म्यांमार में हाे रहे नरसंहार से रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति दयनीय के साथ-साथ जटिल होती जा रही है। अपने देश वे जा नहीं सकते, क्योंकि वहां वे सुरक्षित रह नहीं सकते और जो उन्हें आने दे रहा है, उसकी क्षमता सीमित है। रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए ‘न जमीं अपनी न आसमां’ वाली िस्थति है। भारत भगवान बुद्ध के जन्म स्थान के रूप में दुनिया को बार-बार शांति का संदेश देता आया है। जो लोग भारत पर मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगा रहे हैं वे नहीं जानते कि भारत ने हमेशा शरणार्थियों की मदद ही की है। जब पाकिस्तान के हुक्मरानों ने बंगलादेश (जो 1971 से पहले पाकिस्तान का हिस्सा था) में लोगों पर जुल्म ढहाए तो हजारों बंगलादेशी शरणार्थी के रूप में भारत आए थे तब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने शरणार्थियों की मदद की थी। जब श्रीलंका में तमिल समस्या शुरू हुई तो वहां के तमिलों ने दक्षिण भारतीय राज्यों में शरण ली, तब भी भारत ने उनकी मदद की लेकिन रोहिंग्या शरणार्थियों का मुद्दा काफी पेचीदा है। भारत में इस समय रोहिंग्या मुसलमानों काे लेकर काफी गर्मागर्मी है।
रोहिंग्या मुसलमानों को देश में पनाह नहीं देने के सरकार के फैसले के खिलाफ बहुत सी हस्तियों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिट्ठी लिखकर आग्रह किया है कि सरकार को इन्हें वापिस नहीं भेजना चाहिए। हमारे देश की संस्कृति तथा स्वभाव में तथा यहां के आम लोगों की रग-रग में वसुधैव कुटुम्बकम की शिक्षा बसी हुई है। हमारे देश में लोग पूजा-पाठ, आरती, अरदास एवं नमाज के बाद मानव जाति के कल्याण, विश्व में शांति, सद्भावना तथा जनकल्याण की दुआएं मांगते हैं। सहयोग, समर्पण, सहायता एवं संस्कार हमारे मूल में बसा है लेकिन दूसरी ओर राष्ट्र की सुरक्षा का सवाल भी कम महत्वपूर्ण नहीं। हर देश के लिए सुरक्षा का मुद्दा सर्वोपरि होता है, कसी भी देश को शरणार्थियों का आवास स्थल नहीं बनाया जा सकता। इसके बावजूद देश के वरिष्ठ वकीलों का एक बड़ा वर्ग मानवता की रक्षा की खातिर इन्हें शरण देने की वकालत कर रहा है। केन्द्र सरकार सर्वोच्च अदालत में मत व्यक्त कर चुकी है कि रोहिंग्या को शरण नहीं दी जाएगी। कुछ का मत है कि भारत म्यांमार के करवाइन प्रांत के साथ अपनी सीमा सांझी नहीं करता है तो फिर हमें रोहिग्या को शरण क्यों देनी चाहिए। केन्द्र सरकार ने तो रोहिंग्या मुस्लिमों को अवैध अप्रवासी बताते हुए देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताया था। सरकार ने कहा था कि म्यांमार के रोहिंग्या लोगों को देश में रहने की अनुमति देने से भारतीय नागरिकों के हितों पर प्रभाव पड़ेगा और तनाव पैदा होगा।
सरकार ने आशंका भी जताई थी कि कट्टरपंथी रोहिंग्या भारत में बौद्धों के खिलाफ भी हिंसा फैला सकते हैं। खुफिया एजैंसियों का हवाला देते हुए सरकार ने कहा है कि इनका संबंध पाकिस्तान और अन्य देशों में सक्रिय आतंकवादी संगठनों से है। अब नगालैंड पुलिस की खुफिया इकाई ने चार दिन पहले रोहिंग्या मुसलमानों द्वारा स्थानीय लोगों पर हमले की आशंका जताई है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दीमापुर का इमाम रोहिंग्या विद्रोहियों के सम्पर्क में है। ये उग्रवादी बंगलादेश से भारी मात्रा में हथियार, गोलाबारूद हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि करीब दो हजार रोहिंग्या मुसलमानों को बाहर किए जाने की कोशिश करने पर नगा लोगों के खिलाफ हथियार उठाने के लिए भी तैयार हैं। इमाम हेब्रोन और केहोई कैम्प की योजना बना रहा है ताकि नगालैंड पर कब्जा किया जा सके। आईएस से जुड़े 20 आतंकवादी नगालैंड में उग्रवादियों को ट्रेनिंग देने के लिए घुसपैठ कर चुके हैं। रोहिंग्या शरणार्थी कैम्पों में राहत बांटने के िलए कई मुस्लिम देश भी मदद कर रहे हैं। जिस समुदाय पर आतंकवाद का लेबल चिपका हुआ है उसे भारत में शरण कैसे दी जा सकती है। भारत बंगलादेशी घुसपैठ के कारण काफी खतरनाक परिणाम भुगत चुका है। असम के कई जिलों में जनसंख्या का स्वरूप बदल चुका है। मूल निवासी अल्पसंख्यक हो गए हैं और अवैध घुसपैठिये बहुसंख्यक हो गए हैं। असम के मूल निवासियों की जमीन छिन चुकी है। असम बार-बार जला, जिसे पूरे राष्ट्र ने देखा।
इसके बावजूद दिल्ली में लोग रोहिंग्या को शरण देने के पक्ष में प्रदर्शन कर रहे हैं। इस प्रदर्शन में बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिया है कि अगली सुनवाई तक रोहिंग्या को वापस नहीं भेजा जाए। मानवीय मूल्य हमारे संविधान का आधार है, देश की सुरक्षा और आर्थिक हितों की रक्षा जरूरी है लेकिन पीड़ित महिलाओं और बच्चों की अनदेखी नहीं की जा सकती। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि मानवाधिकार और केन्द्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है। सरकार को भी संवेदनशील होने की जरूरत है। समस्या बड़ी है, अगर भारत रोहिंग्या को बाहर करता है तो भारत अंतर्राष्ट्रीय हैडलाइन बनेगा। अगर अनुमति देता है तो यह खतरनाक होगा। रोहिंग्या मुसलमान 2012 से भारत आ रहे हैं, पहले तो इस समस्या के बारे में सोचा ही नहीं गया, अगर समय रहते पग उठाए जाते तो ये हालात पैदा ही नहीं होते। तय करना होगा कि फैसला कार्यपालिका का हो या न्यायपालिका का? राष्ट्र सुरक्षा और मानवाधिकार में संतुलन कैसे बने।