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तमिलनाडु में राष्ट्रीय दल?

दक्षिण भारत के प्रमुख राज्य तमिलनाडु में अगली 6 अप्रैल को होने वाले चुनावों की जमीन सज चुकी है और स्पष्ट हो चुका है कि असली मुकाबला दो द्रविड़ पार्टियों द्रमुक व अन्नाद्रमुक के गठबन्धनों के बीच ही होगा जबकि फिल्म अभिनेता कमल हासन की पार्टी ‘मक्कल नीधी मैयम’ कहीं-कहीं इस मुकाबले को त्रिकोणीय भी बनायेगी। वैसे यह भी निश्चित माना जा रहा है कि श्री कमल हासन की पार्टी ज्यादा नुकसान द्रमुक को ही पहुंचायेगी जिसका गठबन्धन कांग्रेस पार्टी के साथ हुआ है। इसकी वजह साफ है कि श्री कमल हासन की विचारधारा वाम झुकाव वाली है जो कि द्रमुक की विचारधारा से मेल खाती है, अतः श्री हासन की मक्कल नीधी द्रमुक के वोट काटने का काम ज्यादा करेगी। मगर इस पार्टी की हालत ‘वोटकटवा’ पार्टी की भी नहीं होगी क्योंकि श्री हासन का राज्य के कुछ आंचलिक इलाकों में अच्छा प्रभाव माना जाता है। जहां तक अन्ना द्रमुक का सवाल है तो इसने भाजपा से गठबन्धन किया है और इसे 234 सदस्यीय विधानसभा में 20 सीटें लड़ने के लिए मिली हैं। जबकि द्रमुक ने भी कांग्रेस को 25 सीटें ही अपने प्रत्याशी खड़े करने के लिए दी हैं। वैसे तो 1967 के बाद से राज्य की राजनीति में असली मुकाबला द्रमुक व अन्नाद्रमुक के बीच ही होता रहा है मगर कांग्रेस पार्टी इसके बावजूद अपने बूते पर खड़े रहने की हिम्मत जुटाती रही और लोकसभा चुनावों में अच्छी सफलता भी प्राप्त करती रही परन्तु राज्य में इसके कद्दावर नेता श्री जी. के. मूपनार की मृत्यु के बाद इसके हौंसले पस्त होते गये और यह हाशिये पर खिसकती चली गई।

श्री मूपनार ने 1996 के लोकसभा चुनावों से पहले अपनी तमिल मन्नीला कांग्रेस बना ली थी और इस पार्टी में तब श्री पी. चिदम्बरम भी शामिल हो गये थे। इन चुनावों में इसके 18 सांसद बने थे। इसके बाद श्री चिदम्बरम तमिल राजीव कांग्रेस बना कर इसके रास्ते पुनः मूल कांग्रेस पार्टी में आ गये मगर कांग्रेस को वह ताब-ओ-तेवर नहीं दे सके जो श्री मूपनार के जमाने में थे। जहां तक भाजपा का सवाल है तो यह पार्टी कोयम्बटूर और कन्याकुमारी जैसे क्षेत्रों तक महदूद रही है परन्तु 2014 के बाद से यह क्षेत्रीय स्तर पर अपने पंख फैलाने के प्रयासों में लगी हुई है। पिछला कन्याकुमारी लोकसभा सीट का चुनाव इस पार्टी ने बहुत कम वोटों से हारा था। 

इस सीट के सांसद श्री वसन्त कुमार का पिछले वर्ष निधन हो गया था जिसकी वजह से यहां भी 6 अप्रैल को उपचुनाव हो रहा है। अन्नाद्रमुक ने भी यह सीट भाजपा के खाते में डाल दी है। अतः सुदूर दक्षिण में यहां मुकाबला दो राष्ट्रीय पार्टियों कांग्रेस व भाजपा में होगा। इस उपचुनाव का परिणाम भी  राजनैतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण माना जायेगा परन्तु असली सवाल तमिलनाडु विधानसभा चुनाव परिणामों का ही रहेगा जिससे यह पता चलेगा कि केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा की दक्षिण में किस हद तक स्वीकार्यता बढ़ी है, हालांकि यह पार्टी केवल 20 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही है मगर जिस अंदाज से इस पार्टी का चुनाव प्रचार शुरू हुआ है उससे यह उम्मीद जरूर बंधती है कि पार्टी को अपना सिर ऊंचा रखने लायक सफलता मिलेगी। यही हाल कमोबेश कांग्रेस का भी है जो 25 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पार्टी को पिछले विधानसभा चुनावों में मात्र आठ सीटें ही मिली थी जबकि इसने द्रमुक के साथ गठबन्धन में ही 41 प्रत्याशी उतारे थे। कांग्रेस का यह प्रदर्शन बहुत निराशाजनक माना गया था क्योंकि उसकी सहयोगी पार्टी द्रमुक ने 178 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 89 सीटें जीती थीं। 

कांग्रेस के खराब प्रदर्शन की वजह से ही द्रमुक गठबन्धन बहुमत पाने में अटक गया था। इसी वजह से इस बार द्रमुक ने उसे 25 सीटों से ज्यादा देने से साफ इन्कार कर दिया। जबकि भाजपा के साथ ऐसा कोई इतिहास नहीं है, वह पूरी तरह अन्नाद्रमुक के सहारे चुनाव में उतर रही है। यह ध्यान देने वाली बात है कि पिछला विधानसभा चुनाव अन्नाद्रमुक ने अपनी करिशमाई नेता स्व. जयललिता के नेतृत्व में लड़ा था तब भी उसे बामुश्किल बहुत किनारे पर बहुमत हासिल हुआ था। इस बार भाजपा से सहयोग करके इसने प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता से इस कमी की भरपाई करने की कोशिश की है। इसमें कितनी सफलता मिल पाती है यह देखने वाली बात होगी क्योंकि अन्नाद्रमुक की सरकार पिछले दस वर्ष से सत्ता में है और इसके प्रति सत्ता विरोधी भावना भी काम कर रही है। 

द्रमुक की तरफ से स्व. एम. करुणानिधी के पुत्र एम.के. स्टालिन मुख्यमन्त्री का चेहरा बन कर मैदान में हैं जबकि अन्नाद्रमुक की तरफ से वर्तमान मुख्यमन्त्री एड्डापड्डी पी. स्वामी हैं। 1967 के बाद से ही फिल्म अभिनेताओं के करिश्में (स्व. एमजी रामचन्द्रन व जय ललिता) के आगोश में फली-फुली तमिलनाडु की राजनीति अब क्या रंग दिखाती है, यह देखना भी कम दिलचस्प नहीं होगा क्योंकि एक और फिल्म अभिनेता रजनीकान्त ने अन्ततः राजनीति में न आने का फैसला करके साफ कर दिया था कि तमिलनाडु अब बदल रहा है। अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि तमिलनाडु में परोक्ष युद्ध भाजपा व कांग्रेस के बीच ही अलग- अलग द्रविड़ बैसाखियों पर हो रहा है।