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जी-7 में मोदी की धमक

जर्मनी में हुए जी-7 सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी ने विश्व मंच पर भारत के महत्व को एक बार फिर साबित किया है। आज पूरी दुनिया भारत को समाधान प्रदाता के रूप में देखता है।

जर्मनी में हुए जी-7 सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी ने विश्व मंच पर भारत के महत्व को एक बार फिर साबित किया है। आज पूरी दुनिया भारत को समाधान प्रदाता के रूप में देखता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ सभी नेताओं की बॉडी लैंग्वेज और सौहार्द देखा। सबसे बड़ी बात तो यह है कि प्रधानमंत्री ने जर्मनी की धरती पर खड़े होकर विश्व को शांति का संदेश दिया। अमेरिका और अन्य देशों के दबाव के बावजूद भारत रूस-यूक्रेन युद्ध पर अपने स्टैंड से जरा भी टस से मस नहीं हुआ। भारत ने रूस-यूक्रेन से शत्रुता समाप्त कर शांति के लिए बातचीत और कूटनीति पर जोर दिया।
भारत की नीति यही रही कि कोई भी समस्या युद्ध से नहीं सुलझ सकती। भारत को जी-7 सम्मेलन में बुलाने का मुख्य कारण यह है कि पश्चिमी देश भारत की तरफ हाथ बढ़ाना चाहते हैं। यूक्रेन के संदर्भ में भारत ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वह कोई पक्ष नहीं लेगा, लेकिन साझा मूल्य है, लोकतांत्रिक  मूल्य है, भारत उनके साथ है। यद्यपि जी-7 देशों ने रूस के खिलाफ आक्रामक रूप अपनाया, लेकिन भारत अपने रुख पर कायम रहा। भारत का संयत रुख ​ब्रिक्स, क्वाड और अन्य दूसरे मंचों पर भी यही रहा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जलवायु ऊर्जा और  स्वास्थ्य पर बात की और साथ ही खाद्य सुरक्षा संकट पर विशेष रूप से कमजोर देशों पर रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभाव को भी सामने रखा। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह एक भ्रम है कि गरीब देश पर्यावरण को अधिक नुक्सान पहुंचाते हैं। अब भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। दुनिया की 17 फीसदी जनसंख्या भारत में निवास करती है, लेकिन वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में हमारा योगदान मात्र 5 प्रतिशत है। इसके पीछे मुख्य कारण हमारी जीवनशैली है जो प्रकृति के साथ-साथ सह अस्तित्व के सिद्धांत पर आधारित है। प्रधानमंत्री ने यह कहकर उन देशों को जवाब दे दिया है जो हमेशा ही भारत और अन्य विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार ठहराते रहे हैं। यह भी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है कि हरित विकास, स्वच्छ ऊर्जा सतत जीवन शैली और वैश्विक भलाई के लिए भारत ने तय समय से 9 साल पहले ही गैर जीवाश्म स्रोतों से 40 फीसदी ऊर्जा क्षमता हासिल करने के लक्ष्य को हासिल कर लिया।
भारत ने जी-7 के अमीर देशों से भारत के प्रयासों का समर्थन करने की अपील की और इन देशों को स्वच्छ ऊर्जा तकनीक में रिसर्च, इनोवेशन और विनिर्माण में निवेश करने के लिए आमंत्रित भी किया। प्रधानमंत्री ने स्वास्थ्य क्षेत्र के संबंध में भारत के प्रयासों का उल्लेख करते हुए कहा कि कोरोना महामारी के दौरान भारत ने हैल्थ सैक्टर में डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए  कई रचनात्मक तरीके खोजे। जी-7 देश इन इनोवेशन को अन्य विकासशील देशों में ले जाने में भारत की मदद कर सकते हैं।
इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी की धमक साफ तौर पर नजर आई। ग्रुप फोटो सैशन से पहले प्रधानमंत्री मोदी अपने बगल में खड़े कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से बातचीत कर रहे थे तो कुछ ही दूरी पर खड़े अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन उन्हें देखकर तेज कदमों से उनके पास पहुंचे और मोदी का कंधा थपथपाकर उन्हें अपनी ओर आकर्षित किया। प्रधानमंत्री ने पलट कर देखा और तुरन्त उनका हाथ थाम लिया और फिर दोनों में कुछ देर तक बातचीत हुई। मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्यूल मैक्रो के बीच भी काफी गर्मजोशी दिखाई दी। जी-7 सम्मेलन की महत्वपूर्ण बात यह भी रही कि इस समूह ने चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड के मुकाबले 600 अरब डालर के इन्फ्रास्टर्कचर का ऐलान किया है। बेल्ट एंड रोड प्रोजैक्ट चीनी राष्ट्रपति शी जिन​पिंग के दिमाग की उपज है। इसके जरिये चीन एशिया, यूरोप और अफ्रीका को जोड़ने के लिए विशाल बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को अंजाम दे रहा है। शी जिनपिंग की यह परियोजना भारत के लिए भी बड़ा सिरदर्द बनी हुई है। क्योंकि पाकिस्तान भी इस परियोजना का हिस्सा  है। यह भी सच है कि चीन इसके जरिये भारत के पड़ोसी देशों और  गरीब देशों को कर्ज के जाल में फंसा रहा है। अब यह परियोजना केवल ट्रेड रूट से चीन और बाकी दुनिया को जोड़ने वाली बुनियादी ढांचा परियोजना ही नहीं रह गई बल्कि यह चीन की बढ़ती आर्थिक,  राजनीतिक और  सामरिक ताकत का प्रतीक बन गई है। फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन और इटली को लग रहा है कि चीन विकासशील देशों के बाजारों को अपने साथ जोड़ने की ​दिशा में काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है।
भारत और जापान भी एक अलग वैकल्पिक माॅडल खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। भारत की अब तक की भूमिका विकास के लिए सहायता लेने वाले देश की रही है लेकिन भारत अब पहले वाला देश नहीं रहा। भारत चाहता है कि न सिर्फ अन्य देशों की आर्थिक मदद की जाए बल्कि विकासशील देशों काे इस प्रक्रिया का भागीदार बनाया जाए। भारत अपने सभी विकल्पों को खुला रखना चाहता है। पश्चिमी देशों को भी यह पता चल चुका है कि भारत हमारा दोस्त तो है लेकिन एक सीमा के बाद भारत को दबाया नहीं जा सकता।

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