लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

कोरोना पर मोदी की हिदायत

कोरोना वायरस के खिलाफ युद्ध वस्तुतः जीवन व मृत्यु के बीच का संघर्ष है। निश्चित रूप से यह संघर्ष नया नहीं है। सृष्टि के उद्गम काल से ही यह युद्ध चलता आ रहा है परन्तु कोरोना ने इसके स्वरूप को बदल कर पेश किया है।

कोरोना वायरस के खिलाफ युद्ध वस्तुतः जीवन व मृत्यु के बीच का संघर्ष है। निश्चित रूप से यह संघर्ष नया नहीं है। सृष्टि के उद्गम काल से ही यह युद्ध चलता आ रहा है परन्तु कोरोना ने इसके स्वरूप को बदल कर पेश किया है। इस युद्ध में सामूहिक संयुक्त शक्ति का अर्थ व्यक्ति मूलक निजी व एकल प्रयासों में परिवर्तित इस प्रकार हुआ है जिससे पुनः सामूहिक शक्ति को संगठित किया जा सके। वास्तव में यह समाज को व्यक्ति केन्द्रित शाखाओं में समेट कर अपनी विध्वंसात्मक शक्ति से साक्षात्कार कराना चाहता है और चुनौती फैंकता है कि यदि उसमें हिम्मत है तो वह आपस में मिल-जुल कर अपने सामाजिक अस्तित्व का परिचय दें। यह कोई छोटी चुनौती नहीं है जिसे आज के बहु धर्मी व विविधता से सजे हुए भारतीय समाज को आड़े हाथों लेना है। 
इस दृष्टि से प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की आज राज्यों के मुख्यमन्त्रियों के साथ हुई वीडियो कान्फ्रेंसिंग अत्यंत महत्वपूर्ण है जिसमें उन्होंने अपील की है कि राज्य स्तर से थाना स्तर तक सभी धर्मों व मतों के अनुयायियों के अगुवा लोगों को लाॅकडाऊन का पालन करने की प्रेरणा आम लोगों को देनी चाहिए। यह कम विस्मयकारी नहीं है कि अभी तक दिल्ली के निजामुद्दीन में हुए मुस्लिम सम्प्रदाय के तबलीगी जमात के  सम्मेलन में भाग लेने वाले 9 हजार लोगों का पता चल चुका है जो देश के 29 राज्यों के हैं। इनमें चार सौ लोग कोरोना से संक्रमित पाये गये हैं और तीन हजार के लगभग को एकान्त में रखा गया है।
 देश में अभी तक इस संक्रमण से मरने वाले 50 से अधिक लोगों में 19 केवल तबलीग के धार्मिक समागम में भाग लेने वाले थे। दरअसल तबलीग और कुछ नहीं बल्कि इस्लाम के ‘वहाबी’ फिरके की विचारधारा का प्रचार-प्रसार करने वाली जमात है। वहाबी इस्लाम कट्टरपंथी नियमों को मानने वाला तबका होता है जो इस्लाम के शेष 70 फिरकों को नीची नजर से देखता है। खास कर शिया मुस्लिम समाज इसे सबसे ज्यादा खटकता है क्योंकि यह अपेक्षाकृत उदार व शिक्षोन्मुखी होता है। मुस्लिम समाज को धार्मिक कट्टरता में बांधे रखना वहाबी फिरके का दस्तूर 17वीं सदी से रहा है जिसका केन्द्र सऊदी अरब माना जाता है।
 हकीकत यह है कि कुराने मजीद में सवा लाख के लगभग पैगम्बरों का हवाला है मगर उनके नामों का खुलासा किसी उलेमा ने अभी तक नहीं किया। खुदा की इबादत (सलात) को नमाज में महदूद करके ईमां रखने वाले मुसलमानों को यह बताने की जहमत नहीं उठाई जाती है कि पवित्र कुरान शरीफ में कम से कम 100 बार यह हिदायत दी गई है कि अच्छे काम करो और इल्म हासि​ल करने के लिए अगर चीन भी जाना पड़े तो जाओ।
 जरा सोचिये अगर कोरोना के कहर के चलते देश के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को खुद जाकर यह समझाना पड़े कि मस्जिद को बनाये गये मरकज का खाली करना बहुत जरूरी है तो वहाबी मत का प्रचार-प्रसार करने वाले उलेमाओं की जहनियत क्या होगी और इनके द्वारा भारत के विभिन्न राज्यों में खोले जाने वाले मदरसों में शिक्षा का स्तर क्या होगा? भारत में प्रत्येक धर्म के प्रचार-प्रसार की खुली छूट है और स्वतन्त्रता है मगर भारत का संविधान साफ हिदायत देता है कि सरकारें आम लोगों  में  वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए कारगर उपाय करेंगी। संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ  लाॅकडाऊन शुरू होने से पहले तक दिल्ली के शाहीन बाग से लेकर अन्य राज्यों में अधिसंख्य मुस्लिम समाज के लोग आन्दोलन व धरना भारतीय  संविधान की प्रतियां लेकर ही कर रहे थे मगर इसी संविधान में उल्लिखित इस हिदायत को वे भूल गये कि इसमें वैज्ञानिक सोच को अपनाने की हिदायत भी दी गई है, लेकिन इसका मतलब यह भी कादपि न निकाला जाये कि उन्हें नागरिकता कानून का विरोध करने का अधिकार नहीं है। इसका अधिकार उन्हें संविधान पूरी ताकत के साथ देता है मगर उतनी ही ताकत से संविधान वैज्ञानिक नजरिया अपनाने को भी कहता है।
 मानवीयता का एक आयाम नहीं होता बल्कि यह समग्रता में होता है। यह समग्रता परिवार से समाज और देश तक जाती है। कोरोना वायरस का कहर हमें चेता रहा है कि व्यक्ति बचेगा तो सब कुछ बचेगा। अतः मरकज के दीनदारों को पहले इसमें शिरकत करने आये लोगों को ही बचाना चाहिए था मगर इन्होंने तो पूरे हिन्दोस्तान के लोगों के सामने नई पहेली खड़ी कर दी मगर ऐसे संकट की घड़ी में इंसानों का बहशीपन है कि थमने का नाम नहीं ले रहा है। कुछ लोगों ने जिस तरह इन्दौर, हैदराबाद व बेंगलुरू में डाक्टरों व चिकित्सा कर्मियों पर हमला करने की कोशिशें की और उन्हें अपना कार्य करने से रोका, उसे किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। ये चिकित्सा कर्मी हिन्दू या मुसलमान देख कर अपने काम को अंजाम नहीं देते बल्कि इंसान देख कर उसकी जान बचाने के उपाय करते हैं। 
अतः प्रधानमन्त्री की इस चेतावनी का वजन आसानी से मापा जा सकता है कि ऐसी हरकतों को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। इसके साथ यह भी समझ लिया जाना चाहिए कि किसी भी धर्म के स्थान कोरोना के लक्षणों को छिपाने के शरण स्थल नहीं हो सकते और इसमें चिकित्सा कर्मियों को जांच के लिए जाने से नहीं रोका जा सकता क्योकि कोरान तो वह शह है जिसके लिए मन्दिर-मस्जिद या गुरुद्वारे की कोई सीमा नहीं है। यह तो इंसानों का दुश्मन है फिर चाहे उसका धर्म कोई भी हो। अतः प्रधानमन्त्री की नसीहत को हर तबके और धर्म के छोटे से लेकर बड़े रहबर को ध्यान में रखना होगा कि यह लड़ाई सिर्फ आदमी को बचाने की है उसके बाद ही दुनियादारी चलेगी। खुदा या भगवान आदमी के होने से ही तो भगवान या खुदा होता हैः 
  ‘‘न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता
    डुबोया मुझको होने ने, न होता ‘मैं’ तो क्या होता?’’   

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

four × 2 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।