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मोदी की वैश्विक सदाशयता

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की सबसे बड़ी राजनीतिक विशेषता यह मानी जाती है कि उन पर जो आलोचना के पत्थर फेंके जाते हैं, वह उन्हें ही इकट्ठा करके ऐसी इमारत बनाते हैं जिससे जन अपेक्षाओं की पूर्ति होने में मदद मिल सके।

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की सबसे बड़ी राजनीतिक विशेषता यह मानी जाती है कि उन पर जो आलोचना के पत्थर फेंके जाते हैं, वह उन्हें ही इकट्ठा करके ऐसी इमारत बनाते हैं जिससे जन अपेक्षाओं की पूर्ति होने में मदद मिल सके। जाहिर है राजनीति में यह गुण विरल होता है क्योंकि आलोचना से अक्सर आत्मविश्वास हिलने-डुलने लगता है। हालांकि लोकतन्त्र में सत्ताधारी नेताओं की आलोचना स्वाभाविक प्रक्रिया भी होती है क्योंकि शासन से जुड़े सभी अधिकार इनके पास होते हैं परन्तु आलोचना को सहजता से लेते हुए लोक कल्याण के लक्ष्य को प्राप्त करने की ललक राजनीतिज्ञों को जनसेवक का दर्जा देती है परन्तु श्री मोदी में इससे भी ऊपर का गुण यह समझा जाता है कि वह बिना कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किये आलोचनाओं के ढेर को खूबसूरत शिला में परिवर्तित कर देते हैं और फिर उस पर बैठने का जन आमन्त्रण देकर लोगों को सुख का अनुभव कराते हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण यह है कि कोरोना काल के आने से पहले उनकी अनगिनत विदेश यात्राओं की विपक्षी दलों द्वारा जम कर आलोचना की जाती थी मगर कोरोना संकट ने सिद्ध कर दिया कि ये यात्राएं अनर्गल नहीं थीं और इनका एक उद्देश्य था। श्री मोदी ने अमेरिका से लेकर बेलारूस जैसे छोटे देश की यात्रा भी की। उनके आलोचकों ने इसका मजाक तक उड़ाया। मगर वह इससे उदासीन रहे। उनकी उदासीनता को आलोचकों ने अपनी विजय के रूप में भी लिया किन्तु कोरोना काल के शुरू होने पर पिछले वर्ष जब घरेलू स्रोतों से ही इस पर लगभग नियन्त्रण पा लिया गया और शहरों से पलायन करके अपने गांवों को गये प्रवासी मजदूर पुनः अपने गांवों से सड़कों की तरफ आने लगे तो विपक्ष को भी लगने लगा कि कोरोना पर काबू पा लिया गया है और उसने भी सामान्य व्यवहार की तरफ चलना शुरू कर दिया परन्तु विगत मार्च महीने में जब कोरोना की दूसरी तूफानी लहर आयी तो सभी चीजें गड़बड़ाने लगीं। हमारे घरेलू नियन्त्रक स्रोत कम पड़ने लगे। एेसे समय में पूरी दुनिया ने श्री मोदी की सदाशयता का जवाब पूरी सह्रदयता के साथ दिया। 
अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश को अपनी ‘अमेरिका फर्स्ट’  नीति में परिवर्तन करना पड़ा और भारत की मदद के लिए अपने संसाधनों के द्वार खोलने पड़े लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि दुनिया के हर देश ने भारत की मदद की पेशकश में कमी नहीं छोड़ी और जो भी जिस देश के पास था उसने वह भारत को कोरोना पर नियन्त्रण के ​लिए सुलभ कराया। इन देशों की फेहरिस्त पचास से ऊपर है। हैरतंगेज यह है कि इन देशों में कजाखिस्तान और आयर लैंड जैसे छोटे देश भी शामिल हैं। अब जरा दिमाग लड़ाइये और सोचिये कि क्या यह श्री मोदी की अनगिनत विदेश यात्राओं का प्रतिफल नहीं है? 
क्या यह सच नहीं है कि कोरोना से निपटने में सबसे पहले अरब देशों ने ही भारत की तरफ मदद का हाथ बढ़ाया और मुफ्त आक्सीजन सिलेंडर तक अपने हवाई जाहाजों से भारत भेजे। इससे यही सिद्ध होता है कि श्री मोदी की छोटे-छोटे देशों तक की विदेश यात्राओं का सबब भारत के प्रति प्रेम व सद्भाव बढ़ाने का था। विदेश यात्राओं की गई आलोचना को श्री मोदी ने सम्मोहन में बदल डाला। इसी प्रकार गृहमन्त्री श्री अमित शाह ने जिस प्रकार समुद्री तूफान तौकते की ताकत को अपने कुशल प्रबन्धन की ताकत से निढाल किया वह भी देशवासियों के सामने है। केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र व गुजरात आदि  राज्यों में पहले से ही सुरक्षा प्रबन्ध मजबूत बना कर इस तूफान को गुजर जाने दिया गया और कम से कम जान माल की हानि को सुनिश्चित किया गया। अतः बेशक सत्ताधारी नेताओं की आलोचना लोकतन्त्र में होती है मगर किसी भी कार्य के दो पहलू अवश्य होते हैं, देखना यह होता है कि कौन सा पहले जन हित में ज्यादा सकारात्मक भूमिका निभाने की क्षमता रखता है। मगर इसका मतलब यह नहीं है कि शासन से कोई गलती होती ही नहीं है। शासन पूरे तन्त्र से चलता है और इसमें यदि किसी भी स्तर पर कोई पुर्जा ढीला रह जाये तो पूरे तन्त्र की चाल सुस्त पड़ने लगती है। 
भारत का चिकित्सा या स्वास्थ्य तन्त्र आजादी के बाद से ही पचास के दशक में राजकुमारी अमृतकौर के केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्री रहते बनना शुरू हुआ था जब नई दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की नींव रखी थी। इसके बाद साठ के दशक के शुरू में पंजाब के मुख्यमन्त्री स्व. प्रताप सिंह कैरों ने प्रत्येक जिले में आधुनिकतम अस्पताल बनवा कर पूरे देश के सामने एक मिसाल पेश की। यह काम बहुत धीमी गति से दक्षिण के राज्यों को छोड़ कर अन्य राज्यों में शुरू हुआ। स्वास्थ्य चुंकि राज्यों का विषय है अतः केन्द्र इस बारे में नीतिगत निर्णय ही लेने में सक्षम रहा। अतः स्वतन्त्रता के बाद पहली महामारी के दौरान भारत का चिकित्सा ढांचा अपनी बदहाली के साथ हमारे सामने आया। इस पर नियन्त्रण करने के लिए श्री मोदी ने जो नीति बनाई उसे राज्य सरकारों ने ही लागू करना है जबकि केन्द्रीय संसाधन प्राप्त करने की उन्हें पूरी छूट मिली हुई है। जाहिर है कि प्रधानमन्त्री अपनी पूरी ताकत के साथ इसका मुकाबला करने की तैयारी में जुटे हुए हैं इसका संज्ञान भी विपक्ष को लेना चाहिए।  

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