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मोदी की सफल राष्ट्रसंघ यात्रा

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रसंघ की साधारण सभा को संबोधित करते हुए पूरी दुनिया को सन्देश दिया है कि भारत लोकतांत्रिक​ पद्धति को अपनाते हुए विकास के उस मुकाम तक पहुंचा है

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रसंघ की साधारण सभा को संबोधित करते हुए पूरी दुनिया को सन्देश दिया है कि भारत लोकतांत्रिक​ पद्धति को अपनाते हुए विकास के उस मुकाम तक पहुंचा है जिसमें वह विश्व की भयंकर महामारी कोरोना से निजात पाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय औषिध कम्पनियों को भारत में वैक्सीन उत्पादन करने की दावत दे रहा है। उन्होंने विश्व को आतंकवाद से सचेत करते हुए जिस तरह अफगानिस्तान का जिक्र किया उससे भी स्पष्ट है कि भारतीय उपमहाद्वीप में बसे इस देश को अन्तर्राष्ट्रीय जगत अकेला नहीं छोड़ सकता है और पूरी दुनिया में कानून के अनुसार काम करना आज का महामन्त्र है। साथ ही विस्तारवाद की चुनौती का मुकाबला करने के लिए जिस तरह उन्होंने चीन का नाम लिये बिना ही सामुद्रिक व अन्य क्षेत्रों में सैनिक प्रतिस्पर्धा की संभावनाओं को टालने के लिए नये वैश्विक सन्तुलन के प्रयास को परोक्ष रूप से रेखांकित किया उससे साफ है कि भारत की भूमिका मात्र दर्शक बने रहने की किसी सूरत में नहीं हो सकती। अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं विशेष रूप से राष्ट्रसंघ की गिरती साख के बारे में भारत के प्रधानमन्त्री की चिन्ता भी बताती है कि यह देश में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अमन-चैन के साम्राज्य को ही प्रमुखता देना जारी रहेगा।
भारत की यह नीति स्वतन्त्रता के बाद से ही जारी रही है और बदस्तूर जारी रहेगी। प्रधानमन्त्री ने क्वैड (भारत-अमेरिका-जापान-आस्ट्रेलिया) समूह संगठन की बैठक में भी भाग लिया जो हिन्द-प्रशान्त महासागर क्षेत्र में शान्ति का माहौल बनाये रखने की गरज से गठित किया है। इस सन्दर्भ में भारत की वृहद व प्रमुख भूमिका है क्योंकि 90 के दशक में सोवियत संघ के बिखर जाने के बाद और चीन के आर्थिक शक्ति के रूप में उदय के बाद से हिन्द महासागर क्षेत्र में जारी सैन्य जमावड़े की गतिविधियां पूरे क्षेत्र की शान्ति के लिए चुनौती बनी हुई हैं। जिस प्रकार चीन इस क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय नियमों को धत्ता बताते हुए अपनी सैनिक शक्ति में लगातार इजाफा कर रहा है उसे देखते हुए विश्व की अन्य आर्थिक व सामरिक शक्तियों को अपने हितों के लिए खतरा पैदा हो रहा है जिसकी वजह से ब्रिटेन, अमेरिका व आस्ट्रेलिया ने मिलकर ‘आकस’ संगठन बना कर सुरक्षा सन्धि की है। मगर भारत के लिए भी यह सन्तोषजनक स्थिति नहीं है क्योंकि हिन्द महासागर का क्षेत्र अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रमुख मार्ग होने के साथ भारतीय जल सीमाओं के शान्त रहने की अपेक्षा करता है। 
इस मार्ग पर किसी भी देश या विश्व शक्ति का अपना प्रभुत्व जमाना भारत के राष्ट्रीय हितों को सीधा प्रभावित करता है इसी वजह से भारत स्व. इदिरा गांधी काल के दौरान पुरजोर मांग करता रहा था कि यह ‘अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति क्षेत्र’ घोषित हो परन्तु चीन की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए और भारत से इसकी छह स्थानों  से सटी सीमाओं को देखते हुए हमारा देश हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में चीन के विरुद्ध किसी सैनिक गुटबाजी का सदस्य नहीं हो सकता अतः आकस में शामिल न होकर भारत ने दूरदर्शिता का परिचय दिया है और क्वैड की सदस्यता ग्रहण करके शान्तिपूर्वक तरीकों से इस क्षेत्र की समस्याओं के निराकरण का मार्ग खुला रखा है। चीन पर दबाव बनाये रखने के लिए एेसा करना कूटनीतिक रूप से जरूरी था। इसके साथ ही प्रधानमन्त्री ने राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ एकल मुलाकात करके साफ कर दिया कि भारत बराबरी के स्तर पर अमेरिका से सम्बन्ध चाहता है जिस चीज की जरूरत भारत को है वह अमेरिका उसे दे और जो भारत अमेरिका को दे सकता है वह उसे देगा। 
महात्मा गांधी की जयन्ती का जिक्र करके जो बाइडेन ने भारत की अहिंसा व प्रेम-भाईचारे की ताकत को नमस्कार ही किया और श्री मोदी ने बापू के ‘ट्रस्टीशिप’ के सिद्धान्त का जिक्र करके उसे और पुख्ता किया। श्री मोदी ने जब यह कहा कि महात्मा गांधी पूरी पृथ्वी पर ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त को लागू करना चाहते थे और विभिन्न राष्ट्रों के बीच इस सिद्धान्त के आधार पर सहयोग व समन्वय चाहते थे तो लगा कि विश्व के सन्दर्भ में गांधीवाद कितनी बड़ी भारतीय पूंजी है। भारत का स्तर इतना छोटा नहीं है कि इसका हर बात में पाकिस्तान से मुकाबला किया जाये, अतः श्री मोदी ने पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री इमरान खान की जली-बुझी बातों का संज्ञान ही नहीं लिया और केवल इतना कहा कि कोई भी देश अफगानिस्तान में हो रही घटनाओं को औजार बना कर आतंकवाद को फैलाने की हिमाकत नहीं कर सकता है परन्तु अमेरिकी उपराष्ट्रपति श्रीमती कमला हैरिस से अपनी पहली मुलाकात के दौरान उन्होंने जिस प्रकार लोकतन्त्र पर चर्चा की उसमें श्रीमती हैरिस ने इस बात पर जोर दिया कि दोनों ही देशों समेत वर्तमान में विश्व में इस प्रणाली के कमजोर होने का खतरा बना हुआ है जिसे लोकतान्त्रिक संस्थाओं को सुदृढ़ करके मजबूत किया जाना चाहिए। मगर राष्ट्रसंघ के मंच पर जब श्री मोदी ने यह कहा कि भारत में लोकतन्त्र काम कर रहा और सुखद परिणाम इस तरह दे रहा है कि देश के एक रेलवे स्टेशन पर अपने पिता की चाय के स्टाल पर उनका हाथ बंटाने वाला व्यक्ति भारत के प्रधानमन्त्री के रूप में चौथी बार इसकी सभा को सम्बोधित कर रहा है तो समूचे विश्व में भारत की लोकशक्ति की धमक इस तरह पहुंची कि लोकतन्त्र की असली मालिक जनता ही होती है और यही शासन प्रणाली विश्व के लिए सर्वश्रेष्ठ है।

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