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मोदी-शाह आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं!

गृहमंत्री अमित शाह में सरदार पटेल नजर आए और उन्होंने एक-एक सवाल का जवाब दिया। एक राष्ट्र में दो संविधान, ​दो विधान और दो निशान होने ही नहीं चाहिए थे।

आज का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर को धारा 370 से मुक्त करने का संकल्प पेश करके वह काम कर दिखाया, जिसका साहस आज तक कांग्रेस नहीं उठा पाई और न ही पहली जनता पार्टी और अटल जी की भाजपा सरकार ही कर सकी है। जम्मू-कश्मीर में लागू अनुच्छेद-370 की दास्तां मैं पिछले 25 वर्ष से बार-बार लिख रहा हूं। पहले भी मैंने कई बार सम्पादकीय लिखे और कुछ दिन पहले ही मैंने लिखा था कि कश्मीर की तस्वीर बदलने का समय आ गया है। 
वह समय सोमवार को आ ही गया। गृहमंत्री अमित शाह में सरदार पटेल नजर आए और उन्होंने एक-एक सवाल का जवाब दिया। एक राष्ट्र में दो संविधान, ​दो विधान और दो निशान होने ही नहीं चाहिए थे। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जो गलती की थी उसे आजादी के 72 वर्ष बाद सुधारा गया। कांग्रेसजन तो भारत के जीवन मूल्यों व राष्ट्रधर्म से ध्यान हटाकर इस अनुच्छेद-370 के दुष्परिणामों से आंखें मूंदे रहे और तुष्टिकरण की नीतियां अपनाते रहे। भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में वादा किया था कि वह सत्ता में आने पर अनुच्छेद-370 को हटाएगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 56 इंच का सीना दिखा ही दिया तो विपक्ष बेवजह शोर मचा रहा है। 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह इतिहास पुरुष हो गए हैं। समूचा राष्ट्र उन्हें महानायक के रूप में स्वीकार कर चुका है। राष्ट्र आज आह्वान कर रहा है कि नरेन्द्र मोदी-अमित शाह आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं। आज का दिन भारत के इतिहास में वह मुकाम रखने वाला दिन बन चुका है जिसे ‘राष्ट्रीय अखंडता दिवस’ के रूप में आने वाली पीढि़यां जरूर मनायेगी। जम्मू-कश्मीर राज्य का भारतीय संघ में विलय करते समय जो विशेष शर्तें रखी गई थीं उनकी प्रासंगिकता केवल इतनी ही थी कि इस सूबे के लोगों को एक स्वतन्त्र देश का हिस्सा बनने पर अपनी विशेष भौगोलिक परिस्थितियों पर अभिमान रहे परन्तु इसका जिस प्रकार राजनीतिकरण किया गया उससे भारत का यह भू-भाग शुरू से ही भारतीय संघ से नत्थी किया गया हिस्सा बन कर रह गया और अनुच्छेद 370 के बहाने यह समूचे तौर पर भारत में एकाकार रूप में समाहित नहीं हो सका। 
इस व्यवस्था के तहत इसका पृथक संविधान और ध्वज और प्रधान बनाये गये और भारतीय संसद की भूमिका को इसके तहत महज सलाहकार के तौर पर रखा गया जिससे संसद द्वारा बनाये गये कानून इस राज्य को छोड़ कर सभी प्रदेशों मंे लागू हुए मगर उन्हीं कानूनों का इसकी विधानसभा द्वारा पुनः पारित किया जाना जरूरी बन गया। बेशक कश्मीर को भारत का मुकुट कहा गया किन्तु इसे धारण करने की प्रणाली को इस तरह दुरूह बना दिया गया कि बार-बार इसकी सम्बद्धता पर ही नाजायज मुल्क पाकिस्तान सवाल उठाता रहा। कश्मीर की इस परिस्थिति का यहां सक्रिय राजनैतिक दलों ने जमकर फायदा उठाया और इसकी विशेष परिस्थिति को सियासी मुनाफे के तौर पर जमकर भुनाया जिसकी वजह से यहां अलगाववादियों को पाकिस्तान लगातार पनाह देता रहा।
 
भारत जो कि राज्यों का संघ है विविधता से इस प्रकार भरा पड़ा है कि तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश के लोगों में भाषा से लेकर सांस्कृतिक भिन्नता स्पष्ट रूप से उजागर होती है इसके बावजूद दोनों राज्यों की भारतीय संघ में स्थिति एक समान है। यहां तक कि भौगोलिक असमानताएं भी इसके 29 राज्यों में प्रखरता के साथ देखी जा सकती हैं। इसके बावजूद सभी राज्य भारत की संसद द्वारा बनाये गये कानूनों से बन्धे रहते थे जबकि जम्मू-कश्मीर के मामले में हालात अलग थे। यह ऐसा कांटा था जो प्रत्येक भारतीय को चुभता था और वह यह सोचने पर मजबूर हो जाता था कि भारत माता का मुकुट कश्मीर उसका होने के बावजूद पराया-पराया सा क्यों दिखाया जाता है। 
इसकी वजह संविधान का वह अनुच्छेद 370 और 35 ( ए) था जिसे अस्थायी तौर पर 1947 में भारत के आजाद होने के बाद 1949 में लागू किया गया था और इसे संविधान निर्माता डा. भीमराव अम्बेडकर ने नहीं लिखा था। उन्होंने बहुत भारी मन से इसे संविधान में जोड़ा था और प. जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि यह अस्थायी व्यवस्था है जो समय के साथ-साथ स्वयं ही विलोपित होती चली जायेगी। अतः गृहमन्त्री श्री अमित शाह का यह कथन भारत के इतिहास में दर्ज हो चुका है कि भारतीय संघ में जब 27 अक्तूबर 1947 को जम्मू-कश्ममीर का विलय इस रियासत के महाराजा हरिसिंह ने किया था तो ऐसी कोई विवशता नहीं थी कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया जाये। जो कुछ भी हुआ वह इसके बाद ही हुआ। 
श्री अमित शाह और प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने यह ऐतिहासिक फैसला करके उन सभी अवधारणाओं को गलत साबित कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर राज्य का मामला तब तक नहीं सुलझ सकता जब तक कि पाकिस्तान के साथ बातचीत न की जाये और कश्मीर वादी में सक्रिय उसके हमदर्द गुर्गों को राजी न किया जाये। आचार्य चाणक्य ने राजनीति का जो सिद्धान्त प्रतिपादित किया उसके तहत शासक (राजा) के एक हाथ में आग और दूसरे में पानी होना चाहिए। राजहित (वर्तमान सन्दर्भों में राष्ट्रहित) के साथ उसे किसी प्रकार का समझौता नहीं करना चाहिए और यदि ऐसा परिस्थितिवश करना भी पड़े तो अवसर मिलते ही उस पर आग बनकर बरस जाना चाहिए। 
यह कैसे संभव है कि जो लोकतन्त्र की बयार पूरे देश में पिछले सत्तर सालों से बह रही है उससे कश्मीर निवासी दूर रहें और यहां के लोग बेरोजगारी व भुखमरी में ही जीवन जीते रहें और उन्हें चन्द राजनीतिज्ञ यह दिलासा देते रहे कि उन्हें इस बात पर सब्र करना चाहिए कि उनकी हैसियत उनके मुल्क में खास या विशेष है। जिस राज्य में दशकों से रहने वाले लोगों को नागरिकता नहीं दी जा सकती। जिस राज्य में दलितों और पिछड़ों को आरक्षण नहीं मिल सकता, जिस राज्य में बाल्मीकि समाज के लोगों को दूसरे धन्धों में जाने से रोका जाता हो। जिस राज्य की महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति में अधिकार पाने के लिए अपने संवैधानिक अधिकारों से समझौता करना पड़ता हो और जहां सूचना के अधिकार के तहत हुकूमत के कारनामों को बाहर लाने की इजाजत न हो, उस राज्य में यदि भ्रष्टाचार और सियासत मिलकर हुकूमत नहीं करेंगे तो फिर कौन करेगा? 
भारत से राजे-रजवाड़े न जाने कब के गायब हो चुके इसलिये यह कैसे संभव है कि एक राज्य के लोग उनके बनाये गये कानूनों की गुलामी करते रहे और सोचते रहे कि उनकी तरक्की हो जायेगी? अनुच्छेद 35(ए) के तहत वे ही नियम लागू होते थे जो रजवाड़ों के बनाये हुए थे। रजवाड़ों के लिए अपनी रियासत को अपने कब्जे में रखना ही लक्ष्य होता था जबकि एक राष्ट्र का ध्येय इसके सभी नागरिकों को एक समान रूप से विकास के साधन सुलभ कराना होता है। 370 और 35(ए) इसी मार्ग में सबसे बड़े अवरोधक थे। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर राज्य को जिस प्रकार दो भागों में बांटा गया है उसका स्वागत इसलिये किया जाना चाहिए क्योंकि लद्दाख का क्षेत्र इसका हिस्सा होते हुए भी पूरी तरह लावारिसों की स्थिति में रहता था। 
अब यह पूरा क्षेत्र केन्द्र प्रशासित होगा और जम्मू-कश्मीर को मिलाकर एक अर्ध राज्य का दर्जा पुडुचेरी व दिल्ली की तरह दिया जायेगा जिससे राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को समाप्त करने में मदद मिलेगी। लद्दाख की सीमाएं चीन से मिलती हैं और जम्मू-कश्मीर की पाकिस्तान से, अतः इन दोनों ही क्षेत्रों में राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर रात-दिन सावधान रहने की जरूरत है। बेशक भारतवासी वह दिन भी देखना चाहते हैं जब पाक अधिकृत कश्मीर भी पाकिस्तान के जबड़े से निकाल लिया जायेगा।

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