लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

‘मेरा भारत महान’

NULL

भारत केवल प्राचीनकाल में ही महान देश नहीं रहा है बल्कि आधुनिक भारत का इतिहास भी महानतम है और इसकी मुख्य वजह इसकी विशाल समावेशी संस्कृति की वह अद्भुत धारा है जिसमें धार्मिक पहचान मानवीयता के आवरण में लुप्त होकर मनुष्यता को नई परिभाषा देती है। पूरी दुनिया में यह भारत की ही विशिष्टता है कि इसमें रहने वाले लोग विभिन्न संकीर्ण दायरों में बंधे होने के बावजूद अपनी अन्तिम पहचान मात्र मानव रूप में करते हैं। यह चौंकने वाली हकीकत नहीं है कि पाकिस्तान का निर्माण करने वाले मुहम्मद अली जिन्ना जिस मुस्लिम वर्ग ‘खोजा समुदाय’ से आते थे वह सामाजिक व पारिवारिक मामलों में मुस्लिम नियमावली ‘शरीयत’ को न मानते हुए ‘हिन्दू नियमावली’ का पालन करता है। पाकिस्तान में ‘कायदे आजम’ कहे जाने वाले जिन्ना की एकमात्र सन्तान उनकी पुत्री दीना वाडिया का 98 वर्ष की आयु में न्यूयार्क में निधन हो जाने के समाचार से पाकिस्तानी हुक्मरान परेशान हैं कि वे अपने कायदे आजम की पारसी पुत्री के शोक को किस तरह मनायें क्योंकि मजहब के आधार पर तामीर किये गये इस मुल्क के हुक्मरानों के लिए यह हकीकत शुरू से ही कांटे की तरह चुभती रही कि उनके मुल्क को वजूद में लाने वाली हस्ती की विरासत मुसलमान नहीं बल्कि ‘पारसी’ है और उसके धेवते नुस्ली वाडिया हिन्दोस्तान के बाइज्जत शहरी और जाने-माने उद्योगपति हैं।

दरअसल मुहम्मद अली जिन्ना देश के अग्रणी औद्योगिक घराने ‘टाटा समूह’ के करीबी रिश्तेदार भी थे और स्व. जेआरडी टाटा की बड़ी बहन साइला के दामाद थे जिनकी शादी कपड़ा उद्योग के महारथी दिनशा मानेकजी पेटिट के साथ हुई थी। उन्हीं की पुत्री रतनबाई पेटिट (रुट्टी पेटिट) का विवाह जिन्ना के साथ हुआ था और स्वर्गवासी दीना वाडिया उन्हीं की पुत्री थी। जब 42 वर्षीय जिन्ना ने केवल 16 वर्षीय रुट्टी से विवाह किया था तो पिछली शताब्दी के शुरूआती दौर में मुम्बई शहर में काफी कोहराम भी मचा था और पारसी समुदाय में भी काफी हलचल हुई थी मगर रुट्टी पेटिट के दृढ़ निश्चय ने सभी झंझावतों को पार कर लिया। उन्हीं की पुत्री स्व. दीना ने भी वही कमाल किया जो उनकी मां ने किया था और केवल 17 वर्ष की आयु में ही अपने पिता मुहम्मद अली जिन्ना को अपना फैसला सुनाया कि वह पारसी समुदाय के प्रख्यात व्यापारी श्री नेवेली वाडिया से विवाह करना चाहती हैं तो कुछ इतिहासकारों के अनुसार जिन्ना ने इसका कड़ा विरोध किया था और कहा था कि भारत में लाखों मुस्लिम युवकों में से क्या वह अपने योग्य किसी को नहीं समझती हैं? तो पलट कर दीना ने जो जवाब दिया था वह उनकी स्वतन्त्र शख्सियत को और भारत की समावेशी संस्कृति के मूल तत्व को प्रकट करता है। तब दीना ने कहा था कि भारत में लाखों मुस्लिम महिलाओं के होने के बावजूद आपने मेरी मां से ही शादी क्यों की थी? मगर केवल 29 वर्ष की आयु में ही जिन्ना की पत्नी रुट्टी की मृत्यु हो गई थी और उन्होंने अपनी पुत्री के लालन-पालन मंे सभी एशो-आराम की बरसात कर दी थी।

वह अपनी पुत्री के आग्रह को नहीं टाल पाये। जब 1947 में पाकिस्तान बना तो जिन्ना के साथ दीना ने जाना गवारा नहीं किया और वह अपनी बहन फातिमा के साथ कराची चले गये। तब अंतिम बार उन्होंने अपनी पुत्री दीना व उनकी गोद में अपने धेवते नुस्ली से मुलाकात की। यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है कि स्व. दीना वाडिया ने पहली बार पाकिस्तान की यात्रा 2003 में की और अपने साथ वह अपने पुत्र व दोनों पोतों नेस व जेह को भी लेकर गईं तथा स्व. जिन्ना की मजार को देखा। यह भी कोतूहल भरा सवाल है कि जिन्ना की मजार पर स्मरण पुस्तिका में उन्होंने यह क्यों लिखा कि ‘‘पाकिस्तान का उनके पिता का सपना सच हो।’’ जाहिर है कि पाकिस्तान तो 1947 में ही बन गया था। इसके बावजूद उनकी यह टिप्पणी पाकिस्तानी हुक्मरानों को होश में लाने वाले तीखे बयान से कम करके नहीं देखी जा सकती। अक्सर भारत में स्व. दीना वाडिया का जिक्र जिन्ना के मुम्बई में साऊथ कोर्ट स्थित बंगले के मालिकाना हक को लेकर ही होता रहा है, जिसे जिन्ना हाऊस कहा जाता है मगर हकीकत यह भी है कि जिन्ना चाहते थे कि वह पाकिस्तान बन जाने के बावजूद मुम्बई स्थित अपने बंगले में आकर ही रहें और भारत व पाकिस्तान के बीच सम्बन्ध एेसे हों जैसे अमरीका व कनाडा के बीच हैं।

इसलिए आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि पाकिस्तान बनने के बाद इसने भारत में जो अपना पहला उच्चायुक्त नियुक्त किया वह भारतीय मुस्लिम नागरिक ही था मगर इससे जिन्ना का वह पाप कम नहीं हो जाता है जो उन्होंने भारत के दो टुकड़े करके किया था। हांलाकि जिन्ना को बहुत जल्दी अहसास हो गया था कि उनसे एेतिहासिक गलती हो गई है और अखंड भारत की सांस्कृतिक विरासत को वह दो टुकड़ों में किसी भी कीमत पर नहीं बांट सकते हैं। इसी वजह से उन्होंने पाकिस्तान बनने पर राष्ट्रीय गान लिखने के लिए पूरे कराची और लाहौर में अपने कारिन्दे छोड़ दिये थे कि किसी एेसे हिन्दू शायर को ढूंढ कर लाओ जो उनके मुल्क का कौमी तराना लिख सके और तब जाकर उर्दू के प्रख्यात शायर स्व. जगन्नाथ आजाद मिले थे और उन्होंने राष्ट्रीय गान लिखा था। असल में यही भारत की वह समावेशी संस्कृति थी जिसे जिन्ना जैसा व्यक्तित्व भी नहीं नकार सका था। इसीलिए स्व. राजीव गांधी का दिया गया यह उद्घोष हमेशा इस देश का सत्य बना रहेगा कि ‘मेरा भारत महान’ क्योंकि स्वयं जिन्ना की बेटी ने ही इस हकीकत की तसदीक करने में कोई हिचक नहीं दिखाई।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

4 × five =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।