कोरोना महामारी पर नियंत्रण पाने में भारत सफल होता दिखाई दे रहा है, लेकिन कोरोना वायरस के नए वेरिएर का खतरा बरकरार है। भारत ने अपने कई पड़ोसी देशों को मुफ्त में वैक्सीन पहुंचाई है और ब्राजील जैसे देशों को भी पहली खेप मुफ्त में दी है। वैक्सीन मिलने पर इन सभी देशों ने भारत का आभार जताया है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कोविड कूटनीति भी कामयाब हो रही है। कोविड-19 प्रबंधन को लेकर आयोजित वर्कशाप को सम्बोधित करते हुए एक तरफ प्रधानमंत्री ने एशियाई क्षेत्र के देशों को आपसी सामंजस्य से काम करने का प्रस्ताव रखा, वहीं उन्होंने डाक्टरों और नर्सों के लिए एक विशेष वीजा बनाने का सुझाव भी दिया।
एशिया और दुनिया की उम्मीदें वैक्सीन के तेज विकास पर टिकी हुई हैं, हमें इसमें सहकारी और सहयोग की भावना को बनाए रखना चाहिए। स्वास्थ्य सहयोग से काफी कुछ हासिल किया जा सकता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि क्या हमारे नागरिक उड्डयन मंत्रालय चिकित्सा आकस्मिकताओं के लिए एक क्षेत्रीय वायु एम्बुलैंस समझौते का समन्वय कर सकते हैं? उनका आशय यह था कि हम सब देशों को एक ऐसा क्षेत्रीय मंच तैयार करना चाहिए जहां हमारी आबादी के बीच कोविड-महामारी के टीकों के असर के बारे में जुटाए गए डाटा को एक साथ लाकर उसका संकलन और अध्ययन किया जा सके। स्वास्थ्य कालीन आपातकाल की स्थिति में डाक्टरों और नर्सों का आवागमन आसान बनाया जाना चाहिए। अगर दक्षिण एशिया आैर भारत प्रांत के देशों का ऐसा एक मंच स्थापित हो जाता है तो न केवल महामारी पर काबू पाया जा सकता है अपितु इससे और भी कई चुनौतियों का सामना किया जा सकता है।
इस कार्यशाला में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंगलादेश, भूटान, मारिशस, मालदीव, नेपाल, सेशल्य, श्रीलंका के स्वास्थ्य मंत्रियों के अलावा मेडिकल विशेषज्ञ और अधिकारी भाग ले रहे हैं। पाकिस्तान समेत सभी देशों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रस्ताव का समर्थन किया और क्षेत्रीय सहयोग पर आगे विचार-विमर्श करने की बात कही। इन देशों में क्षेत्रीय सहयोग का मंच तैयार होता है तो यह देश भारत में चलाई जा रही आयुष्मान भारत और जन औषधि योजनाओं को केस स्टडी के रूप में ले सकते हैं।
भारत ने समूचे विश्व को एक परिवार माना है और भारत हमेशा अन्य देशों के साथ संबंधों को मजबूत बनाना चाहता है। वैक्सीन कूटनीति वैश्विक स्वास्थ्य कूटनीति का हिस्सा है। कोरोना महामारी ने भारत को पड़ोसी देशों और सम्पूर्ण विश्व के साथ अपनी विदेश नीति तथा राजनयिक संबंधों को बढ़ावा देने का एक अभिनव अवसर प्रदान किया है। अगर पाकिस्तान हमारे साथ मधुर संबंध रखता तो उसे भी भारत से काफी फायदा मिलता। भारत की क्षेत्रीय वैक्सीन का एक मात्र अपवाद पाकिस्तान ही है। अमेरिका और चीन में चल रहे ‘शीत युद्ध’ में कोरोना वैक्सीन को एक राजनीतिक उपकरण के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा था जिसके चलते वैक्सीन टीकाकरण में देरी हो रही थी। भारत द्वारा टीकों की शुरूआती शिपमेंट से दुनिया दो ध्रुवीय विवाद से काफी हद तक बच गई है। यह भारत की ‘पड़ोसी पहले’ की नीति के अनुरूप भी है। हाल ही में चीन ने नेपाल, अफगानिस्तान, श्रीलंका, बंगलादेश और पाकिस्तान के साथ बहुपक्षीय वार्ता करते हुए उन्हें कोरोना वायरस वैक्सीन देने का सिलसिला शुरू किया। चीन ने इन देशों से मोलभाव भी किया। उसने पाकिस्तान को तो यह तक कह दिया था कि अपने विमान बीजिंग भेज कर वैक्सीन मंगा ले। चीन की तुलना में भारत द्वारा पड़ोसी देशों का जल्द वैक्सीन पहुंचाए जाने से भारत को रणनीतिक बढ़त मिल चुकी है। महामारी के कारण आर्थिक मोर्चे पर संकट का सामना कर रहे पड़ोसी देशों के लिए भारत द्वारा दी जा रही वैक्सीन की खेप कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण है। जहां एक और समृद्ध पश्चिमी देश विशेष तौर पर यूरोप के देश और अमेरिका अपनी विशिष्ट समस्याओं का सामना कर रहे हैं, वहीं भारत को पड़ोसी देशों और अन्य विकासशील और अल्प विकसित देशों की सहायता करने पर ख्याति अर्जित हुई है। भारत द्वारा वैक्सीन वितरण कार्यक्रम ऐसे समय में संचालित किया जा रहा है, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने विकसित देशों के दवा निर्माताओं के नैतिक भ्रष्टाचार की आलोचना की है। ऐसे में भारत को अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर अधिक से अधिक नैतिक अधिकार मिल सकते हैं। अब तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन को मंजूरी दे दी है। अब कई देशों ने भारत से वैक्सीन खरीदने की इच्छा जताई है, इससे आने वाले समय में भारत वैश्विक वैक्सीन आपूर्ति का प्रमुख केन्द्र बन जाएगा। इससे भारत के आर्थिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मददगार साबित होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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