रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और सरकार के बीच विवाद की खबरें पिछले कुछ दिनों से मीडिया पर छाई हुई थीं। रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल द्वारा इस्तीफा दिए जाने का मन बना लेने की खबरों को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा था। आरबीआई के अधिकारी और सरकार द्वारा नियुक्त बोर्ड के सदस्यों की बैठक को लेकर काफी शोर मचाया गया। इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ। विपक्ष ने भी तीखे तेवर अपना लिए थे कि सरकार रिजर्व बैंक जैसे प्रतिष्ठान की स्वायत्तता पर हमला कर रही है। इस बात पर भी होहल्ला मचाया गया कि केन्द्र सरकार रिजर्व बैंक के पास पड़ा सरप्लस धन मांग रही है। कुछ नौकरशाहों ने यह चेतावनी भी दे दी थी कि रिजर्व बैंक की स्वायत्तता को कमजोर करना विनाशकारी होगा।
सनसनीखेज हैडलाइनों से ऐसा लगता था कि टकराव काफी गम्भीर मोड़ ले सकता है। देश के विकास के लिए धन की बहुत जरूरत पड़ती है। धन का प्रवाह भी सहज होना चाहिए। अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए एमएसएमई सैक्टर को आसानी से ऋण मिलना चाहिए ताकि रोजगार के अवसरों का सृजन हो सके। एक के बाद एक बैंक घोटाले सामने आने, माल्या, नीरव मोदी और कुछ अन्य के करोड़ों का बैंक कर्ज बिना लौटाए देश से भाग जाने आैर बैंकों का एनपीए लगातार बढ़ने से चिन्तित आरबीआई ने कई सख्त कदम उठाए। बैंकों पर तेजी से शिकंजा इसलिए कसा गया कि एनपीए को कम किया जा सके। भारतीय बैंकों का अनुत्पादक ऋण 9.5 लाख करोड़ के स्तर को पार कर चुका है। सख्त प्रतिबंधों के चलते बैंकों का कामकाज प्रभावित हुआ।
चार वर्ष पहले सरकार ने एनपीए से ग्रस्त 11 राष्ट्रीयकृत बैंकों में तथाकथित सुधार एक्शन प्लान शुरू किया था। इस एक्शन प्लान में जोखिम से भरे कर्ज देने पर प्रतिबंध भी शामिल था। इसका परिणाम यह हुआ कि कड़े नियमों के चलते बैंकों ने ऋण देना कम कर दिया आैर स्थिति यहां तक पहुंच गई कि बैंक लोन ग्रोथ गिरकर शून्य पर जा पहुंची। जब भी धन की तरलता की कमी आती है उसमें सूक्ष्म, लघु और मध्यम इकाइयां प्रभावित होती हैं। एमएसएमई श्रेणी में वर्गीकृत कम्पनियां इस समय दबाव में हैं। सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि वह रिजर्व बैंक से धन नहीं मांग रही बल्कि वह तो चाहती है कि एमएसएमई कम्पनियों को सहजता से ऋण उपलब्ध हो। सरकार का मानना है कि बैंकों की तरफ से आरबीआई को मिले लाभांश का अधिकांश हिस्सा उसे देना चाहिए। आरबीआई अपनी और बैंकों की बैलेंस शीट को मजबूत करने में जुटा हुआ है। उसने सरकार की तरफ से गठित उस अन्तर मंत्रालय समिति की सिफारिशों का विरोध किया, जिसने एक अलग पेमेंट रेगुलेटर को बनाने की सिफारिश की गई थी।
बैंक ने ब्याज दरों में कटौती करने की बजाय उसे बढ़ा दिया जबकि सरकार को उम्मीद थी कि बैंक नरम रुख अपनाएगा लेकिन आरबीआई ने अनुमानों काे धत्ता बताकर उसे बढ़ाने का फैसला किया। सबसे बड़ा मुद्दा यह सामने आया कि आरबीआई कितनी नकदी रिजर्व रख सकता है। आर्थिक आपातकाल की स्थिति में रिजर्व बैंक के पास कितना पैसा सुरक्षित भंडार के तौर पर होना चािहए। रिजर्व बैंक के पास कुल 9.59 लाख करोड़ रुपए हैं जो वित्त वर्ष 2000-2017 में 8.38 लाख करोड़ की तुलना में अधिक है। आरबीआई ने पिछले 5 वर्षों के दौरान करीब 2.5 लाख करोड़ रुपए सरकार को ट्रांसफर किए हैं। यह रकम केन्द्रीय बैंक की कुल आय का लगभग 75 फीसदी हिस्सा थी। विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के लिए आरबीआई और बोर्ड सदस्यों की बैठक में 9 घंटे तक विचार-विमर्श किया गया। बैठक से पहले उर्जित पटेल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात भी की थी। बैठक में कुछ पर सहमति और कुछ पर असहमति के बीच आरबीआई का बोर्ड वित्तीय क्षेत्र की तरलता को कम करने और छोटी कम्पनियों को क्रेडिट बढ़ाने पर सहमत हुआ।
बैंक की रिजर्व पूंजी के मुद्दे की जांच परख के लिए एक उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति के गठन का फैसला लिया गया। न तो उर्जित पटेल ने इस्तीफा दिया और न ही कोई तूफान मचा। यह सही है कि रिजर्व बैंक स्वायत्त संस्था है, लेकिन सरकार जनहित में रिजर्व बैंक को सैक्शन-7 का इस्तेमाल करते हुए निर्देश दे सकती है। टकराव तो देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का भी रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर सर बेनेगल राम राव सेे हुआ था। आरबीआई के चौथे गवर्नर सर बेनेगल राम राव ने नेहरू सरकार से मतभेदों के चलते 1957 में त्यागपत्र दे दिया था। पंडित नेहरू ने सर बेनेगल को लिखे पत्र में कहा था कि आरबीआई का काम सरकार को सलाह देना जरूर है लेकिन इसे सरकार के साथ मिलकर चलना होगा। सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को पूर्ण करने के लिए धन के प्रवाह की आवश्यकता होती है। यह अच्छा ही हुआ कि बैंक और सरकार ने मिल-बैठकर मसलों को हल करने की ओर कदम बढ़ाया है। अर्थव्यवस्था, बैंकिंग तंत्र जैसे विषयों से अब आम आदमी भी अवगत है इसलिए रिजर्व बैंक अपने बैंकों की स्थिति सुधारने के लिए रोडमैप पर काम करे लेकिन उससे देशवासी प्रभावित नहीं होने चाहिएं। उर्जित पटेल ने बीच का मार्ग अपनाकर अच्छा कदम उठाया है, इसलिए एक दीया आरबीआई के नाम तो देशवासियों को जलाना ही चाहिए। आइये एक दीया आरबीआई के नाम जलाएं ताकि वह देश के विकास में अपना योगदान दे सके।