यह देश आखिर किसकी चौखट पर जाकर गुहार लगाए? एक के बाद एक बवंडर उठ रहे हैं और लोग अपने आपको असहज महसूस कर रहे हैं। पहले आधार और फिर सोशल मीडिया फेसबुक से भारतीय यूूजर्स का डाटा चोरी होने पर हंगामा मचा हुआ है। नए-नए रहस्योद्घाटन हो रहे हैं। अब पता चल रहा है कि समाज और व्यापार के घालमेल में हत्याएं तक हो रही हैं।
फिर कर्नाटक चुनाव की तिथि यानी डेट पहले ही लीक हो जाती है। एक तूफान थमता नहीं कि दूसरा आ जाता है। अब सीबीएसई की 10वीं की परीक्षा के गणित और 12वीं के अर्थशास्त्र का पेपर दोबारा कराए जाने की घोषणा से देशभर के लाखों छात्रों में हताशा फैल गई है। हर कोई सवाल कर रहा है-‘यह लीकेज क्यों है भाई’। डाटा, डेट और पेपर लीक होने के बाद लोग देख रहे हैं कि आखिर यह क्या हो रहा है।
व्यवस्थाएं ध्वस्त क्यों हो रही हैं। यह कितने शर्म की बात है कि लाखों छात्र-छात्राओं की कड़ी मेहनत सीबीएसई के कारण बेकार हो गई। सोशल मीडिया पर लोग प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। एक टिप्पणी तो सीबीएसई पर करारा व्यंग्य है-‘‘उन्हें तो उसी मोटी दीवार वाली बिल्डिंग के पीछे पेपर रखने चाहिएं थे जिसमें आधार का डाटा रखा हुआ है।’’ वैसे पेपर लीक होना भारत में कोई नई बात नहीं। ऐप का डाटा लीक, एसएससी का पेपर लीक, एम्स का पेपर लीक, ऐसी खबरें हमें लगातार सुनने को मिल रही हैं।
जिस देश में मैडिकल छात्रों की आंसरशीट दो लाख रुपए में बदलने वाले गिरोह सक्रिय हैं, एसएससी की परीक्षाओं में पास कराने और हर पद के लिए रेट तय हो, उस देश में पेपर लीक होना मामूली घटना ही है। मध्य प्रदेश का खूनी व्यापमं घोटाला तो सबको याद ही है। हाल ही में कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित ऑनलाइन परीक्षाओं में नकल कराने वाले गिरोह को पकड़ा गया जो टीम व्यूअर जैसे रिमोट एक्सेस टूल सॉफ्टवेयर के जरिये उम्मीदवारों को नकल कराता था। न जाने कितने मुन्नाभाई एमबीबीएस अभी तक समाज में काम कर रहे हैं, न जाने कितने इंजीनियर उच्च पदों पर बैठे हुए हैं, कोई आकलन नहीं कर सकता।
नई प्रौद्योगिकी के साथ-साथ आपराधिक गिरोह भी उससे सुसज्जित हो चुके हैं और नए-नए तरीके आजमाए जाने लगे हैं। 10वीं-12वीं के पेपर छात्रों के हाथों में पहुंचने से पहले ही व्हाट्सएेप पर वायरल हो जाते हैं। रातभर पुलिस की क्राइम ब्रांच छापेमारी करती रही। कुछ लोगों को हिरासत में भी लिया गया है लेकिन चन्द लोगों की साजिश का खामियाजा लाखों बच्चों को भुगतना पड़ेगा। बच्चे तो सोच रहे थे कि गणित और अर्थशास्त्र का पेपर देकर टेंशनमुक्त हो चुके हैं। अब उन्हें दोबारा से तैयारी करनी होगी।
परीक्षा की पवित्रता खत्म इसलिए हुई क्योंकि गड़बड़ी सीबीएसई के भीतर से ही हुई है। जब तंत्र में खामियां हों तो पेपर लीक होंगे ही। कोचिंग सैंटरों के मालिक भी इस मामले में राडार पर हैं। बच्चों की परेशानी यह है कि जिनके पेपर अच्छे हुए, उन्हें लगता है कि शायद दोबारा उनके पेपर अच्छे न हों। पेपर आसान आया था, जरूरी नहीं कि दूसरा पेपर भी आसान हो। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी चिन्तित हैं, मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी नाखुश हैं।
उन्होंने भले ही परीक्षाओं को लीकप्रूफ बनाने और किसी के साथ अन्याय नहीं होने देने की बात कही है लेकिन अभिभावक कह रहे हैं कि अन्याय तो हो चुका है, अब तो लीपापोती ही की जाएगी। पेपर वायरल होने के बाद 1300-1300 रुपए में बेचे भी गए। परीक्षाओं के दौरान छात्रों के जूते तक उतरवा लिए जाते हैं लेकिन व्यवस्था के भीतर बैठे लोगों का सच कभी सामने नहीं आता।
पेपर लीक और ऑनलाइन परीक्षाओं में धांधलेबाजी व्यवस्था में मौजूद अधिकारियों के भ्रष्टाचार की ओर सीधा इशारा करती है। अगर ऐसे ही चलता रहा तो पता नहीं यह देश कब बदलेगा? कभी पनामा पेपर लीक हुए थे तो हड़कंप मच गया था। पनामा पेपर एक अंतर्राष्ट्रीय रूप में किया गया भ्रष्टाचार था, जिसका खुलासा 11.5 मिलियन डाक्यूमेंट फाइल के लीक होने से हुआ। यह फाइल पनामा स्थित एक अपतटीय मोस्सक फर्म से सम्बन्धित थी। इस कम्पनी ने कई देशों के लोगों को टैक्स बचाने में गैरकानूनी रूप से मदद की थी।
साथ ही यहां से काफी मात्रा में मनी लांड्रिंग भी हुई थी। पनामा पेपर्स में कुछ भारतीयों के नाम भी हैं। सवाल देश के लोगों के जीवन की शुचिता और ईमानदारी का है। जब रग-रग में भ्रष्टाचार फैल गया हो तो फिर धांधलेबाजी रुकेगी कैसे? फिलहाल अभिभावक बच्चों को निराशा और तनाव में नहीं आने दें और उन्हें नई परीक्षा केे लिए मानसिक रूप से तैयार करें। इस देश में हर परिस्थिति का सामना करने के लिए बच्चों को तैयार रहना ही होगा। दोबारा परीक्षा सभी को एक और निष्पक्ष मौका देने के लिए ही है। उन्हें एग्जाम वारियर बनना ही होगा। इंतजार करना होगा कि व्यवस्थाएं कब लीकप्रूफ बनती हैं।