पिछले वर्ष के अन्त तक आते-आते मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सरकारें गंवा दी थीं और तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकारें बन गई थीं। तब से इस बात का अनुमान लगाया जा रहा है कि लोकसभा चुनावों में तीनों राज्यों के मतदाताओं का मूड क्या होगा? यद्यपि विधानसभा चुनावों में 230 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस ने 114 सीटों पर जीत दर्ज की थी, वहीं शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा 109 सीटें ही जीत पाई। मध्य प्रदेश में दोनों दलों में कांटे की टक्कर रही। दोनों दलों के मिले वोट प्रतिशत में मामूली अन्तर था। कई बार ऐसा देखा गया है कि राज्यों में विपक्ष जीता लेकिन उसके बाद हुए लोकसभा के चुनाव में राज्यों में केन्द्र में सत्तारूढ़ दल को फायदा हुआ।
इतिहास कई बार राजनीति में दोहराया जाता है। कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार काम तो कर रही है लेकिन पार्टी के भीतर गुटबाजी अब भी साफ नजर आ रही है। 1998 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह भाजपा से केवल ढाई प्रतिशत वोट ज्यादा लेकर मुख्यमंत्री बने थे लेकिन 1994 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने कांग्रेस से ढाई प्रतिशत वोट अधिक लेकर 21 सीटें जीत ली थीं।नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा गरीब सवर्णों को आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण देने के फैसले से सवर्णों में नाराजगी अब खत्म दिखाई देती है। किसानों के खाते में साल में तीन बार नकद ट्रांसफर स्कीम से भी उनकी नाराजगी काफी हद तक कम हुई है। मध्य प्रदेश की जनता केन्द्र में नरेन्द्र मोदी को ही प्रधानमंत्री बनता देखना चाहती है। भाजपा का मत प्रतिशत अब भी कांग्रेस से 5 प्रतिशत ज्यादा है।
मध्य प्रदेश में भाजपा को कम से कम 23 सीटें मिलती दिखाई जा रही हैं। कांग्रेस को 5-6 सीटें ही मिलेंगी। सरकार बनाकर भी कांग्रेस के हाथ यहां कुछ ज्यादा नहीं आने वाला। जहां तक राजस्थान का सवाल है, करीब दो माह पहले राज्य विधानसभा चुनावों में एक नारा जोर-शोर से लगा था कि ‘‘मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं’’। यही नारा भाजपा के लिए लोकसभा में काम कर रहा है। 2009 के चुनाव में राजस्थान में कांग्रेस की सरकार थी, उसे 20 और भाजपा को 4 सीटें मिली थीं। 2004 के चुनाव में राज्य में भाजपा की सरकार थी, उसे लोकसभा की 21 सीटों पर जीत मिली थी। पिछले दो दशकों का ट्रेंड तो यही रहा है कि प्रदेश में जिस पार्टी की सरकार बनती है, लोकसभा में उस पार्टी को ही अधिक सीटें मिलती हैं।
वैसे तो राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तीन माह में जीतने का मूड बदलना मुश्किल है लेकिन इस बार मोदी फैक्टर से यह ट्रेंड बदलेगा। विश्लेषकों का मानना है कि राज्य के लोग पहले भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार से खुश थे लेकिन तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार से नाराजगी के चलते विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा था। अब मतदाता फिर मोदी के लिए वोट करेंगे। सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक का भाजपा को लाभ मिलता साफ दिखाई दे रहा है। जहां तक छत्तीसगढ़ का सवाल है, लोकसभा की 11 सीटों पर 2014 के चुनाव में भाजपा को 10 और कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली थी।
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में 15 वर्षों से सत्ता पर काबिज डा. रमन सिंह की भाजपा सरकार को करारी हार का सामना करना पड़ा था और राज्य में भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी थी। कांग्रेस को 90 सीटों में से 68 पर जीत मिली थी वहीं भाजपा 15 सीटों पर सिमट गई थी। लोकसभा चुनावों में स्थिति बराबरी की ही रहेगी। चुनावों में नफा-नुक्सान चलता रहता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में भाजपा की किलेबंदी मजबूत है। भाजपा वहां 26 सीटों पर जीत के करिश्मे को दोहराने को तैयार है। भाजपा ने कांग्रेस में जबर्दस्त सेंध लगा ली है। पाटीदारों का मान-मनोव्वल के साथ भाजपा ने कांग्रेस के कद्दावर नेताओं को अपने पाले में ले रही है। कांग्रेस के भीतर हाईकमान के प्रति असंतोष बढ़ रहा है और उसके अनेक नेता भाजपा में शामिल हो सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्टेच्यू ऑफ यूनिटी को गुजरात का गौरव बना डाला है। भाजपा राज्य में बड़े तरीके से कहीं न कहीं गांधी और पटेल की विरासत के साथ खुद को जोड़ती नजर आ रही है। विधानसभा चुनावों के दौरान पाटीदार आरक्षण आंदोलन, ओबीसी एकता आंदोलन व दलित अधिकार आंदोलन के चलते पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर और दलित नेता जिग्नेश मेवाणी जरूर कुछ समय के लिए प्रदेश की राजनीति में अपना प्रभाव दिखाने लगे लेकिन अब इनका असर भी समाप्त हो चुका है। गुजरात के मूड से साफ जाहिर है कि यहां से भाजपा अधिकतम लाभ में रहेगी। बाकी चर्चा मैं कल करूंगा।