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मोदी का ‘अमेरिकी’ महारथ

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की वाशिंगटन में अमेरिकी उपराष्ट्रपति श्रीमती कमला हैरिस से मुलाकात के बाद दोनों देशों के बीच के वृहद सम्बन्धों का एजेंडा स्पष्ट हो गया है

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की वाशिंगटन में अमेरिकी उपराष्ट्रपति श्रीमती कमला हैरिस से मुलाकात के बाद दोनों देशों के बीच  के वृहद सम्बन्धों का एजेंडा स्पष्ट हो गया है जो आपसी द्विपक्षीय घनिष्ठता में प्रकट होगा क्योंकि राष्ट्रपति बाइडेन के साथ श्री मोदी की जो मुलाकात और बातचीत होगी वह यह तय करेगी कि अन्तर्राष्ट्रीय जगत में भारत की हैसियत को अमेरिका किस पायदान पर रख कर देखता है। मगर यह नहीं भूला जाना चाहिए कि श्री मोदी को अमेरिकी राजनीति की पेचीदगियों के साथ दुनिया के इस सबसे शक्तिशाली राष्ट्र से निपटना आता है। पिछले 40 वर्षों में श्री मोदी भारत के ऐसे अकेले प्रधानमन्त्री हैं जो सत्ता में रहते हुए तीन अलग-अलग अमेरिकी राष्ट्रपतियों से बातचीत कर रहे हैं। अमेरिका की दो प्रमुख राजनीतिक पार्टियों डेमोक्रेटिक व रिपब्लिकन पार्टी के प्रतिनिधि राष्ट्रपतियों के साथ भारत के नजरिये के तहत आपसी सम्बन्धों को विकसित करने में उन्हें अब महारथ हासिल हो चुकी है। इसका प्रमाण यह है कि 2014 में जब वह प्रधानमन्त्री बने थे तो अमेरिका के राष्ट्रपति डेमोक्रेटिक पार्टी के श्री बराक ओबामा थे। 
ओबामा के रहते भारत-अमेरिकी सम्बन्धों में बहुत गर्मजोशी रही थी और भारत की यात्रा करके ओबामा ने घोषणा की थी कि भारत उनका एक महत्वपूर्ण व रणनीतिक साझीदार है। इसके बाद रिपब्लिकन पार्टी के श्री डोनाल्ड ट्रम्प जब गद्दी पर बैठे तो दोनों देशों के सम्बन्धों में और ज्यादा प्रगाढ़ता आयी और ट्रम्प ने आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का समर्थन किया। ट्रम्प ने भी भारत की यात्रा की और नई दिल्ली की जमीन पर खड़े होकर पाकिस्तान की खबर तक ली। अब पुनः डेमोक्रेटिक पार्टी के श्री जो बाइडेन राष्ट्रपति बने हैं जो एकाधिक बार अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की महत्ता को स्वीकार कर चुके हैं। परन्तु आज कमला हैरिस ने श्री मोदी के साथ बातचीत करते हुए जिस तरह पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी तंजीमों का स्वतः संज्ञान लिया उससे स्पष्ट होता है कि अमेरिका सीमा पार से भारत में होने वाली आतंकवादी गतिविधियों को गंभीरता से ले रहा है। हालांकि पड़ोसी अफगानिस्तान में तालिबानों को शासन अमेरिका ने ही सौंपा है और यह काम पाकिस्तान की शह पर ही हुआ है। इसके साथ ही श्रीमती हैरिस ने हिन्द-प्रशान्त महासागर क्षेत्र को खुला व शान्तिपूर्ण बनाये रखने में भारतीय सहयोग का जिक्र भी किया। इस मुद्दे पर संभवतः श्री बाइडेन के साथ भी प्रधानमन्त्री की बातचीत होगी । साथ ही शुक्रवार को ही क्वैड (भारत-अमेरिका-आस्ट्रेलिया-जापान) की बैठक हुई जिसमें हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र की सुरक्षा का मुद्दा ही प्रमुख रहा। 
श्री मोदी ने इससे पहले आस्ट्रेलिया के प्रधानमन्त्री व जापान के प्रधानमन्त्री से भी अलग-अलग एकल बातचीत की। इससे जाहिर है कि भारत अपनी उन चिन्ताओं के प्रति गंभीर है जो हिन्द महासागर में चीन व अमेरिका की तनातनी को लेकर बनी हुई है। यहां यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि हिन्द महासागर का क्षेत्र किसी भी मुल्क की सामरिक व आर्थिक शक्ति का गुलाम नहीं हो सकता और न ही यह क्षेत्र समुद्री जंग का अखाड़ा बनाया जा सकता है। भारत की इस क्षेत्र में सर्वोच्च व महती भूमिका है। इस क्षेत्र को खुला व शान्तिपूर्ण बनाये रखने के लिए भारत प्रतिबद्ध है मगर वह किसी भी सूरत में इसे वैश्विक सामरिक शक्तियों का अखाड़ा नहीं बनने देना चाहता। अतः इस क्षेत्र को लेकर जिस तरह ‘अमेरिका-आस्ट्रेलिया व ब्रिटेन’ के बीच सुरक्षा सन्धि हुई है उससे भारत की  महत्ता और भी ज्यादा बढ़ गई है। भारत को अपने राष्ट्रीय हित सर्वोपरि रखते हुए चीन के साथ भी ऐसे सम्बन्ध बनाने हैं कि दो पड़ोेसी देशों के बीच तनाव की संभावना न पैदा हो सके।
 हालांकि चीन का रवैया बेशक सौहार्दपूर्ण नहीं रहा है मगर भारत लगातार कोशिश कर रहा है कि चीन के साथ उसके सभी विवाद (सीमा विवाद सहित) कूटनीतिक स्तर पर ही सुलझ जायें। श्री मोदी अमेरिकी नीति और नीति दोनों से अच्छी तरह वाकिफ लगते हैं तभी तो उन्होंने कमला हैरिस से बातचीत के दौरान कोविड समय में अमेरिकी सहायता का उल्लेख किया। इसका सीधा अर्थ है कि भारत अमेरिकी सौहार्दपन का सम्मान करता है परन्तु अपने राष्ट्रीय हितों के साथ वह किसी प्रकार का समझौता नहीं कर सकता क्योंकि भारत को ही अमेरिका की जरूरत नहीं है बल्कि अमेरिका को भी भारत की जरूरत है क्योंकि यह विश्व की सबसे तेज विकास करती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। बेशक कोरोना काल में इसमें मन्दी आयी है मगर निवेश की संभावनाएं इसी देश में सर्वाधिक इसलिए बनी हुई हैं क्योंकि राजनीतिक रूप से यह खुला लोकतन्त्र है और स्थिर है। परन्तु इसके अपने सामरिक हित भी हैं जो हिन्द-प्रशान्त महासागर क्षेत्र के सन्दर्भ में बहुत महत्व रखते हैं। 
श्री मोदी अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी व रिपब्लिकन पार्टी दोनों के नजरिये से भलीभांति परिचित हैं अतः वह अमेरिका के साथ जिस प्रकार से भी बातचीत को मोड़ देंगे उसमें भारत का हित निहित रहेगा। फिलहाल सबसे ज्यादा जरूरी है कि अमेरिका अफगानिस्तान में तालिबान शासन को लेकर पाकिस्तान पर भरोसा करना बन्द करे और वहां ऐसी सरकार की स्थापना के लिए काम करे जो मानवीय मूल्यों व अधिकारों के प्रति समर्पित हो। क्योंकि हैरतंगेज यह भी कम नहीं है कि अमेरिका से प्रतिस्पर्धा रखने वाला देश चीन भी तालिबान की पैरवी करने में सबसे अव्वल दिखना चाहता है। यह कोरा विरोधाभास है जिसकी वजह से पाकिस्तान अपनी पीठ लगातार थपथपा रहा है।

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