मोदी सरकार की नई पहल यूनिफाइड पेंशन स्कीम

मोदी सरकार की नई पहल यूनिफाइड पेंशन स्कीम
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यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) सरकार की नई पहल है जो सरकारी कर्मचारियों को उनकी सेवा की अवधि और अंतिम निकासी वेतन के आधार पर स्थिर पेंशन प्रदान के उद्देश्य से शुरू की गई है। यूपीएस के तहत कर्मचारियों को सुनिश्चित पेंशन, परिवार को पेंशन, सुनिश्चित न्यूनतम पेंशन, पेंशन की राशि की महंगाई दर के साथ जोड़ने और सेवानिवृत्ति के समय ग्रेच्यूटी के अलावा भी एक सुनिश्चित राशि के भुगतान की व्यवस्था की गई है।
योजना में न्यूनतम 10 वर्षों की सेवा के बाद 10,000 प्रति माह की पेंशन की गारंटी दी गई है। इसके अतिरिक्त सेवानिवृत्ति पर एकमुश्त भुगतान और पारिवारिक पेंशन का भी प्रावधान है। एक तरह से यह पुरानी पेंशन स्कीम की तरह ही होगी लेकिन अंतर सिर्फ इतना होगा कि ओपीएस में जहां कर्मचारियों को योगदान नहीं देना होता था, यूपीएस में नई पेंशन स्कीम (एनपीएस) की तर्ज पर ही 10 प्रतिशत योगदान देना होगा। यूनिफाइड पेंशन स्कीम यानी यूपीएस सरकारी कर्मचारियों के लिए नई पेंशन योजना है। इस योजना के तहत कर्मचारियों को एक निश्चित पेंशन का प्रावधान किया जाएगा जो नई पेंशन योजना यानी एनपीएस से अलग है, जिसमें पेंशन की राशि निश्चित नहीं होती थी।
मोदी सरकार ने इस स्कीम को 'सुनिश्चित आर्थिक सुरक्षा' करार दिया है। अलग-अलग श्रेणियों में जो पेंशन बनेगी वह 'सुनिश्चित' तौर पर सेवानिवृत्त हो रहे कर्मचारी को मिलेगी। पेंशन के साथ 'महंगाई राहत' को भी जोड़ा गया है। यदि राज्य सरकारें भी इस नई घोषित स्कीम से जुड़ना चाहती हैं तो कुल 90 लाख के करीब कर्मचारी इसके दायरे में होंगे।
पुरानी पेंशन योजना यानी ओपीएस और नई पेंशन योजना यानी एनपीएस में मूल अंतर ये है कि ओपीएस नॉन कॉन्ट्रीब्यूट्री थी और एनपीएस कॉन्ट्रीब्यूट्री है। इसमें 10 प्रतिशत कर्मचारी का भी कटेगा, ये पहले भी कटता था लेकिन वो ब्याज के साथ रिटर्न हो जाता था। यह स्कीम 1 अप्रैल, 2025 से लागू होगी। इससे पहले 'ओल्ड पेंशन स्कीम' (ओपीएस) थी, जिसमें संशोधन कर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 'न्यू पेंशन स्कीम' (एनपीएस) बनवाई थी। यह दीगर है कि केंद्र में सत्ता बदल गई लेकिन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने एनपीएस को लागू किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपीएस को मंजूरी मिलने के बाद इसे कर्मचारियों की गरिमा और आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने वाली योजना कहा है। वहीं इस मुद्दे को चुनावी राजनीति से भी जोड़कर देखा जा रहा है। असल में हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में चुनाव घोषित हो चुके हैं और महाराष्ट्र, झारखंड में अगले माह चुनावों की घोषणा होनी है। चुनावों के मद्देनजर ही केंद्रीय कैबिनेट ने जिस 'यूनिफाइड पेंशन स्कीम' (यूपीएस) को स्वीकृति दी है, उससे 23 लाख से अधिक केंद्रीय कर्मचारियों को लाभ होगा।
चुनावी राजनीति के मद्देनजर ही केरल, राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और हिमाचल की सरकारों ने ओपीएस लागू करने की घोषणाएं की थीं। तब राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें थीं। अब भाजपा सरकारें हैं, लिहाजा राजनीति बदल गई है। महाराष्ट्र में भाजपा, शिवसेना और एनसीपी की 'महायुति सरकार' है। इधर केंद्र ने स्कीम की घोषणा की, उधर 'महायुति सरकार' ने भी स्वीकृति दे दी।
बहरहाल सवाल है कि नई पेंशन स्कीम क्यों घोषित की गई है? यूपीएस में ओपीएस और एनपीएस के तत्त्व भी शामिल हैं। यह दोनों पेंशन योजनाओं के बीच का रास्ता है। पेंशन में आर्थिक सुधार किए जा सकते थे। अब राजनीति के मद्देनजर असमंजस बने रहेंगे कि यूपीएस लागू करें या ओपीएस को लागू करने के प्रयास किए जाएं। बेशक यूपीएस की घोषणा से खासकर केंद्रीय कर्मचारी गद्गद् हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने सीधे ही उनके संगठनों के साथ विमर्श किया। उनके पक्ष और तर्क सुने गए।
हमारे देश में 65-70 करोड़ ही कामगार हैं। उनमें भी केंद्र और राज्य सरकारों के करीब 90 लाख कर्मचारी हैं जो पेंशनधारक रहेंगे और उनकी मृत्यु के बाद पत्नी या पति को 60 फीसदी पेंशन मिलती रहेगी। यूपीएस का सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ पड़ना निश्चित है। खुद सरकार ने बताया है कि नई योजना से पहले वर्ष में ही, 6250 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। जो कर्मचारी एनपीएस के दौर में 2004 में सेवानिवृत्त हुए थे उनके एरियर भुगतान के लिए भी 800 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ेंगे।
केंद्र और राज्य सरकारों के बजट में पेंशन पर खर्च करने के लिए बड़ा हिस्सा आवंटित कर रखा है। 2023-24 में केंद्र और राज्य सरकारों ने पेंशन के लिए क्रमश: 2.3 लाख करोड़ रुपए और 5.2 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए थे। राज्यों और संघशासित क्षेत्रों के पेंशन के लिए बजट को इकट्ठा कर दिया जाए तो 2023-24 में उनके राजस्व व्यय का अनुमानतः 12 फीसदी बनता है। यह छोटी पूंजी नहीं है। उप्र, केरल, हिमाचल के संदर्भ में यह पूंजी काफी ज्यादा है। बेशक भारत की अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे तेज गति से बढ़ रही है लेकिन यह इतनी भी नहीं है कि हम 2047 में 'विकसित भारत' का सपना साकार कर सकें।
अब यूपीएस में भारत सरकार 18.5 फीसदी का योगदान देगी, जबकि पहले यह हिस्सा 14 फीसदी का था। यह भी अतिरिक्त बोझ है। यह राशि पेंशन के तौर पर एक बहुत छोटे श्रम-बल पर खर्च की जानी है। यह अंजाम भी सरकार और देश को भुगतना पड़ेगा कि अन्य जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए बजट सिकुड़ने लगेगा। यूनिफाइड पेंशन स्कीम से हालांकि देश पर वित्तीय भार पड़ेगा, पर इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा की रिटायर्ड व्यक्ति आर्थिक रूप से सशक्त होगा। उसे किसी के ऊपर निर्भर होने के आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
पेंशन हमारी व्यवस्था की परंपरा रही है। निस्संदेह, पूरा जीवन राजकीय सेवा में लगाने वाला कर्मचारी रिटायर होने के बाद आर्थिक असुरक्षा में घिर जाता है। वह भी तब जब देश में सामाजिक सुरक्षा योजनाएं नगण्य हैं। सेवानिवृत्ति के बाद आय के साधन सीमित होने,बढ़ती उम्र की बीमारियों के दबाव तथा बच्चों की अनदेखी के चलते पूर्व कर्मियों को उपेक्षित जीवन जीने को बाध्य होना पड़ता है। यही वजह है कि देश में एकीकृत पेंशन योजना को सकारात्मक प्रतिसाद मिला है। विपक्षी दल भी विरोध करने के बजाय कह रहे हैं कि उनकी मुहिम से ही यह पेंशन योजना अस्तित्व में आयी। यह सुखद ही है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के जरिये कर्मचारी हित में सकारात्मक बदलाव संभव हुआ।

– रोहित माहेश्वरी

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