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मिशन एडमिशन - नो टेंशन

अब जबकि 12वीं की परीक्षाओं के परिणाम घोषित हो चुके हैं और कालेजों में दाखिले की प्रक्रिया भी शुरू होने वाली है। कालेज जीवन शुरू करने वाले छात्रों के लिए यह बहुत ही संवेदनशील समय है। उनका करियर उच्च शिक्षा पर ही निर्भर है। राजधानी दिल्ली में और अन्य महानगरों में अपनी मनपसंद के कालेजों में दाखिला लेना किसी संग्राम से कम नहीं है। अंकों की प्रतिस्पर्धा इतनी अधिक है कि एक-एक अंक के चलते छात्रों को अपनी पसंद के विषयों और कालेजों में दाखिला नहीं मिलता। उन्हें तीसरी, चौथी कटऑफ लिस्ट का इंतजार करना पड़ता है। प्रायः छात्र कालेजों पर अधिक फोकस करते हैं। मगर दाखिलों के समय छात्रों को विषयों के चुनाव को प्राथमिकता देनी चाहिए। शिक्षाविदों का मानना है कि यदि आपको मनपसंद विषय मिल रहे हैं तो इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता। दिल्ली विश्वविद्यालय और सम्बद्ध कालेजों में लगभग 54 हजार सीटें हैं लेकिन आवेदन करने वाले छात्र लाखों में होंगे। आजकल विषयों की भरमार है। बेहतर यही होगा कि छात्र अपने विषयों से सम्बन्धित विशेषज्ञों और करियर काउंसलरों की राय लें। जिन बच्चों के अंक ज्यादा नहीं हैं उन्हें हताश होने की जरूरत नहीं है। बहुत ज्यादा अंक प्रतिशत जीवन की सफलता का ही एक पैमाना नहीं है। व्यावहारिक जीवन में यह भी देखा गया है कि कम अंक पाने वाले छात्र  जीवन में बुलंदियों को छू लेते हैं। यह छात्रों की अपनी प्रतिभा पर निर्भर करता है। आजकल तो कई छात्र ऐसे देखे गए हैं जिन्होंने अपनी बौद्धिक क्षमता का भरपूर इस्तेमाल करते हुए विभिन्न क्षेत्रों में सफलताएं प्राप्त की हैं। उन्हें आंकलन करना होगा कि वह किस विषय में बेहतर कर सकते हैं। यहां तक मैडिकल और इंजीनियरिंग या अन्य व्यावसायिक  पाठ्यक्रमों में दाखिलों का सवाल है वहां उन्हें प्रवेश परीक्षा देनी ही पड़ेगी आैर उसी के आधार पर उन्हें दाखिला मिलेगा। कई छात्र अंक प्रतिशत कम होने को जिन्दगी की ही विफलता मान लेते हैं और कई बार वह अवसाद का शिकार हो जाते हैं या फिर आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं। जीवन में एक ही विफलता ऐसे जीवन खत्म नहीं होता। उन्हें साहस के साथ जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए सक्षम बनना चाहिए। 

क्योंकि मैं सामाजिक जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में सक्रिय हूं। पंजाब केसरी के बहुत ही तेजी से एजुकेशन का ब्रेंड बन रहे जे.आर. मीडिया इंस्टीट्यूट की चेयरपर्सन होने के नाते 12वीं पास स्टूडेंट्स और उनके पैरेंट्ïस से यही कहना चाहूंगी कि जीवन की असली पहचान चुनौतियों से ही होती है। आज के कंपीटीशन के जमाने में शत-प्रतिशत अंक लाना एक रिवाज सा बन गया है लेकिन यह भी तो सच है कि हर छात्र शत-प्रतिशत अंक नहीं ला सकता। ऐसे में सवाल पैदा होता है क्या सत्तर प्रतिशत से ज्यादा अंक वाला योग्य नहींं  है। मेरा इतना कहना है कि भारी प्रतिशत के पीछे भागने के बजाए टेंशन लेने की जरूरत नहीं है। कॉमर्स या साइंस या मेडिकल साइंस जैसी मेन स्ट्रीम में अगर दाखिला नहीं मिल रहा तो आज के प्रोफेशनल जमाने में बहुत से ऐसे कोर्स हैं जो कॅरियर संवारते हैं। हमारा जे.आर. मीडिया इंस्टीट्यूट मास कॉम अर्थात पत्रकारिता में यूनिवर्सिटी की ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री चला रहा है। इन डिग्री कोर्सों के अलावा रिपोर्टिंग, एंकरिंग और वीडियो एडिटिंग के साथ-साथ पेज डिजाइनिंग के कोर्स हैं। एडमिशन चल रहे हैं। मार्क्स का कोई पंगा नहीं। इसी तरह पॉली टेक्नीक की तर्ज पर बीसीए, बीबीए, बीटैक जैसे प्रोफेशनल कोर्स चल रहे हैं। आजकल तो शिक्षा के मामले में खूब विकल्प है। अगर सरकारी यूनिवर्सिटी में दाखिला नहीं मिला तो अन्य प्राइवेट विश्वविद्यालय भी यूजीसी से जुड़े हैं और लाखों लोग डिग्री हासिल करके अपना करियर सैट कर रहे हैं। बात वहीं आकर ठहर जाती है कि बहुत ज्यादा चिंता करोगे तो मन में निराशा ही आती है लेकिन अगर हम 60 से 70 या 80 प्रतिशत अंकों के पाने पर खुश होकर अच्छा विकल्प चुन लेते हैं तो इसे सकारात्मक पहलू कहा जाना चाहिए और इसका परिणाम अच्छा ही निकलेगा। फिर से स्पष्ट करना चाहूंगी कि जीवन के क्षेत्र में ऐसे लाखों लोग हैं जिनके अंक कम आए लेकिन उन्होंने टॉप पोजीशन हासिल की। अंकों को करियर या पसंद के कॉलेज एडमिशन से जोड़कर न देखा जाये। बेहतर विकल्प चुन लिया जाना चाहिए। हम आपका मार्गदर्शन करने को तैैयार हैं। पैरेंट्स को भी आगे आकर इस दिशा में पहल करनी चाहिए तो स्टूडेंट्स का मिशन एडमिशन शत-प्रतिशत रूप से सफल होकर ही निकलेगा। 

कोरोना के बाद एग्जाम, फिर नतीजे, इस  बार थोड़ा फर्क था परन्तु टैंशन की जरूरत नहीं। बड़े रास्ते खुले तो न माता-पिता को टैंशन नहीं होनी चाहिए, न छात्रों को। यहां तक कि मैं हर शिक्षण संस्थान को प्रार्थना करूंगी की आगे बढ़कर स्टूडेंट्स को सहयोग करें। जैसे हमारे संस्थान में कम नम्बर वालों की भी फीस कम है और तीन  स्कॉलरशिप भी हैं, जो लाला जगत नारायण, राेमेश जी और अश्विनी जी के नाम पर हैं। जो विद्यार्थी पढ़ना चाहते हैं, जिन्दगी में कुछ बनना चाहते हैं उन्हें पढ़ाई के साथ-साथ संस्कार भी ​दिए जाते हैं।