कोरोना वायरस संकट के बीच ऐसी खबरें लगातार मिल रही हैं जिससे समाज में व्याप्त विसंगतियों का पता चलता है। वैसे तो भारत ने हर क्षेत्र में प्रगति की है लेकिन समाज में जिस तरह की घटनाएं हो रही हैं उससे यह सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है कि प्रगतिशील समाज में आज भी ऐसे रक्तबीज हैं जो अपने ही बच्चों को मौत के घाट उतार रहे हैं। हरियाणा से आई खबर बहुत चौंकाने वाली है। जींद के गांव डिहवाड़ा में एक खूनी पिता ने अपने पांच बच्चों को मौत के घाट उतार दिया। जुम्मा नाम के मजदूर की हाल ही में दो बेटियों मुस्कान और निशा की डूबकर मौत हो गई थी। पुलिस ने हांसी बुटाना लिंक नहर से उनके शव भी बरामद कर लिए थे। जांच से पता चला कि उनका कातिल और कोई नहीं बल्कि जुम्मा ही था। आरोपी पिता ने गांव पंचायत के सामने अपने बच्चों की हत्या का जुर्म कबूला तो उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया। पूछताछ में आरोपी ने खुलासा किया कि उसने तांत्रिक क्रिया के चक्कर में बच्चों का मार डाला। उसने यह भी बताया कि वह कैथल के एक तांत्रिक के सम्पर्क में था और उसने तंत्र विद्या के चक्र में गुनाह किया है। हैरानी होती है कि आज के दौर में एक पिता हैवान कैसे बन गया। यह दर्दनाक घटना इस बात का प्रमाण है कि हमारा समाज आज भी धार्मिक ढोंग, पाखंड और अंधविश्वास की बेड़ियों में लोभी और गुमराह करने वाले लोगों द्वारा जकड़ा हुआ है। अधिकतर कम पढ़े-लिखे लोग इनका शिकार होते ही हैं लेकिन हमने धर्म और आस्था के नाम पर पढ़े-लिखे लोगों को भी इनका शिकार होते देखा है। चमत्कारी बाबाओं और धर्मगुरुओं द्वारा महिलाओं का शोषण की बातें समय-समय पर सामने आती रही हैं। दोषी केवल बाबा, मुल्ला या तांत्रिक नहीं बल्कि हमारा यह भटका हुआ समाज है जो किरदार की जगह चमत्कारों से भगवान या खुदा को पहचानने की गलती कर देता है। इस्लाम में बार-बार समझाया है कि अल्लाह एक है और उसी ने सबको पैदा किया है, वही सबका दाता है और हर चमत्कार की ताकत केवल उसी की है और जो यकीन ना करे किसी और के चमत्कार को देख उसको भगवान या अल्लाह मान ले तो उसने शिर्क करने का पाप किया है। बावजूद इस यकीन के और अल्लाह की हिदायत के मुसलमान भी गुमराह हो जाता है। कुरान में इस बात का जिक्र किया गया है कि अल्लाह ने कुछ नेक बंदों को चमत्कार की ताकत समय-समय पर दी है जिसका इस्तेमाल उन्होंने धर्म कायम करने और अधर्म को मिंटाने तथा समाज हित में काम करके किया ना कि उन चमत्कारों को दिखा के धन लूटने के लिए किया। बाबाओं द्वारा दिखाए चमत्कार, जादू, सहर, नजरबंद हुआ करता है जो की एक विज्ञान है।
यह बात साफ है कि यह सारे ढोंग, पाखंड किसी धर्म का हिस्सा नहीं और इनमें विश्वास अंधविश्वास है। हरियाणा के गांव का मजदूर जुम्मा और तांत्रिक के चक्कर में फंसा हुआ था। जरा सोचिये कि तंत्र-मंत्र के चक्कर में उसका किस कदर माइंड वाश हो चुका था कि वह एक-एक करके पांच बच्चों को मौत के घाट उतारता गया। उसकी पत्नी छठे बच्चे की गर्भवती है। जुम्मा के कृत्यों का पर्दाफाश हो गया अन्यथा बातें अंधेरे में रहतीं तो हो सकता था कि वह छठे बच्चे को भी मौत के घाट उतार देता। अगर जुम्मा ने अपने बच्चों की हत्या गरीबी के चलते की है तो भी यह समाज के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। अंधविश्वासों को अच्छे और बुरे अंधविश्वासों में बांटा जा सकता है। ज्ञान का प्रकाश हो जाने पर भी अंधविश्वास समाप्त नहीं हो रहे हैं। आदिकाल में मनुष्य का क्रिया क्षेत्र काफी सीमित था। इसलिए अंधविश्वासों की संख्या भी सीमित थी। ज्यों-ज्यों मनुष्य की क्रियाओं का विस्तार होता गया अंधविश्वासों का जाल भी फैलता गया। अंधविश्वास मनुष्य को कर्महीन और भाग्यवादी ही नहीं बनाते कातिल भी बना देते हैं।
ऐसी कई घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं कि एक तांत्रिक के कहने पर एक पिता ने चन्द्रग्रहण के दिन पूजा की और बच्चे को छत से फैंक दिया। ऐसा उसने इसलिए किया कि तांत्रिक ने उससे कहा था कि ऐसा करने से उसकी लम्बे समय से चली आ रही बीमारी ठीक हो जाएगी। दुख तो इस बात का है कि देश में विज्ञान इतना आगे बढ़ चुका है और अंतरिक्ष में सैटेलाइट लगातार भेजे जा रहे हैं। वहीं इंसानों की बलि की घटनाएं भी सामने आ रही हैं।
डा. दाभोलकर, गोविन्द पानसरे और एमएस कलबुर्गी अंधविश्वासों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे लेकिन अफसोस इस बात का है कि इनके खिलाफ लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के मामले दर्ज किए गए थे। ऐसी-ऐसी वेबसाइटें उपलब्ध हैं जहां ज्योतिषि या तांत्रिक से बात करने के लिए पैसे देने पड़ते हैं। तंत्र-मंत्र भी एक इंडस्ट्री का रूप लेता जा रहा है। बेहतर यही होगा कि समाज वैज्ञानिक तरीके से सोचे और अवैज्ञानिक रीतियों से दूर रहे। समाज अपने बच्चों को भी वैज्ञानिक तरीके से सोचना सिखाये ताकि भविष्य में विश्वास अंधविश्वास में न बदल जाए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com