डीडीए के लैंड पूलिंग का कार्य चल रहा था, वहां विकास कार्य थम सा गया है। वहां के किसान अच्छी कीमतों पर अपनी जमीनें भी नहीं बेच पा रहे, अब लगता है उनके दिन बदलने वाले हैं।

...और अंत में

क्या आपको ब्यूरोक्रेट से नेता बने आरसीपी सिंह याद हैं, जो कभी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आंखों के तारा हुआ करते थे। नीतीश ने उन्हें जदयू कोटे से केंद्र में मंत्री भी बनवा दिया था, पर जैसे-जैसे आरसीपी अपनी निष्ठा बदल कर भगवा होते चले गए, नीतीश ने एक झटके में उन्हें अपने से अलग कर दिया। फिर आरसीपी रंग बदल कर पूरी तरह भाजपाई हो गए, पर भाजपा ने भी उनका इस्तेमाल कर बाद में उनसे किनारा कर लिया है और आरसीपी सियासी बियावां में भटकने को मजबूर हो गए। अब बिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए आरसीपी फिर से हरकत में आ गए हैं। पटना में इन दिनों जगह-जगह पोस्टर लग गए हैं आरसीपी की तस्वीर के साथ कि ‘टाईगर जिंदा है! टाईगर रिटर्न्स।’

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