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मोदी का ‘महानायक’ स्वरूप

राजनीति में नेतृत्व क्षमता और लोकतन्त्र में ‘नायक’ स्थिति पाने का सबसे बड़ा पैमाना यह होता है कि विरोधी ही उसका आकलन किस रूप में करते हैं?

राजनीति में नेतृत्व क्षमता और लोकतन्त्र में ‘नायक’ स्थिति पाने का सबसे बड़ा पैमाना यह होता है कि विरोधी ही उसका आकलन किस रूप में करते हैं? पिछले सात वर्षों में पहली बार ऐसा हुआ है कि जब प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी के सबसे प्रखर आलोचक कहे जाने वाले कांग्रेस के नेता पूर्व वित्त मन्त्री श्री पी. चिन्दम्बरम ने श्री मोदी की लोकप्रियता और उनकी आर्थिक सोच का लोहा मानते हुए स्वीकार किया है कि सम्पन्न लोकसभा चुनावों में मिली भाजपा की शानदार जीत का सेहरा प्रधानमन्त्री के सर पर बान्धा जा सकता है क्योंकि वह भारत के सभी सम्प्रदायों के गरीब वर्गों के बीच अपनी पार्टी को प्रतिष्ठापित करने में कामयाब हुए हैं। 
श्री चिदम्बरम का यह स्वीकार करना कि दलितों, मुस्लिमों व ईसाइयों के गरीब तबकों के लोगों ने भी आंशिक रूप से भाजपा प्रत्याशियों को विजय दिलाने में मदद की है, बताता है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह व प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी पार्टी के राष्ट्रवादी चेहरे में वंचित वर्ग के लोगों की संवेदनाओं को भी शामिल कर लिया है। श्री चिदम्बरम का अपने लेख में स्वीकार किया गया यह तथ्य बताता है कि उनकी पार्टी कांग्रेस सामान्य जनता की जिज्ञासाओं को भर पाने में असफल होती जा रही है। 
श्री चिदम्बरम का यह कहना कि केवल आन्ध्र प्रदेश, केरल व तमिलनाडु को छोड़कर शेष भारत में भाजपा को मिला समर्थन बहुत जबर्दस्त है जो किसी लहर या भावुकता पर निर्भर न होकर लोगों की दुनियादारी की समझ (प्रुडेंस) की वजह से है। भाजपा को अब उनका विश्वास जीतने की जरूरत है जो केवल जबान पर लगाम न रखने वाले नेताओं पर ‘लगाम’ कसकर ही जीता जा सकता है। 
मौजूदा दौर की यह कोई छोटी घटना नहीं है कि कांग्रेस पार्टी ही नहीं बल्कि समूचे राजनैतिक जगत का आर्थिक मस्तिष्क समझा जाने वाला नेता प्रधानमन्त्री व उनकी पार्टी भाजपा की लोकराजनीति के आगे नतमस्तक हो रहा है। इसका अर्थ यही निकलता है कि श्री मोदी के ‘जन-नायक’ के स्वरूप को समूचे विपक्ष ने हृदय से स्वीकार कर लिया है। अतः स्व. इन्दिरा गांधी के बाद पिछले 45 वर्षों की राजनीति में जिस राजनेता ने विराट जनसमूह को अपने कार्यों के बूते पर मोहने का कार्य किया उसका नाम सिवाय नरेन्द्र मोदी के अलावा कोई दूसरा नहीं हो सकता। 
यदि देश की जनता ने अपने विवेक से दुनियादारी की जरूरत की वजह से भाजपा को अपार समर्थन दिया है तो जाहिर है कि उसे नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व के भीतर ऐसा राजनेता नजर आता है जो उसके यकीन पर खरा उतर सकता है। बेशक भाजपा के सफल कुल 303 सांसदों में से केवल एक ही मुस्लिम समुदाय का सांसद हो मगर इस समुदाय के गरीब तबके के कम लोगों ने भी यदि भाजपा प्रत्याशियों को मत दिया है तो उन्होंने श्री मोदी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ही भाजपा के प्रति अपना मन बदला है। नेतृत्व क्षमता का इससे बड़ा ‘पारितोषिक’ कोई और नहीं हो सकता और जननायक होने का तगमा इसके सिवाय दूसरा नहीं हो सकता। 
मैं अब श्री चिदम्बरम से हटकर उन तथ्यों की बात करता हूं जो मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के लिए बहुत महत्वपूर्ण होंेगे। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण का मुद्दा हाशिये पर पड़ा रहा और इसे कुछ धार्मिक कट्टरपंथी तत्व पकड़े रहे उससे यह स्पष्ट हो गया था कि भाजपा ने अपना राजनैतिक विमर्श बदल कर ‘गरीबों’ का कर दिया है। धर्मनिरपेक्षता का विमर्श जिस अन्दाज में श्री मोदी ने पूरे चुनाव प्रचार में पेश किया वह आर्थिक नियामकों से इस प्रकार हाथों-हाथ जुड़ा कि हर हिन्दू-मुसलमान गरीब के खाते में सरकार द्वारा दी गई मदद जमा हुई। धर्मनिरपेक्षता का यह प्रायोगिक स्वरूप सभी धर्मों के नागरिकों को ज्यादा व्यावहारिक लगा। 
दूसरी तरफ पाकिस्तान की नापाक हरकतों का करारा जवाब देने के लिए श्री मोदी की प्रशंसा सबसे ज्यादा इसी गरीब व मध्यम वर्ग ने की। वस्तुतः जिन भी 303 स्थानों पर भाजपा प्रत्याशी विजयी हुए हैं उन सभी पर छाया रूप में श्री मोदी विद्यमान थे। जननायक की सबसे बड़ी पहचान यही होती है कि वह ‘‘महानायक” बनकर सभी प्रतिनिधियों को अपना ही प्रतीक बना डालता है। ठीक यही कार्य इन लोकसभा चुनावों में श्री मोदी ने किया और भारत की जनता के विविध चेहरों को अपने ‘चेहरे’ में समाहित कर डाला मगर यह कार्य आसान नहीं था क्योंकि ‘नोटबन्दी’ से लेकर ‘जीएसटी’ व बेरोजगारी के विपरीत प्रभावों से जूझती जनता के मन में ‘अपने’ द्वारा किये गये इन कार्यों के सुफल परिणामों के प्रति उम्मीद जगाने का काम पहाड़ तोड़ने से कम नहीं था वह भी तब जबकि अर्थव्यवस्था से जुड़े विभिन्न मानक उलटा घूमने की गवाही दे रहे हों, लेकिन लोकतन्त्र में ऐसा तभी होता है।
 जब कोई ‘महानायक’ जनता का भरोसा जीत लेता है और यह भरोसा अकारण नहीं हो सकता। बेशक श्री चिन्दम्बरम के अनुसार ही कुछ लोग यह मानते हों कि वह कोई भी काम ठीक नहीं करते परन्तु अधिसंख्य लोग मानते हैं कि उनका हर काम उनकी भलाई के लिए होता है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण हमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता ने दिया जहां के अधिसंख्य किसानों और पिछड़े वर्ग के लोगों ने  भाजपा को मत देना बेहतर समझा। 
इतना ही नहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश में श्री मोदी की विदेश नीति में भारत के बढ़ते कद का मुद्दा जबर्दस्त चर्चा में रहा। इसलिए यह कहना कि विदेश नीति जैसा दुरुह विषय भारत में लोकविमर्श का आकर्षण नहीं बन सकता, भारत के जनमानस को न पहचानने का ही नमूना है परन्तु यह भी हकीकत है कि भाजपा को श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में ही भाजपा की वह नई विरासत पैदा करनी होगी जिसमें आलोचक को भी सम्मान प्राप्त हो और ‘निन्दक नियरे राखिये’ से विरक्ति पैदा न हो। भारत तो वह देश है जिसमें ‘दुर्वासा’ को भी ‘ऋषि’ स्थान दिया गया। 

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