लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

लॉकडाऊन का बढ़ना ही दवा

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपेक्षा के अनुरूप ही 21 दिन के लाॅकडाऊन को 19 दिन और आगे बढ़ाने का फैसला किया है।

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपेक्षा के अनुरूप ही 21 दिन के लाॅकडाऊन को 19 दिन और आगे बढ़ाने का फैसला किया है। कुल 40 दिनों के लाॅकडाऊन के बाद भारत कोरोना पर विजय प्राप्त करके बाहर निकलेगा, इसकी अपेक्षा सभी भारतवासियों को है क्योंकि इस युद्ध में प्रत्येक नागरिक एक अनुशासित सिपाही की तरह व्यवहार कर रहा है और एक-दूसरे से भौतिक दूरी बना कर कोरोना को परास्त करने के अभियान में लगा हुआ है मगर कुछ लोगों की अक्ल पर पत्थर पड़े हुए हैं जो इस आपदाकाल में भी राजनीति करना चाहते हैं। कांग्रेस के नवोदित नेता मनीष तिवारी समझा रहे हैं कि बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड आदि राज्यों के प्रवासी कामगारों को दूसरे राज्यों में अगले 19 दिनों तक कैसे रोका जा सकता है? तिवारी जी सर्वोच्च न्यायालय में वकालत करते हैं। अतः कानूनी नुक्ते समझा रहे हैं और दलील दे रहे हैं कि एेसे लाखों लोगों का कोरोना टैस्ट करके उनके निर्मुक्त पाये जाने पर उन्हें अपने मनचाहे राज्य में जाने की छूट मिलनी चाहिए, जबकि कांग्रेस पार्टी के ही महाविद्वान माने जाने वाले वकील और उद्भट संसदविद श्री अभिषेक मनु सिंघवी ने केवल यह सवाल उठाया है कि गरीब जनता के भरण पोषण की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए। श्री सिंघवी का तर्क काबिले गौर है क्योंकि प्रवासी कामगार रोजी-रोटी की तलाश में ही दूसरे राज्यों में जाते हैं। अतः असली मुद्दा यह है कि इन कामगारों को उनके नियोक्ता उनके वेतन में कटौती न करें और नौकरी से बाहर न करें। मूल सवाल यह है कि रोजी-रोटी की तलाश में लाॅकडाऊन समाप्त हो जाने के बाद ये कामगार पुनः उन राज्यों का रुख करने को मजबूर होंगे जहां रोजगार के प्रचुर अवसर सुलभ होते हैं। श्री सिंघवी जैसे तर्कशास्त्री के तर्क पर सरकार को गौर करने की जरूरत है और उम्मीद है कि इस बारे में कुछ कठिन कानूनी पेंच वित्तमन्त्री निर्मला सीतारमन जल्दी ही लगायेंगी। हालांकि आज प्रधानमन्त्री ने अपील की है और जो सात सूत्र लाॅकडाऊन की सफलता के लिए दिये हैं उनमें से एक इसी समस्या को समर्पित है जिसमें उन्होंने कहा है कि किसी की नौकरी न जाये और पूरा वेतन भी मिले। कोरोना की आपदा एेसी आयातित आपदा है जिसका सम्बन्ध वर्तमान की भूमंडलीय सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों से है। यही वजह है कि इसका प्रकोप वैिश्वक स्तर पर है परन्तु इसका निदान पूरी तरह संरक्षणवादी राष्ट्रीय तरीकों से ही संभव है जिसे सोशल डिस्टेंसिंग या भौतिक अलहदगी कहा जा रहा है। इसके लिए जरूरी है कि जो जहां है वहीं रहे। बेशक लोकतान्त्रिक सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे घबराहट में पलायन करने वाले लोगों को ढांढस बन्धायें आैर उनकी सुरक्षा की व्यवस्था करें। इसके प्रयास सभी राज्य सरकारें मुस्तैदी से कर भी रही हैं परन्तु भारत की घनी आबादी और विशालता के मद्देनजर एेसी नीति को अमलीजामा पहनाये जाने पर कमियों का उजागर होना भी स्वाभाविक है क्योंकि दशकों से चली आ रही सरकारी कामकाज की संस्कृति को रातों-रात नहीं बदला जा सकता मगर इसमें भी कोई दो राय नहीं हो सकती कि पलायन को तत्पर लोगों को आर्थिक रूप से सशक्त करने का काम भी सरकार का है और यह कार्य उसे कानूनी नुक्ते लगा कर भी करना चाहिए। अतः कुटीर, लघु, मध्यम व दुकान (शा​पिंग एक्ट),  भवन निर्माण व अन्य निर्माण कार्यों में पंजीकृत कामगारों व मजदूरों के हितों के संरक्षण हेतु केन्द्र सरकार को अधिसूचना जारी करके उनके वेतन व रोजगार का संरक्षण करना चाहिए और इस हेतु इस क्षेत्र के लिए आर्थिक पैकेज देना चाहिए। प्रधानमन्त्री ने आज के सम्बोधन में इस वर्ग के लोगों के लिए अपनी विशेष चिन्ता जताई है और कहा है कि रोजाना कमा कर खाने वालों के दुखों के निवारण हेतु ही वह 20 अप्रैल तक का समय निश्चित कर रहे हैं जिसमें यह देखा जायेगा कि कोरोना का प्रसार नये इलाकों में नहीं हो रहा है तो कुछ ढील लाॅकडाऊन की शर्तों में दी जाये। भारत में लगभग चार करोड़ लोग एेसे हैं जो खोमचा-पटरी पर सामान रख कर व फेरी लगा कर अपना रोजगार चलाते हैं।
  पिछले 21 दिन से इन सभी का धन्धा पूरी तरह बन्द है। रोजगार के पेशे के खाने में इनका पंजीकरण बहुत कम तादाद में होता है। यहां तक कि जो पेंशन स्कीम सरकार ने चलाई है उससे भी ये लोग बेखबर हैं। विभिन्न जातियों व उपजातियों में बंटे ये लोग विभिन्न धर्मों को मानने वाले हैं और इक्का-दुक्का के तौर पर सरकारी स्कीमों के लाभार्थी बन पाते हैं। अतः ऐसे लोगों के लिए यदि 20 अप्रैल के बाद वातावरण खुला बनता है तो उनके चेहरों पर चमक लौट सकती है मगर इसके लिए जरूरी है कि पूरा समाज एकजुट होकर बिना किसी राजनीति में पड़े लाॅकडाऊन का पालन पूरे मन से करें। दरअसल प्रधानमन्त्री का मन्तव्य यही था कि भौतिक अलहदगी के साथ अब आर्थिक मोर्चे की तरफ भी देखना होगा, जिससे लाॅकडाऊन समाप्त होने पर भारत अपनी उत्पादनशीलता बरकरार रख सके लेकिन यह भी नहीं भूला जाना चाहिए कि अभी तक भारत के लोग लाॅकडाऊन का पालन कमोबेश पूरी तरह अनुशासित होकर करते आ रहे हैं। बेशक कुछ तत्व ऐसे रहे हैं जिन्होंने समूचे समाज व सरकारी प्रयासों पर पानी फेरते हुए ‘कोरोना कैरियर’ तक बनने की गुस्ताखी की। इसमें तबलीगी जमात के वे लोग शामिल हैं जो जानबूझ कर इस बीमारी को छिपाते हुए मस्जिदों में छिपते रहे और जिन्होंने ‘कोरोना वारियर’ वर्ग के लोगों के साथ आपराधिक गुस्ताखियां कीं। इन्हें सद्बुद्धि देने के लिए ही विभिन्न राज्य सरकारों ने व्यापक धरपकड़ अभियान भी चलाया और सफाई कर्मियों से लेकर पुलिस कर्मियों तक ने इनकी पहचान में अहम भूमिका निभाई। अब यह सितमगिरी बन्द होनी चाहिए और जमातियों को भारतीय नागरिक होने का सबूत देकर अनुशासित सिपाही की तरह आचरण करना चाहिए। दिल्ली में 362 जमातियों में कोरोना के लक्षण पाये जाना ताजा सबूत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

4 × 5 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।