प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका में हैं, जहां एक बार फिर उनका भव्य स्वागत हुआ है। ‘भारत माता की जय’ के नारे गूंजे। भारतीय समुदाय के लोगों का बड़ा समूह प्रधानमंत्री के इंतजार में होटल के बाहर खड़ा था। यद्यपि नरेन्द्र मोदी के अमेरिका पहुंचने से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत को सच्चा मित्र बताया है लेकिन सबकी निगाहें नरेन्द्र मोदी और डोनाल्ड ट्रम्प की होने वाली बैठक पर लगी हुई हैं। बराक ओबामा के शासन में भारत-अमेरिका सम्बन्ध काफी मजबूत रहे हैं। ओबामा और नरेन्द्र मोदी एक अच्छे मित्र हो गए थे। विश्व की सबसे बड़ी ताकत के राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केवल ‘बराक’ सम्बोधित कर सबको हैरान कर दिया था। दोनों नेताओं में रिकॉर्ड 8 बार मुलाकात हुई थी। ओबामा का कार्यकाल पूरा होने के बाद डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। तब से लेकर बहुत कुछ बदला है, वैसे भी डोनाल्ड ट्रम्प के बारे में सर्वविदित है कि अन्तिम समय वह क्या कर बैठें, किसी को कुछ नहीं पता होता।
ट्रम्प की नीतियां अमेरिका मूलक हैं और पूरी तरह संरक्षणवाद पर आधारित हैं। जलवायु परिवर्तन का मुद्दा हो या एच-1बी वीजा, व्यापार हो या निवेश, कई मुद्दों पर भारत-अमेरिका में मतभेद उभरे हैं। इन्हीं मतभेदों के बीच प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका पहुंचे हैं। ट्रम्प प्रशासन को लगता है कि उनके हित केवल भारत से ही नहीं बल्कि पूरे एशिया से जुडऩे पर हैं। ट्रम्प प्रशासन के पहले बजट प्रस्ताव के दौरान विदेश विभाग ने कहा है कि भारत की गतिशील अर्थव्यवस्था और मध्य एशिया के ऊर्जा संसाधन भविष्य में वैश्विक समृद्धि में अहम भूमिका निभा सकते हैं। भारत को उम्मीद थी कि ट्रम्प एशिया प्रशांत क्षेत्र के मामले में साथ देंगे परन्तु अभी तक उनका रवैया ढुलमुल सा रहा है। जब ट्रम्प की मुलाकात पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से हुई तो उन्होंने नवाज शरीफ की भूरि-भूरि प्रशंसा की और कहा कि पाकिस्तान दक्षिण एशिया में लोकतंत्र को हवा दे रहा है। ट्रम्प ने तो नवाज शरीफ को यह भी कह दिया था कि वह पाकिस्तान की सभी समस्याओं के समाधान के लिए तैयार हैं।
अमेरिकी सरकार ने यह वक्तव्य भी जारी किया था कि राष्ट्रपति ट्रम्प कश्मीर के मामले में भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने को तैयार है। तब भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और कश्मीर के मामले में किसी बाहरी शक्ति की मध्यस्थता स्वीकार्य नहीं है। ट्रम्प ने पर्यावरण के मामले पर पेरिस समझौते से हटने का ऐलान किया और इसका ठीकरा भारत और चीन पर फोड़ा। दूसरी तरफ ट्रम्प पाक प्रायोजित आतंकवाद का कड़ा विरोध करते हैं। अमेरिकी प्रशासन ने यहां तक कहा है कि वह पाक में मौजूद आतंकवादी शिविरों को ध्वस्त करने पर विचार कर रहा है लेकिन राष्ट्रपति ट्रम्प के पल-पल बदलने वाले रवैये से अमेरिकी भी हैरान हैं और परेशान भी हैं। अमेरिका में अप्रवासियों पर रोक लगाने और एच-1 बी वीजा को खत्म करने के मुद्दे पर भी भारत की चिन्ताएं पहले ही बढ़ चुकी हैं। नरेन्द्र मोदी ने न्यूयार्क में 2014 में दो बड़े कार्यक्रमों को सम्बोधित किया था। 2015 में सिलिकॉन वैली के अपने दौरे में भी उन्होंने एक बड़ा कार्यक्रम किया था। इस बार ह्यूस्टन में बड़ा कार्यक्रम करने के बारे में सोचा गया था लेकिन इस योजना को रद्द कर दिया गया। असल में पश्चिमी देशां के खिलाफ एक माहौल बना हुआ है इसलिए बड़ा कार्यक्रम नहीं किया गया।
मोदी का ज्यादा जोर ट्रम्प से रिश्ते बेहतर करने पर रहेगा। यह सही है कि अमेरिका भारत से रिश्तों को महत्व दे रहा है। नरेन्द्र मोदी व्हाइट हाउस में ट्रम्प से मुलाकात करेंगे। रात्रिभोज में दोनों एक साथ वक्त बिताएंगे। डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद किसी विदेशी नेता के लिए व्हाइट हाउस में आयोजित होने वाला यह पहला कार्यक्रम है। नरेन्द्र मोदी और ट्रम्प के बीच रक्षा और आर्थिक सम्बन्ध को आगे बढ़ाने, असैन्य परमाणु करार, आतंकवाद से निपटने पर सहयोग, भारत प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग तथा एच-1 बी वीजा को लेकर भारत की चिन्ताओं पर चर्चा होगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अत्यन्त ही कुशल हैं और भारतीयों को उम्मीद है कि वह ट्रम्प को भारतीय पक्ष के सम्बन्ध में सफल रहेंगे। बराक ओबामा की तरह मोदी उन्हें मित्र बनाने में सफल होंगे। अगर रिश्ते प्रगाढ़ होते हैं तो पाकिस्तान की खैर नहीं, तब भारत चीन पर भी दबाव बनाने की ओर अग्रसर होगा। भारतीयों की नजरें भी दोनों नेताओं की बैठक पर लगी हैं।