विपक्ष और वामपंथ में बहुत से लोग यह आशा लगाए बैठे हैं कि मोदी-एनडीए सरकार बहुत जल्द बिखर जाएगी। हर एक को अपने सपने संजोने का अधिकार है, जिन में कुछ मुंगेरी लाल के हसीन सपने भी ही सकते हैं। यह सपना देखना कि मोदी-एनडीए सरकार जल्दी ही उड़न छू हो जाएगी, मुंगेरी लाल के सपनों में से एक है क्योंकि ऐसा होना मुमकिन नहीं है, क्योंकि न तो पुनः चुनाव के लिए देश तैयार है, न ही इंडी के बस का है कि नीतीश और नायडू को मिला कर 272 का आंकड़ा छू ले और सबसे बड़ी बात यह कि देश की जनता ऐसा चाहती है। इस में कोई दो राय नहीं कि भारत का वोटर सुप्रीम है और वास्तव में वही असली मोदी, राहुल और ममता है। यह सरकार 5 वर्ष पूर्ण अवश्य करेगी। मोदी-एनडीए सरकार क्यों नहीं टूटेगी इसके कई कारण हैं। प्रथम तो यह कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस चीज़ में भी हाथ डालते हैं, बड़ी मजबूती के साथ डालते हैं क्योंकि जिस तरह उनका 56 इंच का सीना है ऐसे ही उनकी कलाई की पकड़ भी बड़ी मज़बूत है। हल्का हाथ कहीं डालते नहीं। बावजूद इसके कि 400 सीटें लाने की इच्छा शुरू से थी, इस प्रकार की अनहोनी से बचने का मार्ग भी उन्होंने चुनाव से पूर्व ही ढूंढ लिया था कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू से पहले से ही अपने गठबंधन की बात पक्की कर ली थी।
उधर नीतीश और नायडू भी इस बात को समझते हैं कि उनका लाभ भी मोदी संग रहने में ही है। कांग्रेस वाली इंडी उन्हें वह स्थापत्य नहीं प्रदान कर सकती है जो मोदी वाली भाजपा कर सकती है। रही बात नायडू की तो वे एक दीर्घ अंतराल के बाद सत्ता में आए हैं और दस साल से राजनीतिक तेल और तेल की धार देख रहे हैं और इस बात का अंदाजा उन्हें खूब है बावजूद इसके कि भाजपा पूर्ण रूप से सत्ता में नहीं आई है, उनके लिए वही सब से बेहतर विकल्प है।उधर अपने विपक्षियों में "पलटू राम" या "पलटू चाचा" के खिताब से मशहूर नीतीश कुमार के लिए भी मोदी-एनडीए से अच्छा कोई नहीं क्योंकि बिहार में आने वाले चुनाव में उनकी इच्छा मुख्यमंत्री पद पर बने रहने की है और जिसमें मोदी जी को कोई आपत्ति नहीं होगी। नीतीश तो किसी भी तरह से इंडी गठबंधन के साथ नहीं जाना चाहेंगे क्योंकि इसके कुछ नेता नहीं चाहते थे कि नीतीश को गठबंधन का अध्यक्ष बनाया जाए। इससे नीतीश का दिल टूट गया और वे इससे बाहर आ गए। यदि मोदी जी को इनकी जरूरत है तो नीतीश और नायडू के गले में भी नकेल बराबर से पड़ी है। यही कारण है कि मौजूदा सरकार बीच में बिखरने वाली नहीं है। जब मोदी जी बिहार गए और नीतीश के साथ स्टेज साझा किया तो नीतीश जी खीसें निपोरते हुए मोदी जी से कहते हुए सुनाई दिए कि हम आपके साथ ही रहेंगे मोदी जी, हम कहीं नहीं जाएंगे, जिस पर मोदी जी को भी हंसी आ गई। मगर इसमें कोई दो राय नहीं कि आज नीतीश जी भाजपा के लिए तुरुप का पत्ता बन गए हैं।
भाजपा को भी अब इस चुनाव के बाद जनता द्वारा दिए गए संदेश को समझ लेना चाहिए कि उसको क्या बदलाव करना होगा। वास्तव में भाजपा को लोकतांत्रिक भावना से उस संदेश पर ध्यान देना चाहिए और 10 वर्षों के बाद गठबंधन की राजनीति के फिर से उभरने की वास्तविकता के प्रति खुद को फिर से उन्मुख करना चाहिए, जैसा कि सधे हुए राजनेता के.सी. त्यागी ने कहा है क्योंकि लोकतंत्र के केंद्र में लोग हैं और लोग होने भी चाहिए। इसलिए यह चुनाव कई आयामों पर भारतीय राजनीति के एक क्रांतिकारी पुनर्गठन का संकेत देता है। यह विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच शक्ति का एक बेहतर संतुलन बहाल करता है। राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली सभी प्रमुख पार्टियों को इस जनादेश से सही सबक सीखना चाहिए। भारतीय लोकतंत्र की जीवन रेखा इसकी विविधता है, इसे भी सभी दलों को समझना चाहिए।
एकरूपता बुरी बात नहीं मगर यह हर समय, हर स्थान और हर परिदृश्य में नहीं चलेगी। इस लोकसभा चुनाव ने यह भी उजागर किया कि भारत में चुनावी सफलता किसी पार्टी की विभिन्न जातियों और समुदायों को प्रभावी ढंग से एकजुट करने, सामाजिक विरोधाभासों का प्रबंधन करने और विविध आबादी की आकांक्षाओं को पूरा करने की क्षमता पर निर्भर करती है। सामाजिक रूप से सबसे वंचित वर्गों का प्रतिनिधित्व सभी दलों को सुनिश्चित करना ही होगा। हमें इस बात पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है कि कई जातीय-समुदायों को सामाजिक-राजनीतिक प्रतिनिधित्व दिए बगैर चुनावों में सफल नहीं हुआ जा सकता। विशेष रूप से यूपी जैसे महत्वपूर्ण राज्य में तो बिल्कुल नहीं।
इस गठबंधन से संघीय चरित्र को मिलेगी मजबूती
सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशिए पर पड़े समूहों का लोकतंत्र को बनाए रखने और उसे मजबूत करने में हमेशा सबसे अधिक महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि भाजपा वास्तव में कुछ अंतर से सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है, पर एनडीए के क्षेत्रीय घटकों-विशेष रूप से तेलगू देशम पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) का समर्थन सरकार के गठन और प्रभावी कामकाज के लिए महत्वपूर्ण है। व्यापक प्रशासनिक अनुभव वाले राजनेताओं के नेतृत्व में क्षेत्रीय सहयोगियों की अधिक भूमिका न केवल संवाद और चर्चा के आधार पर नीति निर्माण में योगदान देगी बल्कि संघीय चरित्र को भी मजबूत करेगी। जनता भी इस नई सरकार से संतुष्ट दिखाई पड़ती है।