मणिपुर में जातीय हिंसा के लगभग पांच महीने बाद इंटरनेट से बैन हटा लिया गया है। राज्य में 3 मई को हिंसा शुरू होने के बाद से ही इंटरनेट पूरी तरह से बंद था। राज्य में स्थिति में सुधार आने के दावों के बीच राज्य सरकार ने यह कदम उठाया है। राज्य सरकार ने हालांकि 25 जुलाई को ब्रॉडबैंड सर्विस चला दी थी, लेकिन इस पर कुछ शर्तें रखी थीं। उस वक्त मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को बंद ही रखा गया था। इंटरनेट सेवाओं के बंद होने की वजह से ऑफिस , स्कूल, कालेज, हैल्थ सर्विस और ऑनलाइन सेवाओं सहित कई अलग-अलग क्षेत्र प्रभावित हुए थे। इसी बीच मणिपुर हिंसा के तार म्यांमार से जुड़ते नजर आए हैं। राष्ट्रीय जांच एजैंसी एनआईए ने खुलासा किया है कि मणिपुर में हमले आैर जातीय हिंसा भड़काने के पीछे म्यांमार के कुछ प्रतिबंधित आतंकी संगठनों का हाथ है। म्यांमार सरकार के संरक्षण में यह आतंकी संगठन मणिपुर में सुरक्षा बलों और विरोधी जातीय समूहों के सदस्यों पर हमला करने के लिए कैडर की भर्ती कर रहे हैं। सुरक्षा बलों के टर्म में कहें तो भर्ती किए गए कार्यकर्ता ओवर ग्राउंड वर्कर होते हैं जो आतंकवादियों की लॉजिस्टिक स्पोर्ट कैश, शैल्टर जैसी सुविधाएं देने में मदद करते हैं। म्यांमार स्थित आतंकवादी संगठन, गैर कानूनी तरीके से हथियार, गोला बारूद और विस्फोटक इकट्ठा करते हैं। मणिपुर में हथियारों की लूट भी इसी का हिस्सा है। भारत और म्यांमार की जो सीमा है वो कई किलोमीटर तक बिना किसी बाड़बंदी के है। यानि कि कोई भी बिना किसी रोक टोक के जा सकता है। भारत म्यांमार के साथ 1643 किलोमीटर की सीमा सांझा करता है। भारत में मिजोरम, मणिपुर, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश से म्यांमार की सीमा लगती है।
अब कहने को म्यांमार एक अलग देश है, लेकिन वहां पर कई समुदाय के लोग हैं जिनका सीधा कनेक्शन भारत के इन चार राज्यों से पड़ता है। उसी चीज को समझते हुए साल 2018 में फ्री मूवमेंट रिजिम (एफएमआर) लागू कर दी गई थी। इस पहल के तहत भारत के चार राज्यों में रहने वाली कई जनजातियां म्यांमार में 16 किलोमीटर तक अन्दर जा सकती हैं। बड़ी बात ये है कि कोई भी वीजा की जरूरत भी नहीं पड़ने वाली है। इसी तरह म्यांमार से भी लोग भारत में 16 किलोमीटर तक आ जा सकते हैं।
अब फ्री मूवमेंट रिजिम के पीछे लॉजिक ये दिया गया कि इससे दोनों देशों के बीच रिश्ते और ज्यादा मजबूत होंगे, व्यापार बढ़ेगा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी देखने को मिल जाएगा। सही बात ये है कि ऐसा हुआ भी और भारत-म्यांमार के रिश्ते काफी सुधरे। लेकिन विवाद ये है कि म्यांमार से इस समय बड़े स्तर पर इमिग्रेशन हो रहा है। कई लोग शरणार्थी के रूप में भारत में एंट्री ले रहे हैं। अब कई रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया है कि इस इमिग्रेशन के दौरान बड़े स्तर पर हथियारों और ड्रग्स की तस्करी भी की जाती है।
म्यांमार में लगातार सियासी संकट बना हुआ है और वहां सैन्य शासन है। जिसके चलते वहां पर कुकी-चिन समुदाय के लोगों पर अत्याचार बढ़ा है। यही वजह है कि उस समुदाय के लोग भारत आ रहे हैं और मणिपुर से लेकर मिजोरम तक में शरण ले चुके हैं। अकेले मिजोरम में अवैध प्रवासियों की संख्या लगभग 40 हजार बताई जा रही है। चिंता की बात ये भी है कि कई विद्रोही संगठन म्यांमार में सक्रिय चल रहे हैं, जिनके जरिये भारत तक हथियार सप्लाई हो रहे हैं। फिर चाहे बात यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट की हो या बात हो पीपल्स लिबरेशन आर्मी की, यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम हो या बात हो नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड की। इन सभी संगठनों ने अपना सीक्रेट बेस म्यांमार में बना रखा है। एनआईए ने आतंकवादी गिरोह पीपल्स लिबरेशन आर्मी के एम. आनंद सिंह को गिरफ्तार किया है। इसके अलावा भी कई गिरफ्तारियां हुई हैं, जिनसे पता चलता है कि मणिपुर हिंसा की आग में अचानक नहीं जला बल्कि इसके पीछे म्यांमार के आतंकवादी संगठनों का हाथ है। अब सख्ती बरते जाने के बाद आतंकियों को म्यांमार से सीधे आसान रास्ता नहीं मिलता। इसलिए वे बंगलादेश के रास्ते भी मणिपुर और मिजोरम में घुस आते हैं। एनआईए हिंसा की जड़ में मौजूद छिपी सच्चाई को खोद कर बाहर ला रही है। केन्द्र और राज्य सरकार को मणिपुर में शांति बहाली के लिए अवैध घुसपैठ पर भी रोक लगानी होगी अन्यथा मणिपुर में शांति बहाली चुनौती बना रहेगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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