मानसून की भविष्यवाणियां सामने आते ही डॉक्टर रामकृष्ण की पंक्तियां याद आ रही हैं।
‘‘लो गगन में बदलियां छाने लगी हैं
मानसूनी घटाओं की आहटें आने लगी हैं
सूखे जलाशयों की गर्म आहों से
तड़कते खेतों की अबोल करुण चाहाें से
किसानों की याचना भरी निगाहों से
निकली प्रार्थनाएं असर दिखलाने लगी हैं।’’
भारतीय किसानों के लिए सोने की तुलना में पानी अधिक मूल्यवान हैं। क्योंकि कम से कम 50 प्रतिशत कृषि का पानी वर्षा द्वारा ही प्राप्त होता है। यदि मानसून अनुकूल है तो कृषि पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यदि यह अनुकूल नहीं है तो फिर किसानों के चेहरे पर हताशा आ जाती है। वास्तव में मानसून ऐसा केन्द्र है जिसके आसपास भारत की अर्थव्यवस्था घूमती है। भारतीय सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान 20.5 फीसदी है। अगर मानसून सामान्य रहता है तो कृषि उत्पादन और किसानों की आय दोनों में बढ़ौतरी होती है जिससे ग्रामीण बाजारों में उत्पादों की मांग को बढ़ावा मिलता है। इसलिए मानसून का सामान्य रहना भारत के लिए बहुत जरूरी है। अच्छे मानसून के अभाव में खाद्य मुद्रा स्फीति के कारण पूरे देश में उथल-पुथल मच जाती है। भारत की सामाजिक और सांस्कृृतिक एकता में भी मानसून की भूमिका है।
कृषि कैलेंडर और लोगों को सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन उनके उत्सव मानसून के चारों ओर घूमते हैं। यदि वर्षा अच्छी होती है तो पूरा देश आनंद से झूम उठता है और यदि मानसून विफल रहता है तो सूखे की स्थिति पैदा हो जाती है। भारतीय मौसम विभाग ने एक अच्छी खबर यह दी है कि अलनीनो प्रभाव के बावजूद इस वर्ष मानसून सामान्य रहेगा। यह लगातार पांचवां साल होगा जब भारत में मानसून सामान्य रहेगा। हालांकि भारतीय मौसम विभाग की भविष्यवाणी के मुताबिक जून में सामान्य से कम बारिश हो सकती है। उत्तर पश्चिम भारत के कुछ राज्यों में बारिश सामान्य से कम हो सकती है लेकिन दक्षिण पश्चिम मानसून सामान्य रहने की उम्मीद है। इससे पहले आशंका जताई जा रही थी कि आगामी दक्षिण पश्चिमी मानसून सीजन में बारिश औसत से कम होगी।
प्रशांत महासागर में अलनीनो प्रभाव के चलते औसत से कम बारिश की बात कही जा रही थी लेकिन अब मौसम विभाग ने साफ कर दिया है कि अलनीनो का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। दरअसल एक अमेरिकी एजैंसी ने प्रशांत महासागर में अलनीनो इफैक्ट बनने की आशंका जताई थी और रिपोर्ट में कहा गया था कि अलनीनो इफैक्ट के चलते बारिश कम हो सकती है या फिर बहुत ज्यादा भी हो सकती है। सभी तरह की चुनौतियों का सामना करने के लिए केन्द्र सरकार ने राज्यों को तैयारी करने का परामर्श दिया था ताकि अगर बारिश कम होती है तो पर्याप्त मात्रा में खरीफ फसलों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। खरीफ फसलों की बुवाई के सीजन के लिए समुचित रणनीति बनाने के लिए भी एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया था। इसमें कोई संदेह नहीं कि केन्द्र सरकार द्वारा किसानों के लिए बेहतर अवसर पैदा करने, कृषि उत्पादों के संरक्षण एवं मार्किटिंग के लिए बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। जिनके अच्छे परिणाम भी सामने आ रहे हैं लेकिन भारत में मौसम का चक्र काफी बदल चुका है। मई माह में मानसून जैसी बारिश से किसानों की चिंताएं काफी बढ़ गई हैं। पिछले फरवरी-मार्च में तापमान में अप्रत्याशित बढ़ौतरी से गेहूं का दाना सिकुड़ गया था जिससे गेहूं का उत्पादन प्रभावित हुआ लेकिन इससे फसल को उतना नुक्सान नहीं हुआ जितनी आशंका व्यक्त की जा रही थी। मई में जब तापमान अचानक 46 डिग्री तक पहुंच गया था कि अचानक बेमौसम की बरसात शुरू हो गई।
मौसम विभाग का अनुमान है कि अगले तीन दिन और बारिश हो सकती है। यह बारिश एक हफ्ता पहले बोई गई दहलनों की फसल के लिए नुक्सानदेह साबित हो सकती है। क्योंकि बारिश के चलते उनके अकुंरन की प्रक्रिया प्रभावित होगी। नरमा और कपास की चल रही बिजाई पर भी असर पड़ सकता है। धीमे उठान के कारण अनाज मंडियों में खुले में पड़ा गेहूं और सरसों भी भीग गया है। देश में मौसमी चक्र के बदलाव के साथ-साथ वर्षा का पैट्रन भी काफी बदल चुका है। पहले मानसून की वर्षा की रिमझिम हफ्ता-हफ्ता चलती रहती थी लेकिन अब वर्षा एक-दो घंटे में ही उथल-पुथल मचा देती है। कई शहरों में कुछ घंटे की वर्षा से ही तलाब जैसे दृश्य पैदा हो जाते हैं। अब जलवायु का अनुमान लगाना कठिन नहीं है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रकृति की चुनौतियों का सामना कैसे किया जाए। संवैधानिक व्यवस्था के अन्तर्गत कृषि राज्य का विषय है और मौसम की चुनौतियों से निपटने के लिए राज्य सरकारों को पहले से कहीं अधिक चुस्ती से काम लेना होगा। भौगोलिक विविधता के कारण देश के अलग-अलग हिस्सों में जलवायु परिवर्तन के असर भी अलग-अलग होते हैं। राज्य सरकारों को इसके आधार पर ऐसी रणनीति तैयार करनी चाहिए ताक नुक्सान से बचा जा सके। कृषि क्षेत्र के लाभ सुनिश्चित करने के लिए तकनीक के इस्तेमाल की बड़ी भूमिका है। बेहतर यही होगा कि मौसम का आंकलन कर तकनीक का सहारा लिया जाए। मानसून भारतीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा है। मौसम अनुकूल रहेगा तो व्यापार भी संतुलित होगा। उम्मीद है कि मानसून नई ऊर्जा और नई उम्मीदों का संचार करे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com