कतर में चल रहे वर्ल्ड कप फुटबाल में वैसे तो कई बड़े उलटफेर हुए हैं लेकिन सबसे बड़ा उलटफेर मोरक्को ने कर दिखाया है। क्रिस्टियानो रोनाल्डो और अन्य वर्ल्ड क्लास खिलाडि़यों वाली पुर्तगाल की टीम को मोरक्को ने हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया है। 92 साल के इतिहास में मोरक्को पहली अफ्रीकी टीम बन गई है जो फीफा वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में पहुंची है। इससे पहले मोरक्को क्वार्टर फाइनल में भी नहीं पहुंच सकी थी। मोरक्को 2 मार्च 1956 में फ्रांस से आजाद हुआ था। यानि वह भारत से करीब 10 साल बाद आजाद हुआ। उसकी आबादी 3.67 करोड़ है जबकि ढाई तीन करोड़ लोग तो राजधानी दिल्ली में रहते हैं। वहां के लोगों में फुटबाल को लेकर जबरदस्त जोश और जुनून है। फुटबाल प्रेमी यह सवाल जरूर उठा रहे हैं कि छोटा सा देश फुटबाल में कैसे आगे निकल गया जबकि भारत वर्ल्ड कप फुटबाल में क्वालीफाई ही नहीं कर पाया। ऐसा नहीं है कि भारत में फुटबाल के प्रति दीवानगी नहीं रही। लेकिन यहां क्रिकेट को लेकर जो क्रेज पैदा हई उसने भारतीय फुटबाल को निगल लिया। पश्चिम बंगाल और कुछ राज्यों में फुटबाल को लेकर अभी भी दीवानगी देखी जा सकती है। मोहन बागान, जेसीटी फुटबाल और अन्य टीमों को लोग आज तक याद करते हैं। भारतीय फुटबाल के स्वर्णिम दिन भी रहे हैं। भारतीय फुटबाल टीम ने चार ओलिंपिक्स में भाग लिया था और 1950 में वह फीफा वर्ल्ड कप में क्वालीफाई करने में सफल रही थी लेकिन निराशाजनक बात यह रही थी कि आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण भारतीय टीम ने अपना नाम वापस ले लिया था। बाद में फुटबाल के प्रति दीवानगी कम होती गई और फुटबाल फैडरेशन राजनीति का शिकार हो गया। इसी वर्ष फीफा ने अगस्त माह में ऑल इंडिया फुटबाल फैडरेशन पर प्रतिबंध लगा दिया।
फुटबाल फैडरेशन को लेकर कई गहरे सवाल उठते रहे हैं। मोरक्को की पुर्तगाल पर जीत एक अंडर डॉग देश की जीत है और ऐसी टीमें अपने कंधों पर देश को पहचान और खेल में वैधता दिलाने का भार भी ढोती है। आखिर मोरक्को की कामयाबी में किस का बड़ा हाथ रहा। इस बारे में फुटबाल विशेषज्ञों की राय बहुत स्पष्ट है। साल 1999 से मोरक्को पर शासन कर रहे किंग मोहम्मदVI का भी मोरक्कन फुटबॉल के विकास में अहम रोल रहा है। किंग मोहम्मद ने इस देश में फुटबॉल अकादमी के निर्माण के लिए वित्तीय मदद प्रदान की। इसका नतीजा ये हुआ कि ऐसे खिलाड़ी उभर कर सामने आए जो मोरक्को की प्रोफेशनल लीग (बोटोला) के साथ ही अपने मुल्क और विदेशी लीगों में भी धमाका कर रहे हैं। नई प्रतिभाओं के सामने आने के चलते अफ्रीकी चैम्पियंस लीग में भी मोरक्को के क्लबों का भी परफॉर्मेंस पिछले सालों में बढ़िया रहा है। एक समय मिस्र, ट्यूनीशिया और नाइजीरिया के क्लबों का इस प्रतियोगिता में काफी दबदबा था। मोरक्को के काफी लोग फ्रांस, स्पेन, नीदरलैंड जैसे देशों में बसे हुए हैं, लेकिन जब अपने मुल्क के लिए खेलने की बारी आती है तो कोई पीछे नहीं हटता है। मौजूदा टीम के भी कई सितारे- हाकिम जिएच, सोफियान बाउफल, रोमेन सेस, अशरफ हकीमी और यासिन बोनो या तो विदेशों में पैदा हुए या फिलहाल विदेशी लीगों में खेलते हैं। वैसे ये खिलाड़ी मोरक्को के लिए कई बड़े टूर्नामेंट्स में भाग ले चुके थे लेकिन इससे पहले उनका प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा था। अब मौजूदा वर्ल्ड कप में इनके प्रदर्शन में अचानक से काफी निखार आ चुका है। खिलाड़ियों के इस बदलाव में टीम के कोच वालिद रेगरागुई की भी अहम भूमिका निभाई है जिन्होंने चंद महीनों में ही टीम की किस्मत पलट दी। वालिद रेगरागुई को इसी साल अगस्त में टीम का कोच नियुक्त किया गया था।
मोरक्को की 97 फीसदी से अधिक आबादी मुस्लिम है इसे अरब अफ्रीकी देश इसलिए कहते हैं कि यहां रहने वाले बड़ी संख्या में अरब सुन्नी लोग हैं। 7वीं सदी से लेकर 11वीं सदी तक यहां अरब ने राज किया था। जिसके परिणाम स्वरूप मोरक्को के लोगों में अरब की संस्कृति गहरे तक बैठी हुई है। लेकिन मोरक्को की जीत को जिस तरह से इस्लाम से जोड़ा गया है वह काफी दुखद है। मोरक्को को जीत के साथ ही अरब और अफ्रीकी देशों में जश्न का माहौल है। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस जीत को इस्लाम से जोड़ते हुए इसे दुनियाभर के मुसलमानों की जीत बताया। कुछ अन्य लोगों ने भी इस जीत को मुस्लिम दुनिया के लिए बड़ी उपलब्धि बताया। खेलों को धर्म से जोड़ने को लेकर एक बहस छिड़ गई है। लेकिन फुटबाल से जुड़े लोग मोरक्को की जीत को एक अरब और अफ्रीकी देश की जीत करार दे रहे हैं न कि इस्लाम की जीत। मोरक्को टीम ने अपनी मेहनत और शानदार खेल से जीत हासिल की है। इसे धर्म से जोड़ना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। मोरक्को की टीम आत्म विश्वास के साथ मैदान में उतरी और उसने एक के बाद एक जीत हासिल करते हुए सेमीफाइनल में जगह बनाई और राउंड आफ 16 में 2010 की विश्व विजेता टीम स्पेन को हराया। इससे पहले तीन अफ्रीकी देश कैमरून, सेनेगल और घाना फीफा वर्ल्ड कप के क्वार्टर फाइनल में पहुंच चुके हैं। लेकिन कोई भी टीम सेमीफाइनल में अपना रास्ता नहीं बना सकी। अपने दृढ़ संकल्प के साथ ही मोरक्को ने अपना सपना सच किया है। सवाल यह नहीं है कि वर्ल्ड कप किसके हिस्से आएगा। मोरक्को का सेमीफाइनल में पहुंचना ही अपने आप में बड़ी कहानी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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