दूर-दूर तक कोई नहीं…मैं किसी टी.वी. चैनल के टीआरपी रेटिंग के स्लोगन को नहीं दोहरा रहा बल्कि यह चिन्तन कर रहा हूं कि क्या 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व के आगे कोई गठबंधन टिक पाएगा? उनके राजनीतिक कद के समकक्ष तो क्या उनके कद के करीब खड़ा कोई व्यक्तित्व नज़र नहीं आता। यद्यपि मोदी से मुकाबला करने के लिए विपक्ष गठबंधन की तैयारी कर रहा है। बैठकों का दौर जारी है। विपक्ष ने बिना चेहरे के चुनावों में उतरने की तैयारी कर ली है क्योंकि उन्हें आभास है कि जैसे ही प्रधानमंत्री पद की दावेदारी जताई जाएगी, कुनबा बिखर जाएगा। गठबंधनों का मायाजाल और त्रासदियां हम पहले ही देख और झेल चुके हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन स्वयं भी गठबंधन है लेकिन उसका नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कर रहे हैं और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अपने रणनीतिक कौशल से भाजपा में जोश और ऊर्जा का प्रसार कर रहे हैं। पंचतंत्र की एक बड़ी प्यारी कथा है। एक बार बहुत जोर से बारिश हुई और बाढ़ आ गई। जैसी कि आजकल कई राज्यों में बाढ़ दिखाई दे रही है। ऐसी बाढ़ जिसमें नदियां, खेत, खलिहान सब जल से भर गए। एक जंगल भी करीब-करीब डूब गया। एक बड़ा सा वटवृक्ष बच गया बाकी सब डूब गए। जंगल का एकमात्र अवलम्बन वह वृक्ष ही रह गया। घबराकर सारे पशु वहीं इकट्ठे हो गए। एक शेर, एक चीता, बकरी, जंगली सूअर, कुत्ता, भेड़िया, खरगोश, सांप, मेंढक और बिच्छू सब आ गए। सभी पेड़ पर चढ़ गए।
एक ही डाल पर सर्प और मेंढक बैठे थे लेकिन मेंढक को डर नहीं था कि सांप उस पर हमला करेगा। सभी का व्यवहार बड़ा अस्वाभाविक था। शेर जंगल का राजा नहीं था, चीता खामोश था। दो दिन बाद प्रकृति ने थोड़ी कृपा की। हल्की धूप निकल आई। पानी का स्तर कम हुआ। संकट की घड़ी समाप्त हुई तो मेंढक ने सबसे पहले छलांग लगाई। सांप उसके पीछे-पीछे भागा। चीते ने बकरी पर पंजा चला दिया, बिल्ली इतनी तेजी से भागी कि कुत्ता देखता ही रह गया। जब भी संकट आता है तब सब एक पेड़ पर इकट्ठे होते हैं। हम ऐसा पहले ही देख चुके हैं। इसी तरह विपक्षी दल भी नरेन्द्र मोदी की बाढ़ के सामने एकजुट हो रहे हैं लेकिन वटवृक्ष है कौन-राहुल गांधी तो कम से कम अभी वटवृक्ष नहीं हैं तो फिर मायावती या ममता? यह तय करना विपक्ष का काम है लेकिन कोई करिश्माई नेता नज़र नहीं आ रहा जो नरेन्द्र मोदी की छवि को निष्प्रभावी बना सके। विपक्षी गठबंधन को अहसास तो हो गया होगा। ‘अपनी तस्वीर बनाओगे तो होगा अहसास कितना दुश्वार है खुद को चेहरा देना।’
विपक्ष के ‘प्रेमराग’ का एक ही अर्थ है, किसी न किसी तरह सत्ता हथियाओ। सबकी अपनी-अपनी क्षेत्रीय प्राथमिकताएं हैं, अपनी-अपनी मान्यताएं, हर आदमी के दस-बीस मुुखौटे हैं। हर्ष आैर शोक का कुछ पता नहीं चलता। कर्नाटक में जनता दल (एस) नेता कुमारस्वामी के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के समारोह में एक मंच पर दिखी विपक्ष के नेताओं की एकजुटता कितनी वास्तविक आैर नाटकीय थी, इसका निर्धारण तो देश की जनता करेगी। गठबंधन की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि नैतिकता का इनसे कुछ भी लेना-देना नहीं होता। आप जीतकर आ जाएं, मैजिक नम्बर तक पहुंचने में आपकी भूमिका हो सकती है तो समझ लीजिए आपकी बहुत कीमत है। हजारों में, करोड़ों में। चुनावी वर्ष में गठबंधन की कवायद जारी रहेगी। दक्षिण भारत के दो नेता चंद्रशेखर राव आैर चंद्रबाबू नायडू तीसरे मोर्चे की बात करते रहे हैं, उनके रुख को देखना होगा। कर्नाटक विधानसभा और देश के अन्य हिस्सों में आए उपचुनावों के परिणामों से विपक्षी एकता की कवायद शुरू हुई थी। देखना होगा कि बिना चेहरे के गठबंधन का स्वरूप क्या होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कोई राजनीतिक विरासत वाले परिवार में पैदा नहीं हुए, वह अपने कर्मों से महान बने हैं। कौन जानता था कि संकरी गली में अपना बचपन गुजारने, चाय बेचने वाला बालक उस बुलंदी तक पहुंच जाएगा जहां पूरी दुनिया उसे टकटकी लगाकर निहारेगी।
देश में ही नहीं विदेशों में भी उन्हें प्रवासी भारतीयों ने सिर-आंखों पर बैठाया है। विपक्षी दल जितनी भी आग उगल लें लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने त्याग और कर्मठता के दम पर बुलंदियां छू रहे हैं। आजादी के बाद देश को एक एेसा प्रधानमंत्री मिला है जिसने ईमानदारी से काम कर देश को नए विजन दिए हैं। नोटबंदी, जीएसटी लागू करने, उज्ज्वला योजना, जनधन खाते, डिजिटल इंडिया, बेनामी संपत्ति आैर बेनामी लेनदेन पर शिकंजा कसने के लिए कानून में संशोधन करना सरकार की अनेक ऐसी परियोजनाएं हैं, जिनका लाभ देशवासियों को मिला है। लोगों ने प्रधानमंत्री के कठोर फैसलों को भी स्वीकार किया और एक के बाद एक राज्यों में भाजपा की सरकारें बनती गईं। प्रधानमंत्री ने अपने कूटनीतिक कौशल से न केवल अमरीका जैसे शक्तिशाली देश से संबंध प्रगाढ़ बनाए बल्कि चीन जैसे देश से आंख झुकाकर नहीं आंख मिलाकर बात की। चीन की भारत को घेरने की रणनीति का मुंहतोड़ जवाब भी दिया। पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक करने का फैसला कर अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय दिया वहीं कश्मीर में आतंकवाद से निपटने के लिए सुरक्षाबलों को फ्रीहैंड दिया। अभी हाल ही में न्यूयाॅर्क टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया कि भारत ने कश्मीर में आतंकवाद की कमर तोड़ दी है। ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री के समक्ष कोई चुनौती नहीं है।
इतने बड़े विशाल देश में चुनौतियों पर पार पाना सहज नहीं होता। देश में आर्थिक और सामाजिक विषमताओं पर पार पाना सरल नहीं है। एक तरफ देश में बुनियादी ढांचा खड़ा करने की चुनौती है तो दूसरी तरफ सामाजिक विडंबनाएं हैं। इन सब चुनौतियों के बीच मोदी सरकार की नीतियों से देश में काफी बदलाव आया है। राजमार्गों का निर्माण, रक्षा मामलों में आत्मनिर्भर बनने की परियोजनाएं रंग ला रही हैं। देश के लिए दिन-रात काम करने वाले नरेन्द्र मोदी की गणना विश्व के बड़े नेताओं में होने लगी है। इससे भारत का गौरव बढ़ा है। ऐसे व्यक्तित्व का मुकाबला 2019 के चुनावाें में कौन करेगा?