राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद न तो किसी राजनितिक पार्टी का मुद्दा हो सकते हैं और न ही इन पर किसी प्रकार का समझौता किया जा सकता है क्योकि राष्ट्र किसी पार्टी की बपौती नहीं होता। राष्ट्र का निर्माण यदि कोई करता है तो उसके लोग करते हैं और अपनी मेहनत व लगन से उसे विकास की दिशा में ले जाते हैं। बेशक राजनीतिक दलों की अलग–अलग नीतियां इस बाबत होती हैं और उनमें प्रतियोगिता भी इसी मुद्दे पर होती है कि किसकी नीतियां लागू होने से देश का विकास ज्यादा तीव्र गति से होगा। लोकतंत्र में चुनाव एक सतत् प्रक्रिया होती है जिसके माध्यम से आम जनता अलग–अलग राजनीतिक दलों को राष्ट्र का विकास करने का अवसर सुलभ कराती है परन्तु राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर भारत के विभिन्न राजनितिक दलों के बीच किसी प्रकार के मतभेद नहीं हो सकते क्योंकि इसके सुरक्षित रहने की शर्त पर ही राजनीतिक दलों का भविष्य टिका रहता है।
ठीक यही स्थिति आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई के मामले में भी है परन्तु दुखद यह है कि आतंकवाद जैसे मुद्दे पर भारत में राजनीतिक गर्मागर्मी रही है और इसे किसी विशेष धर्म के नाम से जोड़ने पर राजनीतिज्ञ जमकर कलाबाजी करते दिखाई पड़ते हैं। मुस्लिम आतंकवाद और हिन्दू आतंकवाद इसी जहरीली जहनियत की उपज कहे जा सकते हैं जबकि भारत की हकीकत यह है कि इसकी धरती पर एेसी विषैली मानसिकता के पनपने के लिए कोई जगह शुरू से ही नहीं रही है। जिस देश में पाकिस्तान से ज्यादा मुस्लिम आबादी पूरी स्वतन्त्रता और लोकतान्त्रिक अधिकारों के साथ सम्मान के साथ रहती हो वहां किसी दूसरे धर्म के प्रति कलुिषता का भाव जगने की संभावना कैसे हो सकती है, इसके बावजूद ऐसे तत्व भारत में सक्रिय रहे हैं जो आतंकवाद को मजहब से जोड़कर इसके विकास और प्रगति को रोक देना चाहते हैं।
यह ईश्वर की अदालत में हलफ उठाकर कहा जा सकता है कि देश के प्रमुख राजनीतिक दलों कांग्रेस, भाजपा व कम्युनिस्ट समेत अन्य किसी भी क्षेत्रीय दल में एक भी एेसा राजनीतिज्ञ नहीं है जो किसी भी तरह से आतंकवाद का प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन करता हो। बेशक कुछ हाशिये पर पड़े हुए लोग कभी–कभी एेसी बेतुकी बयानबाजी कर देते हैं जिससे आतंक की पैरोकारी की बू आती हो मगर इस देश के आम आदमी में खुदा ने इस कदर लियाकत बरती है कि वह चुनावी मौसम में फिजाओं में बहने वाली हवा को इत्मीनान से सूंघता है और फिर अपनी मनपसन्द राजनीतिक फसल उगाता है लेकिन अफसोस हमेशा राजनीतिक दल ही गफलत कर जाते हैं और अपने बुने जाल में खुद ही उलझ जाते हैं। कांग्रेस नेता श्री अहमद पटेल एेसे राजनीतिज्ञ हैं जिनकी राष्ट्र भक्ति पर उनके विरोधी भी प्रश्न चिन्ह नहीं लगा सकते हैं।
प्रख्यात रामकथा वाचक मोरारी बापू के प्रति श्रद्धा रखने वाले अहमद पटेल के लिए मजहब का अर्थ केवल निजी आस्था का मुद्दा रहा है। उनके प्रशंसक लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों में हैं और गुजरात के आदिवासी बहुल इलाकों में उनके द्वारा किया समाज सेवा का कार्य कभी भी विवाद में नहीं रहा। अतः अंकलेश्वर के सरदार वल्लभ भाई पटेल धर्मार्थ अस्पताल से उनका 2014 तक जुड़े रहना किसी आश्चर्य का विषय नहीं होना चाहिए। इस अस्पताल में 2016 में तकनीकी विभाग में कार्यरत व्यक्ति को यदि गुजरात विशेष पुलिस ने आईएसआईएस का आतंकी होने के शक में गिरफ्तार किया है तो उसकी जिम्मेदारी उन पर डालना किसी भी प्रकार तर्कपूर्ण नहीं कहा जा सकता और न इस पर राजनीति करने की इजाजत दी जा सकती है। गुजरात में हालांकि चुनाव होने हैं और भाजपा व कांग्रेस प्रमुख प्रतिद्वन्दी पार्टियां हैं मगर इसका चुनावों से क्या लेना–देना हो सकता है? जिन आतंकियों को गुजरात पुलिस ने गिरफ्तार किया है उन्हें कानून के समक्ष पेश करके राष्ट्र की सुरक्षा की पुख्ता गारंटी की जानी चाहिए।
हमें राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में दलगत आधार से ऊपर उठकर सोचना ही होगा क्योकि जब मध्य प्रदेश में भाजपा से जुड़े कुछ कार्यकर्ता आईएसआईएस से समबन्ध रखने के आरोप में गिरफ्तार किए गए थे तो राज्य कांग्रेस पार्टी के लोगों ने राज्य के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान के इस्तीफे तक की मांग कर डाली थी। यह पूरी तरह अनुचित था। किसी राजनीतिक दल में नीचे से लेकर ऊपर तक के कार्यकर्ताओं को चरित्र प्रमाणपत्र कोई मुख्यमन्त्री किस प्रकार बांट सकता है? उनके आचरण के बारे में केवल पुलिस ही किसी प्रकार की सनद दे सकती है। इसी प्रकार किसी धर्मार्थ अस्पताल में तकनीशियन के पद पर नियुक्ति की गारंटी कोई भी राजनीतिक व्यक्ति उस अस्पताल के संरक्षकों की सूची से बाहर होने पर किस प्रकार ले सकता है। सवाल भाजपा या कांग्रेस का बिल्कुल नहीं है बल्कि राजनीति के स्तर का है। दुखद यह है कि स्वयं राजनीतिक बिरादरी ने ही अपनी प्रतिष्ठा गिराने में सबसे बड़ा योगदान किया है। हमारे लोकतन्त्र के लिए यह बहुत गंभीर मुद्दा है क्योंकि राजनीतिज्ञों की छवि भी लोकतन्त्र की सफलता की गारंटी की एक शर्त होती है।