मोदी की अमेरिका यात्रा

मोदी की अमेरिका यात्रा
Published on

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का कार्यकाल कुछ ही हफ्तों का बचा है। अमेरिका की नई सरकार डोनाल्ड ट्रम्प या भारतीय मूल की अमेरिकी कमला हैरिस के नेतृत्व में काम करेगी। ऐसे समय में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका यात्रा बाइडेन को विदाई देने के साथ-साथ काफी महत्वपूर्ण मानी गई है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि बाइडेन ने अमेरिका-भारत संबंधों को मजबूत करने में एक महत्वपूर्ण पारी खेली है। अमेरिका भारत के शीर्ष व्यापार साझेदारों में से एक है। बाइडेन ने भारत की इच्छाओं के अनुरूप पाकिस्तान को किनारे लगाए रखा तो दूसरी तरफ चीन को एक बड़ी चुनौती के रूप में लिया और कई मुद्दों पर भारत का सहयोग किया। भारत-अमेरिका में रणनीतिक साझेदारी और रक्षा सहयोग का विस्तार भी हुआ। जहां तक क्वाॅड सम्मेलन का संबंध है यह बाइडेन का आ​िखरी सम्मेलन हुआ। चार सदस्यीय क्वाॅड रणनीतिक रूप से पहले से अधिक एकजुट दिखाई दिया। इस बात का प्रमाण सम्मेलन के बाद जारी संयुक्त घोषणा पत्र से मिल गया है। क्वाॅड शिखर सम्मेलन में भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के राष्ट्र अध्यक्षों ने भाग लिया। क्वाॅड चार देशों का एक अनौपचारिक मंच है जो मिलकर समुद्री सुरक्षा को मजबूत बनाने की रणनीति तैयार करते हैं।
चार देशों के नेताओं ने कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चार प्रमुख समुद्री लोकतंत्रों के तौर पर हम वैश्विक सुरक्षा एवं समृद्धि के अपरिहार्य तत्व के तौर पर इस गतिशील क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता बनाए रखने के स्पष्ट रूप से पक्षधर हैं। साथ ही क्वाॅड नेताओं ने चीन का बिना नाम लिए निशाना साध कहा कि समूह ऐसी किसी भी अस्थिरता पैदा करने वाली या एकतरफा कार्रवाई का कड़ा विरोध करता है जो बलपूर्वक या दबाव से यथास्थिति को बदलने की कोशिश करता है। चीन दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर दोनों में क्षेत्रीय विवादों में उलझा हुआ है। वह पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपनी संप्रभुता का दावा करता है। वहीं वियतनाम, मलेशिया, फिलीपींस, ब्रुनेई और ताइवान भी अपना हक जताते हैं।
इस समूह ने ​िहन्द प्रशांत क्षेत्र में प्रशिक्षण के लिए एक नई क्षेत्रीय समुद्री पहल की घोषणा की ताकि उनके साझेदार अपने जल क्षेत्रों की निगरानी कर सके। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बाइडेन के बीच द्विपक्षीय वार्ता भी हुई। बातचीत में दोनों ही व्यक्तिगत कैमिस्ट्री तो सामने आई ही, बल्कि यह भी काफी अहम रहा कि बाइडेन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सीट का समर्थन किया और कहा कि सुरक्षा परिषद में सुधार समय की मांग है। क्वाॅड को भारत प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए एक मंच के तौर पर देखा जाता है। भारत का नजरिया अलग रहा है। बाइडेन ने भारत के नजरिये के साथ जाने का फैसला ​िकया था कि क्वाॅड को सैन्य गठबंधन के तौर पर विकसित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसे भारत प्रशांत में सार्वजनिक सेवाएं उपलब्ध कराने वाले मंच के तौर पर देखा जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी यह स्पष्ट किया कि क्वाॅड किसी के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह समूह चाहता है कि समुद्र में अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन हो। इसी दौरे के दौरान भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग को और विस्तार मिला है।
भारत ने अमेरिका से आकाश और समुद्र की रक्षा के लिए 31 गार्जियन ड्रोन खरीदे हैं जो एक मेगा डील है। अमेरिका कोलकाता में सेमीकंडक्टर प्लांट भी स्थापित करने में सहयोग करेगा। दोनों नेताओं ने इंडिया-अमेरिका डिफेंस इंडस्ट्रियल कोऑपरेशन रोडमैप को सराहा। इस रोडमैप के तहत जेट इंजन, गोला-बारूद और ग्राउंड मोबिलिटी सिस्टम जैसे भारी एक्वीपमेंट्स और हथियारों का निर्माण किया जाता है। इस अहम सहयोग में लिक्विड रोबोटिक्स और भारत के सागर डिफेंस इंजीनियरिंग, मेरिटाइम सुरक्षा को बढ़ाने के लिए मानवरहित सतही वाहनों के प्रोडक्शन पर भी जोर दिया जाएगा। भारत में रक्षा संबंधी उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए पीएम मोदी ने एमआरओ सैक्टर यानी कि मेंटेनेंस, रिपेयर और ओवरहॉलिंग क्षेत्र में जीएसटी की दरों को 5 फीसदी कर दिया है। इससे इस क्षेत्र में अमेरिकी कंपनियों के आने की उम्मीद है। अमेरिकी कंपनियों ने भारत में एमआरओ सैक्टर में बदलाव का वादा किया है। अमेरिकी कंपनियां मानव रहित यान की मरम्मत की सुविधा भारत में विकसित करने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश करना चाहती हैं।
दोनों नेताओं की बातचीत में रूस-यूक्रेन युद्ध पर भी चर्चा हुई। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार अपने आप में जटिल प्रक्रिया है। प​श्चिमी देश इन सुधारों का सैद्धांतिक तौर पर समर्थन करते हैं लेकिन असली चुनौती वीटो रखने वाले देशों की है। चीन इसमें सबसे बड़ी बाधा है। भारत-अमेरिका संबंधों में लगातार विस्तार में प्रवासी भारतीयों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। अमेरिका के भीतर भारतीय प्रवासी एक प्रभावी सार्वजनिक कूटनीति उपकरण है। अमेरिका के प्रशासन में प्रवासी भारतीयों की भूमिका लगातार बढ़ रही है। भारतीय मूल के अमेरिकी वहां के ताने-बाने का हिस्सा बन चुके हैं और हर राजनीतिक दल के लिए प्रवासी भारतीयों का समर्थन काफी महत्वपूर्ण है। देखना होगा कि अमेरिकी चुनावों के परिणाम क्या निकलते हैं और वहां की भावी सरकार भारत से संबंधों को कितना विस्तार देती है।

देश और दुनिया की तमाम खबरों के लिए हमारा YouTube Channel 'PUNJAB KESARI' को अभी Subscribe करें। आप हमें FACEBOOK, INSTAGRAM और TWITTER पर भी फॉलो कर सकते हैं।

Related Stories

No stories found.
logo
Punjab Kesari
www.punjabkesari.com