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प्रकृति दे रही है चेतावनी

कोरोना वायरस का कहर पूरी दुनिया में फैल रहा है। भारत में भी संक्रमित मरीजों का आंकड़ा बढ़ रहा है। सरकार हो या आम आदमी सभी के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई हैं। चीन से फैले वायरस का खात्मा कब होगा इसकी कोई निश्चित समय सीमा भी नहीं है।

कोरोना वायरस का कहर पूरी दुनिया में फैल रहा है। भारत में भी संक्रमित मरीजों का आंकड़ा बढ़ रहा है। सरकार हो या आम आदमी सभी के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई हैं। चीन से फैले वायरस का खात्मा कब होगा इसकी कोई निश्चित समय सीमा भी नहीं है। मेडिकल जगत का अपना आकलन है, ज्योतिष शा​स्त्रियों की राय अपनी है। कोई मई माह में इसके खत्म होने की भविष्यवाणी कर रहा है, कोई कह रहा है कि जून में महामारी का प्रकोप कम होगा तो टैरो कार्ड रीडर इस महामारी के सितम्बर में खात्मे की भविष्यवाणी कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण प्रमुख इंगर एंडरसन ने कुछ दिन पहले कहा था कि प्रकृति हमें कोरोना वायरस महामारी और जलवायु संकट के जरिये एक संदेश भेज रही है। एंडरसन ने कहा है कि ‘‘एक के बाद एक हानिकारक चीजें करके हम लोग प्रकृति पर बहुत सारे दबाव डाल रहे थे। हमें पहले ही कई बार चेतावनी मिल चुकी है कि अगर हम पृथ्वी और प्रकृति की देखभाल करने में असफल रहे तो इसका अर्थ यही है कि हम अपनी देखभाल नहीं कर पाए।’’
कई वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना वायरस एक स्पष्ट चेतावनी है जो यह बताती है कि वन्य जीवों में घातक बीमारियां हैं और मनुष्य आग से खेलने का काम कर रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अपनी आदतों की वजह से ही मानव जाति हमेशा इस तरह की बीमारियों का शिकार होती आई है। वैज्ञानिकों की बातों का निष्कर्ष यही है कि प्रकृति हमसे बदला ले रही है। कोरोना महामारी को ऐसी बीमारी के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो लाखों लोगों की जान लेकर सभ्यताएं उजाड़ने की क्षमता रखती है। ज्यादातर महामारियां जैनेटिक होती हैं। जैनेटिक बीमारी वो होती है जो जानवरों से इंसानों में संचालित होती है और इसकी सबसे बड़ी वजह है इंसानों और जानवरों की विभिन्न प्रजातियों के बीच बढ़ता सम्पर्क। एेसे रोगों के फैलने का सबसे बड़ा कारण है वन्य जीव व्यापार जिसमें मनुष्यों और जानवरों की विभिन्न जीवित और मृत प्रजातियों के बीच घनिष्ठ सम्पर्क बना रहता है। एक बार रोग फैलाने वाला वायरस या बैक्टीरिया पहले व्यक्ति को संक्रमित कर दे तो इसका एक से दूसरे इंसान में संचरण आसान हो जाता है। अनंकाल से इंसान जानवरों को मार-मार कर अपनी जरूरतें पूरी करता रहा है जिसके कारण कई प्रजातियां लुप्त भी हो चुकी हैं। सैकड़ों सालों से मानव अपने विकास के ​लिए जंगल काटता जा रहा है।
हजारों वर्षों से लोग सत्ता के लालच में, कुर्सी के लालच में, धर्म के नाम पर, एक देश दूसरे देश पर अपना वर्चस्व बढ़ाने के ​लिए न जाने कितने ही लोगों को मौत के घाट उतारते आ रहे हैं। लोगों को मारने का क्रम आज भी जारी है। इंसान न केवल जानवरों का दुश्मन बन बैठा है बल्कि इंसान ही इंसान का दुश्मन बना हुआ है। इंसान की सोच का नैतिक पतन हो चुका है। इंसान सोच नहीं रहा कि एक जानवर भी अपने झुंड के साथ मिल-जुल कर रहता है, आपस में कोई शत्रुता नहीं रहती। अपने समान प्रजाति के दिखने वाले जानवर एक साथ रहते हैं लेकिन इंसान एक ऐसा जीव है जो अपने समान दिखने वाले लोगों का ही खून बहा रहा है। आज प्रकृति इंसान पर हंस रही है। वैदिक धर्म और संस्कृति में चिकित्सा, शिक्षा, अर्थशास्त्र, राजनीति समेत अन्य सभी शास्त्रों का मूल है। विकास की अंधाधुंध दौड़ में पाश्चात्य का अंधानुकरण करने से अशुभ और अमंगल हुआ। वैदिक धर्म और संस्कृति ने जो मार्ग दिखाया है, उसी में पूरे विश्व का कल्याण है फिर भी विश्व में वैदिक धर्म अपेक्षित है। आक्सफोर्ड और मिनसोटा विश्वविद्यालयों के संयुक्त अध्ययन से पता चलता है कि शाकाहारी भोजन के मुकाबले मांसाहारी भोजन पर्यावरण के लिए 35 गुणा अधिक घातक है। दुनिया में 14 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लिए मवेशी जिम्मेदार हैं। खान-पान में रैड मीट के इस्तेमाल के कारण भूमि और प्रकृति बदलने की भी सम्भावनाएं जताई गई हैं।
अब जबकि संक्रमण इंसान से इंसान को छू लेने से फैलने लगा है, भविष्य की दुनिया कैसी होगी इसका अनुमान लगाया जाने लगा है। भविष्य में इंसान इंसान को छू लेने से भी डरेगा। ऐसा खौफ लम्बे समय तक रहेगा। इंसानों ने जानवरों का जो भक्षण किया उसी से वायरस इंसानों तक जा पहुंचा। यह महामारी समूचे विश्व को शाकाहारी भोजन का संदेश देती है। प्रकृति ईश्वर की देन है, मानव ने ईश्वर की देन के साथ बहुत खिलवाड़ किया। गंगा-यमुना आदि पवित्र नदियों को गंदे नाले में परिवर्तित कर दिया गया। आज लॉकडाउन के दौरान गंगा-यमुना का पानी भी स्वच्छ नजर आ रहा है। प्रकृति बता रही है कि मैं ही प्रत्यक्ष हूं और मैं ही प्रमाण हूं लेकिन इंसान ने निर्दोष जानवरों, पक्षियों और जलीय जीवों का रहने का अधिकार छीन लिया। अगर अब भी इंसान ने प्रकृति की चेतावनी को नहीं समझा तो बहुत अनर्थ होगा। इंसान को समझना होगा ​कि जीवन जीने की सनातन शैली ही सर्वोत्तम है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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