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नाम गायब है भाई

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पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम कल आएंगे। मतदाताओं का जनादेश तय करेगा कि किस राज्य में किस राजनीतिक पार्टी की सरकार बनेगी लेकिन सम्पन्न हुए चुनावों की निष्पक्षता को लेकर लोग सवाल उठा रहे हैं। भारतीय निर्वाचन आयोग की कार्यशैली भी संदेह के घेरे में है। तेलंगाना में जब लोग वोट देने के लिए अपने-अपने मतदान केन्द्र पर पहुंचे तो उन्हें पता चला कि मतदाता सूची से उनका नाम गायब है। मिजाेरम में भी बहुत सारी शिकायतें सामने आईं। सिर्फ आम आदमी ही नहीं कई वीआईपी ने भी शिकायत की कि उनके नाम मतदाता सूची से गायब हैं। अनेक लोग कहते पाए गए कि मेरा तो नाम ही गायब है भाई। राजस्थान, मध्यप्रदेश में भी ऐसी ही शिकायतें मिली हैं। निर्वाचन आयोग चुनाव से कई माह पहले विज्ञापन देना शुरू कर देता है कि लोग मतदाता सूची में अपने नाम दर्ज करवा लें।

मतदाता जागरूक हैं और वे अपना मतदाता पहचान पत्र बनवाते भी हैं लेकिन अंतिम समय पता चलता है कि उनके नाम मतदाता सूची में हैं ही नहीं। तेलंगाना के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने तो स्वीकार किया कि उन्हें पूरे राज्य से ऐसी शिकायतें मिली हैं, उन्होंने वोट न दे पाने वाले मतदाताओं से माफी मांगी है। तेलंगाना में बैडमिंटन स्टार ज्वाला गुट्टा जब वोट डालने मतदान केन्द्र पहुंचीं तो जानकर हैरान हो गईं कि उनका नाम रहस्यमय तरीके से गायब है। इसी तरह एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का नाम वोटर लिस्ट से गायब था। मतगणना से पहले मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान और तेलंगाना में कुछ घटनाओं ने चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल उठा दिए हैं। हैरानी की बात तो यह है कि जो मतदाता पूर्व में कई बार मतदान कर चुके हैं उनके नाम ही सूची से गायब पाए गए हैं।

कहीं ईवीएम मशीन अपने तय समय के बहुत देर बाद निर्धारित स्थान तक पहुंचीं। कहीं एक पार्टी विशेष के प्रत्याशी के यहां ईवीएम मशीन मिलने से हड़कम्प मच गया। छत्तीसगढ़ में तो कथित तौर पर कुछ लोग लैपटाप, मोबाइल लेकर स्ट्रांग रूम में पहुंच गए। मध्यप्रदेश की मतदाता सूचियों में दोहरेपन की शिकायतें तो पहले ही आ रही थीं। राजस्थान में जयपुर रोड पर मिडवे के समीप स्थित हाजी कालोनी के लोगों ने मतदाता सूची में अपना नाम नहीं होने के विरोध में प्रदर्शन किया। ऐसे ही प्रदर्शन जगह-जगह हुए। अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आरोप लगाया है कि मतदाता सूचियों से वैश्य समाज के चार लाख वोट काटे गए हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि नोटबंदी और जीएसटी की वजह से व्यापारियों के धंधे चौपट हो गए हैं। इसलिए बनिए इस बार भाजपा को वोट नहीं देंगे, इसलिए उनके वोट काटे जा रहे हैं।

राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप तो चलते ही रहते हैं ले​किन इनसे इस तरह का वातावरण सृजित हो जाता है कि हर कोई निर्वाचन आयोग की भूमिका को संदेह से देखना शुरू कर देता है। लोकतंत्र में अगर कोई सबसे ज्यादा ताकतवर है तो वह है मतदाता। उसके एक-एक वोट की कीमत है। हैरानी तब होती है जब मतदाता के पास वोटर आईडी है, उसके पास सभी वैकल्पिक दस्तावेज भी हैं तो फिर उसका नाम सूची से कैसे गायब हो जाता है। एक मतदाता यह सोचकर मतदान करने जाता है कि वह लहर न देखकर उम्मीदवार की छवि देखकर फैसला करेगा। नाम नहीं नीयत देखूंगा, प्रत्याशी नहीं प्रतिभा देखूंगा लेकिन जैसे ही वह वोट डालने को आतुर होता है तो उसे पता चलता है कि वह वोट नहीं डाल सकेगा तो निराश होकर घर लौट आता है।

ऐसी रिपोर्ट आ रही है कि तेलंगाना और मिजाेरम में भारी संख्या में लोग मतदाता सूचियों में गड़बड़ी के चलते वोट नहीं दे पाए। इसका अर्थ यह है कि लाखों लोगों को मताधिकार से वंचित कर दिया गया। स्पष्ट है कि निर्वाचन आयोग ने अपना काम ईमानदारी से नहीं किया। मतदाता बहुत जागरूक है, वह जानता है कि निर्वाचन आयोग ने या तो लापरवाही बरती या फिर वह निष्पक्ष नहीं है। जब भी ऐसे संदेह पैदा होते हैं तो चुनाव प्रक्रिया की पवित्रता, निष्पक्षता, शुद्धता और पारदर्शिता पर सवाल उठेंगे ही। अगर मतदाता सूचियां ही पवित्र नहीं हैं तो फिर चुनाव कैसे पवित्र हो सकते हैं। राजधानी दिल्ली में तो एक राजनीतिक दल ने मतदाता सूचियों को परखने के लिए चेकमेट प्लान पर काम भी शुरू कर दिया है। उसने अपने कार्यकर्ताओं को अपने-अपने इलाकों की मतदाता सूची सौंपकर घर-घर जाने का निर्देश दिया है।

अगले वर्ष लोकसभा चुनाव होने हैं इसलिए लोगों को चाहिए कि वह अभी से ही मतदाता सूचियों को परख लें कि कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं। राजनीतिक दलों को भी इस दिशा में काम करना होगा ताकि चुनाव स्वतंत्र आैर निष्पक्ष ढंग से हो सकें। अंतिम जिम्मेदारी तो निर्वाचन आयोग की है। राज्यों के निर्वाचन आयोग को मतदाता सूचियों को त्रुटि रहित बनाना ही होगा। निर्वाचन आयोग को एक-एक बूथ के मतदाताओं का सत्यापन करना होगा ताकि लोकतंत्र पर आंच न आए।

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