है बहुत अंधियार, अब सूरज निकलना चाहिए,
जिस तरह भी हो, यह मौसम बदलना चाहिए।
अब तलक कुछ लोगों ने बेची न अपनी आत्मा,
ये पतन का सिलसिला, कुछ और चलना चाहिए।
जो चेहरे रोज बदलते हैं, नकाबों की तरह।
अब जनाजा धूम से उनका निकलना चाहिए।
क्या सच है, क्या झूठ है, न तो अब जानने की जरूरत महसूस हो रही है और न ही उसे जानकर इन बेईमान लोगों, नौकरशाहों और विश्वासघाती नेताओं के प्रति हमारे दिल में कोई सदवना उत्पन्न होने की सम्भावना है। कुछ लोगों ने इस देश को और इसके प्रजातंत्र को एक प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी बना दिया और उसे लूटते रहे। लुटेरे अनेक हैं लेकिन लूट का ढंग अलग-अलग है। भारत में राष्ट्रद्रोह की एक नहीं कई अनकही दास्तानें हैं। कई मुजरिम कठघरों तक आए और छूट गए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार के दौरान कालेधन और मनी लाड्रिंग के विरुद्ध जिस तरह से जोरदार अभियान चलाया गया उससे लोगों का लोकतंत्र और न्यायपालिका में विश्वास पुख्ता हुआ है। अब लोगों को यकीन है :
कठघरे पर वक्त के पहरे हैं, इसलिए यह चुप्पी है,
इन्साफ की कुर्सी के मुंसिफ,
जो कहते हैं यह लिखता है,
पर तारीख ने जब इन्साफ किया,
उस रोज कठघरा बोलेगा,
इन झूठे और बेईमानों के,
सब राज पुराने खोलेगा, इक रोज कठघरा बोलेगा।
अत: मांस व्यापारी मोईन कुरैशी को प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार कर ही लिया। जब भी उसके बारे में कुछ प्रकाशित होता था टी.वी. चैनल स्टोरी चलाते तो लोग कहते थे कि यह आदमी समय, काल, दिशा सबसे परे है, कोई हाथ नहीं डाल सकता, जो इसकी मर्जी होगी, कर लेगा। मोईन कुरैशी से कई बार पूछताछ हो चुकी थी। पिछले काफी समय से विदेश दौरे पर था। कुरैशी के परिवार वाले भी जांच एजेंसियों के राडार पर थे। अंतत: प्रवर्तन निदेशालय ने मनी लाड्रिंग केस में उस पर हाथ डाल ही दिया। मोईन कुरैशी 90 के दशक में मीट बेचता था। परिवार ने 50 के दशक में मीट का व्यापार शुरू किया था। पैसा तब बनना शुरू हुआ जब उसने एक्सपोर्ट करने का धंधा शुरू किया। 10 वर्षों में ही मोईन कुरैशी देश का सबसे बड़ा मीट व्यापारी हो गया। उसने कई बार आयकर विभाग को छकाया। कानपुर में बिजनेस शुरू करने वाले मोईन कुरैशी को एक बार पकडऩे की कोशिश की गई। एयरपोर्ट पर डिटेन भी किया गया परन्तु वह आसानी से दुबई निकल गया।
यूपीए शासनकाल में उसे किसके इशारे पर जाने दिया गया, यह जांच का विषय है। अपनी आलीशान जिन्दगी के लिए चर्चित मोईन कुरैशी पर फरवरी 2014 में आयकर विभाग ने छापेमारी की तो उनमें से एक जगह सीबीआई निदेशक ए.पी. सिंह की थी। वहां से कुरैशी अपना ऑफिस चलाता था। कौन नहीं जानता कि कुरैशी के ए.पी. सिंह से लेकर सीबीआई निदेशक रहे रंजीत सिन्हा से करीबी रिश्ते थे। उसके कांग्रेस के दिग्गजों और समाजवादी नेताओं से भी करीबी रिश्ते रहे हैं। जब रंजीत सिन्हा की विजिटर डायरी को लेकर हंगामा हुआ था तब उसमें कुरैशी का नाम भी था। मोईन कुरैशी का मामला ऐसा है जितनी परतें खुलती जाएं, उतनी कहानियां सामने आती जाएंगी। मनी लांङ्क्षड्रग का नेटवर्क इतना व्यापक है जिसने बार-बार पूरे सरकारी तंत्र को चुनौती दी है। उसने करोड़ों रुपए विदेशों में भेजे और काफी सम्पत्ति अर्जित की। आयकर विभाग की खुफिया शाखा ने मोईन कुरैशी की विभिन्न हस्तियों से होने वाली टेलीफोनिक बातचीत टेप की। लगभग 550 घण्टों की रिकॉर्डिंग अगर सार्वजनिक कर दी जाए तो देशभर में तूफान उठ खड़ा होगा क्योंकि उसमें सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के नाम शामिल हैं।
मोईन पर सीबीआई में कई संवेदनशील मामलों में डील कराने का आरोप है। डील कराने के बदले मोईन पर पैसे लेने के भी आरोप हैं। सीबीआई के पूर्व निदेशक ए.पी. सिंह के साथ उसकी सांठगांठ रही जिनके खिलाफ मुकद्दमा दर्ज हो चुका है। उसके हवाला नेटवर्क की कलई तो इसी वर्ष मार्च में खुल गई थी जब कुरैशी के कालेधन को देश-विदेश भेजने वाले पर ईडी ने छापेमारी की थी। अब जबकि कुरैशी की गिरफ्तारी हो चुकी है तो सवाल उठता है कि सीबीआई के पूर्व निदेशकों ने किस तरह अपने पद का दुरुपयोग कर किन-किन मामलों की जांच में किस-किस को बचाया। जांच एजेंसियों की भी स्कैङ्क्षनग की जरूरत है। फिलहाल इक रोज कठघरा बोलेगा और वह बोल भी रहा है।