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मोदी मंत्रिमंडल का ‘महापरिवर्तन’

मोदी मंत्रिमंडल में आज हुए फेरबदल को महाविस्तार या महापरिवर्तन भी कहा जा सकता है क्योंकि एक दर्जन से अधिक मन्त्रियों को सरकार से बाहर करके 36 नये मन्त्रियों को शामिल किया गया है

मोदी मंत्रिमंडल में आज हुए फेरबदल को महाविस्तार या महापरिवर्तन भी कहा जा सकता है क्योंकि एक दर्जन से अधिक मन्त्रियों को सरकार से बाहर करके 36 नये मन्त्रियों को शामिल किया गया है और सात राज्यमन्त्रियों का औहदा बढ़ा कर उन्हें कैबिनेट स्तर का मन्त्री बनाया गया है। सरकार से बाहर जाने वालों में सबसे ऊपर नाम स्वास्थ्य मन्त्री डा. हर्षवर्द्धन का लिया जायेगा जो कोरोना संक्रमण दौर में खासे विवादित हो गये थे। इसके साथ ही सूचना व प्रसारण मन्त्री प्रकाश जावडेकर को भी बार का रास्ता दिखा दिया गया है और शिक्षामन्त्री रमेश पोखरियाल को घर बैठा दिया गया है। आश्चर्यजनक यह भी है कि कानून व सूचना प्रौद्योगिकी मन्त्री रवि शंकर प्रशाद का बिस्तर भी गुल कर दिया गया है। इसके साथ ही कर्नाटक के पूर्व मुख्यमन्त्री रहे रसायन व उर्वरक मन्त्री सदानन्द गौड़ा को भी आराम करने के लिए कहा गया है। इससे कम से कम यह निष्कर्ष निकलता ही है कि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी अपने मन्त्रियों से परिणाम चाहते हैं और जिसमें असफल पाये जाने पर उन्हें पद मुक्त करने में कोई संशय नहीं होता। लोकतन्त्र में सरकार की सफलता के लिए मन्त्रियों का योग्य होना बहुत जरूरी होता है मगर इस योग्यता का किताबी डिग्रियों से कोई लेना-देना नहीं होता बल्कि जमीनी ज्ञान से लेना-देना होता है जिसके बूते पर लोकतन्त्र चलता है। जन अपेक्षाओं पर खरा उतरना किसी भी सरकार की कसौटी होती है और इसके लिए उसके प्रत्येक मन्त्री को लोगों के दिलों में झांक कर लोक कल्याण के फैसले करने होते हैं। 
भारत की विविधता को देखते हुए केन्द्रीय मन्त्रिमंडल में प्रत्येक क्षेत्र व वर्ग का प्रतिनिधित्व भी मायने रखता है जिससे सरकार स्वयं विविधता में एकता का नमूना पेश कर सके। मौजूदा फेरबदल में प्रधानमन्त्री ने इस तथ्य का ध्यान रखा है और समाज के विभिन्न वर्गों को समुचित प्रतिनिधित्व देने का ध्यान रखा गया है। उत्तर से लेकर दक्षिण व पूर्व से लेकर पश्चिम तक सभी राज्यों को मन्त्रिमंडल में स्थान देने का प्रयास किया गया है। बेशक यह कहा जा सकता है कि मौजूदा सरकार में पिछड़ों व अनुसूचित वर्गों के अलावा महिलाओं को भी समुचित प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की गई है और युवाओं को भी यथा संभव स्थान दिया गया है। मगर लोकतन्त्र में प्रतिनिधित्व व प्रवक्ता दो एेसे तत्व होते हैं जिनका महत्व राजनीति में सर्वाधिक होता है। इन दोनों पक्षों में सन्तुलन लोकतन्त्र इस प्रकार रखता है कि वंचित समाज अपना जायज हक अधिकार के रूप में ले सके। अतः स्वाभाविक रूप से लोकतन्त्र में समुचित प्रतिनिधित्व तभी हो सकता है जब उस वर्ग के प्रवक्ता प्रबुद्ध व योग्य हों। 
फिलहाल भारत के सामने समस्याओं का अम्बार लगा हुआ जिनसे निपटने के लिए केन्द्रीय स्तर पर जमीन से जुडे़ जन प्रतिनिधियों की आवश्यकता है। प्रधानमन्त्री ने इस तरफ ध्यान दिया है और ऐसे लोगों को मन्त्रिपरिषद में स्थान देने का प्रयास किया है जो अपने वर्ग के प्रभावी प्रवक्ता भी हैं।  वर्तमान चुनौतियों को देखते हुए यह समूची सरकार को एक नई आभा से भरने का प्रयास है जिससे पूर्व की भूलों को सुधारा जा सके। क्योंकि लोकतन्त्र सरकार को कभी भी लाचार नहीं बनाता है बल्कि हर परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए उसे सा-धिकार बनाता है। यह ताकत सरकार को लोग ही संविधान के माध्यम से देते हैं। 

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