मुशर्रफ को फांसी की सजा और सेना - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

मुशर्रफ को फांसी की सजा और सेना

यह अहम कहावत है कि शीशा वही रहता है, तस्वीर बदलती रहती है। पाकिस्तान में कभी-कभी चलन उलटा भी हो जाता है, कुछ लोगों की तस्वीर वही रहती है परन्तु शीशा बदल दिया जाता है।

यह अहम कहावत है कि शीशा वही रहता है, तस्वीर बदलती रहती है। पाकिस्तान में कभी-कभी चलन उलटा भी हो जाता है, कुछ लोगों की तस्वीर वही रहती है परन्तु शीशा बदल दिया जाता है। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने भी शीशा बदलने की बहुत कोशिश की लेकिन अंततः उन्हें भी सत्ता छोड़नी पड़ी। 76 वर्षीय परवेज मुशर्रफ को नवम्बर 2007 को आपातकाल लगाने के लिए देशद्रोह के आरोप में विशेष अदालत ने फांसी की सजा सुना दी है। पाकिस्तान की पूर्व मुस्लिम लीग सरकार ने उन पर मामला दर्ज कराया था। 
परवेज मुशर्रफ दुबई में रहकर अपना इलाज करवा रहे हैं। इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान में सत्ता सम्भालना शेर की सवारी के समान है। जैसे ही आप शेर की सवारी से उतरेंगे, शेर ही आपको खा जाएगा। जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दे दी गई थी, जिया उल हक यानी जिया जालंधरी के विमान को आमों से भरी टोकरी में बम रखकर उड़ा दिया था। बेनजीर भुट्टो की मौत चुनाव प्रचार के दौरान बम धमाके में हो गई थी। पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनका परिवार आज भी मुकदमे झेल रहा है और किसी न किसी तरह खुद को बचाए रखने का प्रयास कर रहा है। पाकिस्तान में तख्त पलट का अपना इतिहास रहा है, इसलिए मैं इतिहास में नहीं जाना चाहता। 
नवाज शरीफ सरकार में तत्कालीन सेनाध्यक्ष और  कारगिल युद्ध के षड्यंत्रकारी परवेज मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध के षड्यंत्र से तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अंधेरे में रखा। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मैत्री की बस लेकर लाहौर गए थे। सम्पादक के तौर पर मैं भी उनके साथ जाने वाले सम्पादकों के साथ शामिल था। उधर लाहौर घोषणा पत्र जारी हो रहा था और मुशर्रफकारगिल में पाक सैनिकों की घुसपैठ करा रहे थे। आखिरकार मुशर्रफ ने नवाज शरीफ सरकार का तख्त पलट दिया। इतना ही नहीं नवाज शरीफ सरकार और उनके मंत्रियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया और खुद को सैन्य शासक घोषित कर दिया।
 मुशर्रफ ने पहले सीईओ का पद सम्भाल कर देश में लोकतंत्र बहाली का वायदा किया। सेना का चीफ तो बना रहा तथा कार्यपालिका का भी सारा अधिकार अपने पास रख लिया। मुशर्रफ ने पाकिस्तान की न्यायपालिका आैर कार्यपालिका का गला घोंट कर रायशुमारी करवा दी। रायशुमारी एक ढोंग था जिसमें उन्हें जीत मिलनी ही थी। इस रायशुमारी के जरिये मुशर्रफ ने खुद को राष्ट्रपति घोषित करवा लिया। जब रायशुमारी हो रही थी तो वहां के एक वृद्ध पूर्व आला अधिकारी ने मुशर्रफ के बारे में टिप्पणी की थी-
‘‘आपे शैम्पेन, आपे बोतल,
और आपे बोतल दा काग हन।
सरकार समै कुछ आप हन।’’
यानी शैम्पेन की बोतल भी खुद आैर बोतल का ढक्कन ‘काग’ भी खुद और पूरी सरकार भी खुद आप ही है। रायशुमारी में वह 97 फीसदी वोट पा गए। ‘डी फैक्टो’ राष्ट्रपति को उन्होंने ‘डी ज्यूरे’ का रूप दे दिया। फिर उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वियों बेनजीर भुट्टो और नवाज शरीफ पर मुकदमे दायर किए। संविधान भंग तक अपनी प्रतिबद्धता की शपथ जजों की दिलवा दी। संविधान भंग होने से अड़चन न आए, उसके लिए नया लीगल फ्रेम वर्क आर्डर जारी कर दिया।लोकतंत्र बहाली के नाम पर उन्होंने जिला स्तरीय चुनाव करवाए। जिला सरकारें बन गईं। जो नुमाइंदे चुने गए, वह सब अपने ही थे। इसके लिए जिलों की लूट के अधिकार दे दिए गए। खजानों के मुंह खोल दिए और पाकिस्तान की हालत ऐसी हो गई जैसी इन पंक्तियों में निहित है।
‘‘या इलाही रहम कर कैसा ये दरबार है,
मेमनो की फौज है, और भेड़िया सरदार है।’’
अपने समय का मुशर्रफ सफल कूटनीतिज्ञ रहा। जब अमेरिका पर 11 सितम्बर, 2001 को आतंकी हमला हुआ, उसके ट्विन टावर ध्वस्त हो गए तो हाहाकार मच गया। तत्कालीन अमेरिकी  राष्ट्रपति बुश को अफगानिस्तान को कुचलने के लिए सबसे अच्छा साथ मिला पाकिस्तान का राष्ट्रपति मुशर्रफ। आतंकवाद को नेस्तनाबूद करने के लिए एक आतंकी देश का सरदार अमेरिका से मिल गया। इसकी आड़ में मुशर्रफ ने जमकर अमेरिकी डालर सहायता के रूप में हासिल किए आैर उस धन का इस्तेमाल भारत में आतंकी हमलों के लिए किया। कौन नहीं जानता कि हमने मुशर्रफ को ​िदल्ली बुलाया, उसे उसका पैतृक आवास दरियागंज की जैन हवेली दिखाई लेकिन आगरा शिखर सम्मेलन के दौरान उसने भारत के विरुद्ध जमकर जहर उगला। वार्ता टूट गई और मुशर्रफ को रात के अंधेरे में पाकिस्तान लौटना पड़ा। पाप का घड़ा भरा तो मुशर्रफ की सत्ता को लोकतंत्र बहाली आंदोलन ने उखाड़ फैंका।
मुशर्रफ को फांसी की सजा सुनाए जाने पर पाक सेना भड़क उठी है। पाक सेना ने तानाशाह राष्ट्रपति रहे मुशर्रफ के लिए कसीदे पढ़े और कहा है कि पूर्व राष्ट्रपति ने 40 वर्ष तक देश की सेवा की, और सेना की तरफ से कई युद्धों में भाग लिया, ऐसा आदमी गद्दार नहीं हो सकता। पाक सेना का पद भी कहता है कि इस प्रक्रिया में संविधान को नजरअंदाज किया गया है। जिस पाकिस्तान की सेना ने लगातार लोकतंत्र को अपने बूटों तले रौंदा है, वह मुशर्रफ को फांसी देना कैसे बर्दाश्त कर सकती है। पाक सेना प्रमुख बाजवा को लगता होगा कि हो सकता है 
वह भविष्य में प्रधानमंत्री बन जाए तो ऐसा हश्र उनका भी हो सकता है। तानाशाही प्रवृत्ति के लोग तानाशाह का समर्थन ही करेंगे। मुशर्रफ को फांसी होगी या नहीं, यह वहां की उच्च अदालत तय करेगी लेकिन मौजूदा प्रधानमंत्री इमरान खान को भी सबक लेना चाहिए कि आतंकवाद का सहारा लेने वालों का हश्र भुट्टो और मुशर्रफ जैसा ही होता है। पाक सेना को वहां ​िवशुद्ध लोकतंत्र की स्थापना के लिए काम करना चाहिए न कि लोगों को कुचलने के लिए ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

20 + 19 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।