भारत में तो क्या दुनियाभर में अगर किसी महान उद्योगपति, समाजसेवी का नाम लिया जाए तो रतन टाटा का नाम सबसे पहले लिया जायेगा। उनसे बड़ा उद्योगपति, उनसे बड़ा दिलदार, उनसे बड़ा ईमानदार, उनसे बड़ा राष्ट्रभक्त और उनसे बड़ा सादगी और शालीनता से भरा इंसान था ही नहीं। जिस आदमी ने आजादी से पहले भारत की गरीबी को देखा और देश के एक आम नागरिक को अमीर की तरह कार का मालिक होने का सपना संजोया देश का वह रतन टाटा अब इस दुनिया से विदा ले चुका है। लेकिन उनकी सौ से ज्यादा कंपनियां आज भी कार्यरत हैं और काम करती रहेंगी।
कुछ दिन पहले रात को चैनल देखते हुए न्यूज ब्रेक हुई कि रतन टाटा जी की हालत बहुत गंभीर है। लेकिन उन्होंने अस्पताल से बुलेटिन में कहा कि मुझे गुड लक कहने वालों का शुक्रिया और मैं जल्दी ठीक हो जाऊंगा। लेकिन 86 साल के रतन टाटा आखिरकार दुनिया से विदा ले गए। मुझे उनके बारे में कुछ पढऩे की इच्छा हुई। एक बहुत दुर्लभ इंटरव्यू सामने आया जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया। उन्होंने कहा था मैं फैसले लेता हूं और फिर इन्हें सही साबित करने की कोशिश करता हूं। टाटा सन्स के चीफ रतन टाटा ने कहा कि ताकत और पैसा मेरी भूख नहीं है। उनके विचार कमाल के थे। इसके बाद टाटा ने कहा जो मेरे साथ चलना चाहते हैं और तेज चलना चाहते हैं तो मुझसे दूर रहें लेकिन अगर आप बहुत दूर तक चलना चाहते हैं तो मेरे साथ चलें। कहते हैं सादा जीवन उच्च विचार। यह बात कहना बड़ा सरल है लेकिन रतन टाटा के बारे में स्पष्ट है कि अरबों-खरबों रुपये के मालिक होने के बावजूद उनमें दिखावेबाजी बिल्कुल नहीं थी।
मेरा मानना है कि लोहे को नष्ट करना आसान नहीं लेकिन उसके अंदर जब खुद जंग लगेगा तो वह तबाह हो जायेगा। अंदर से जो ताकतवर होता है वही रतन टाटा होता है क्योंिक उनकी मानसिकता बड़ी मजबूत थी। फिर आप कल्पना कीजिए कि एक आदमी न्यूयॉर्क से पढऩे के बाद आर्किटेक्चर में बीएससी डिग्री लेने के बाद कंपनियां बनाने का काम शुरू करता है और छ: से ज्यादा महाद्वीपों में सौ से ज्यादा कंपनियां बना लें, लोग कहेंगे कि बिजनेसमैन यूं ही करते हैं। लेकिन रतन टाटा जमीन पर रहने वाले शख्स थे और अपनी ही कंपनी के कारोबार का अनुभव लेने के लिए उन्होंने एक शॉप फ्लोर पर भी काम किया था। स्टील, साफ्टवेयर, आटोमोबाइल, गलोबल पावर हाउस, बिजली कंपनियां, कंसलटेंसी, शिक्षा जगत, स्वास्थ्य की दुनिया भारत की रसोई से लेकर आसमान तक उनके प्रोड्क्ट चलते थे। उनके पिता नवल टाटा ने उन्हें पारिवारिक बिजनेस सौंपा तो उन्होंने टाटा कंपनी को दुनिया में अमर कर दिया। मेरा मानना है कि टाटा भी परिवारों के हेड की तरह थे और सादगी में यकीन रखते थे। दुनिया के बड़े लोगों को सादा जीवन अगर आत्मसात करना हो तो रतन टाटा से सीखा जाना चाहिए। उनकी जिंदगी में उपलब्धियंा भरी पड़ी हंै। वह सही मायनों में दिखावा नहीं करते थे लेकिन लोगों के लिए उम्मीदों का चिराग थे। इंसानियत और विनम्रता उनकी सादी जिंदगी के आभूषण थे।
कई बार जीवन में ईमानदार आदमी के साथ विवाद भी जुड़ जाते हैं। नैनो कार जब उन्होंने एक लाख रुपये में तैयार करके दिखा दी तो बंगाल में बवाल खड़ा हो गया। रतन टाटा ने एक सैकेंड नहीं लगाया और इतने बड़े प्लांट को बंगाल से शिफ्ट कर दिया। वह विवादों से दूर रहना चाहते थे और दूर रहे भी। बड़ी ईमानदारी के साथ उन्होंने एयरलाइन कंपनी फिर से शुरू करने की इच्छा जताई तो घाटे में चल रही एयर इंडिया को गोद लेकर इसे दोबारा खड़ा कर दिया।
एक ऐसा व्यक्ति जो शोबाजी नहीं करता। जब कार से उतर रहे हों तो अपना बैग और फाइलें खुद उठाकर चलना वह अपना काम समझते थे। उन्होंने कहा कि गरीबी से ऊपर उठने के लिए ईमानदारी की जरूरत है। इस तथ्य को लोगों तक उन्होंने पहुंचाया। आत्मनिर्भर भारत में उनका भी योगदान है। देश का प्रचम दुनिया में बुलंदी पर लहराने में टाटा का योगदान है। देश के प्रधानमंत्री हो या दुनिया के बड़े नेता या फिर बड़े से बड़े उद्योगपति सबने टाटा के निधन पर यही कहा कि एक ईमानदार सच्चा इंसान और राष्ट्रभक्त भारतीय चला गया। काश वह समाचार पत्र की दुनिया में भी उतरे होते तो एक मिशाल यहां भी कायम कर जाते। दुनिया के इस असाधारण शख्स को और भारत के रतन को यह कलम कोटि-कोटि नमन करती है।