देश में आजादी की जंग से बड़ी कोई जंग नहीं थी। अंग्रेजों के दमन के खात्मे के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक ही आह्वान किया था कि विदेशी कंपनियां अगर भारत में अपना माल बेचती हैं तो उन्हें स्वदेशी आंदोलन से ही खत्म किया जा सकता है। स्वदेशी अर्थात ऐसा माल जो अपने देश में बने। बापू का यह प्रयोग खादी और चरखे के रूप में देश में क्रांति लाया और आज भी भारतीय कपड़े की दुनिया में कोई टक्कर नहीं है। इसी तरह अब एक और जंग का भारत सामना कर रहा है, वह है कोरोना। यह बात अलग है कि पूरी दुनिया कोरोना से जूझ रही है परंतु पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपिता बापू के नक्से कदमों पर चलते हुए लोकल पर वोकल का आह्वान किया। अर्थात हमें पहले उन चीजों को महत्व देना चाहिए जो घरेलू स्तर पर बनती हों और बराबर इसका प्रचार भी किया जाना चाहिए क्योंकि अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है यद्यपि पीएम मोदी ने बीस लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है और वित्तमंत्री निर्मला सीता रमन इसी दिशा में काम भी कर रही हैं लेकिन मोदी जी ने जो लोकल चीजों को महत्व दिये जाने की बात कही है वह यह प्रमाणित करता है कि हम घरेलू स्तर पर बनाई हुई अपनी चीजों को अगर और भी तेजी से बनाते हैं और बाजार में उसकी मांग बढ़ती है तो इससे श्री मोदी का मेक इन इंडिया का सपना भी जल्दी पूरा होगा।
जब हम लोकल चीजों को तेजी से बनाते हैं तो हमारा आत्मबल बढ़ता है जिसका मतलब यह हुआ कि हम आत्मनिर्भर बनने के मंत्र पर चल रहे हैं। जब हम आत्मनिर्भर बनते हैं और हमारे माल की मांग बढ़ती है तो हमें बाहर से कुछ मंगाने की जरूरत नहीं पड़ती। सही मायनों में यह अर्थशास्त्र की थ्यूरी के मुताबिक प्रतिस्पर्धा अर्थात कंपीटीशन को जन्म देती है और जब कंपीटीशन बढ़ता है तो हमारी क्षमता भी बढ़ती है। इस मामले में हम कहना चाहेंगे कि क्षमता बढ़ने के साथ-साथ हमें क्वालिटी भी बढ़ानी होगी। खाद्यी हो, हथकरघा हो या फिर बुनकर हो, देश में सुई से लेकर जहाज तक का निर्माण आज आसानी से किया जा रहा है। सच बात तो यह है कि मोदी समझते हैं कि लोकल स्तर पर हम जितनी मांग बढ़ा लेंगे उससे हमारा प्रोडक्ट सफल हो जायेगा। उदाहरण के तौर पर पतंजलि के माध्यम से और स्वदेशी की तर्ज पर महान योग गुरु बाबा रामदेव पहले ही अपने सैकड़ों प्रोडक्ट्स मार्किट में उतार चुके हैं।
हमारे देश में आर्ट या टैलेंट की कमी नहीं। हमारी लखनऊ की चिकनकारी, कोलकाता का कान्था वर्क, कश्मीर की शॉल और कारपेट, लुधियाना की हौजरी और वूलन प्रोडक्ट, बनारस की सिल्क और साड़ियां, गुजरात का शीशे का काम जो वि देशों में बड़े ब्रांड नाम से बिकते हैं, यदि हम अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना चाहते हैं तो हमें अपनी मानसिकता को भी बदलना होगा। हमें विदेशी वस्तुएं ज्यादा बेहतर क्वालिटी वाली और स्थायी दिखती हैं इंडियन नहीं परन्तु जिस तरह चीनी वस्तुओं के बारे में आम राय है कि वह ज्यादा नहीं चलती, इसलिए सस्ती हैं तो ऐसी राय कुछ अन्य विदेशी वस्तुओं के बारे में भी बननी चाहिए।
आज जरूरत इस बात की है कि कोरोना के खिलाफ जंग में अगर हमने विजय पानी है तो हमें अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करना होगा। यद्यपि कोरोना की दवा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खोजी जा रही है। इस समय अनेक देश वैक्सीन बनाने का दावा भी कर रहे हैं और अमरीका तक भारत की हाइड्रोक्लोरोक्वीन की मांग करता रहा और हमने उसकी पूरी मदद की। दवाओं के मामले में भारत किसी से कम नहीं है। यहां तक कि मास्क बनाने से लेकर पीपीई किट तक और इसके अलावा एन-95 मास्क तक भारत ने बना डाले। कुल मिलाकर कल तक जो चीजें भारत में नहीं थी वह भारत ने कोरोना की महामारी में निर्मित करने की अपनी कोशिशों में सफलता पा ली जिसका मतलब हुआ कि हमने कोरोना जैसे संकट को संभावनाओं की एक किरण के रूप में बदल लिया। आज पूरी दुनिया भारत से अनेक चीजें चाहे वह हाइड्रोक्लोक्वीन है या अन्य दवाएं उसकी नियमित मांग कर रही हैं। बड़ी बात यह है कि पीएम के लोकल पर वोकल के नारे को दुनिया सराह रही है।
अभी कोरोना के कारण हर बात में परिवर्तन है। रहन-सहन, व्यवहार यहां तक की खान-पान भी पुराना और देसी यानी अपने भारत के आंवले, ग्लोए, तुलसी आदि।
अगर अपने ही देश में टूथपेस्ट, मिल्क प्रोडक्ट, साबुन, शैंपू, दवाएं, कपड़ा, मशीनें, ऑटो इंडस्ट्री से जुड़े कलपुर्जे, कास्मेटिक्स, साड़ियां व अन्य गारमेंट लोकल स्तर पर जनता की मांग के अनुरूप उत्पादित किए जा सकते हैं और इनकी मांग बढ़ जाती है, इसके साथ-साथ अगर ये क्वालिटी में भी उम्दा हैं तो फिर हमें विदेशी प्रोडक्ट की जरूरत क्यों है। यहां तक कि संस्कार और संस्कृति से जुड़ी चीजें चाहे वह मिहला के सुहाग से संबंधी बिंदी, चूड़ी ही क्यों न हो, उसका पूरे का पूरा एक उद्योग हमारे यहां स्थापित है जिसका अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है। ऐसे में हम प्रधानमंत्री मोदी के इस कोरोना के युद्ध में लोकल पर वोकल के आह्वान के न सिर्फ साथ खड़े हैं बल्कि देशवासियों से भी अपील करते हैं कि वे लोकल प्रोडक्ट्स को अपनाएं और बाजार अर्थव्यवस्था पर छा रहे चीनी प्रोडक्ट को स्वीकार न करें तो उसकी अपने आप ही बाजार जगत से बाए-बाए हो जायेगी। इसे कहते हैं अपनी लकीर बड़ी करना। दूसरे को छेड़े बगैर अपना काम करना और मानवता की खातिर करना, यह मोदी जी का मंत्र तो है ही, साथ ही राष्ट्रीय कर्त्तव्य परायणता भी है जिसे आप राष्ट्रीय संस्कृति भी कह सकते हैं और इसी में छिपा है मेक इन इंडिया की सफलता का मंत्र।