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नक्सलियों के मुंह पर करारा तमाचा

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सब जानते हैं कि इस देश में लोकतंत्र की रक्षा करने के लिए सरकार को कितनी मशक्कत करनी पड़ रही है। लोकतंत्र की राह में कभी आतंकवादी तो कभी नक्सलवादी रुकावटें खड़ी करते रहते हैं। जम्मू-कश्मीर में पिछले दिनों पंचायत चुनावों में तमाम बड़ी पार्टियों जिसमें नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी शामिल रहीं, ने बायकाट की राह पर चलकर लोकतंत्र से खुद को दूर रखा और आज भी अंतर्राष्ट्रीय मामलों खासतौर से पाकिस्तान से संबंधित कोई बात होती है तो दोनों ही पार्टियों के बड़े नेता उसका गुणगान करने से बाज नहीं आते। इसी कड़ी में हम पांच राज्यों में चल रहे विधानसभाई चुनावों के मामले में छत्तीसगढ़ का उल्लेख करना चाहेंगे, जहां नक्सलवादी चुनावी प्रक्रिया को बाधित करना चाहते थे लेकिन बुलेट पर छत्तीसगढ़ के लोगों ने जिस तरह से तमाचा जड़ा वह दिखाता है कि भारतीय लोकतंत्र सारी दुनिया में सबसे मजबूत है।

चुनावों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है और इसके सूत्रधार देश के लोग हैं। छत्तीसगढ़ का बीजापुर या दंतेवाड़ा या फिर बस्तर इलाका हो, नक्सली रह-रहकर बलास्ट करते रहे। ऐसा करके वे यह संदेश दे रहे थे कि लोग भय से वोट देने के लिए घरों से न निकलें। अगर ऐसा होता तो उनका काम बन जाता लेकिन सरकार ने विशेष रूप से मोदी सरकार के कर्मठ गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले चार साल से ही नक्सल प्रभावित इलाकों में ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि लोगों के दिल से भय को दूर कर दिया। उनकी दूरदर्शिता देखिए कि अर्ध सैन्य बलों के साथ-साथ राज्य की पुलिस को भी विश्वास में लेकर ऐसी योजना बनाई कि नक्सलियों को उनके इरादों में सफलता नहीं मिल पा रही है। इसी छत्तीसगढ़ में लोगों के दिलों में विश्वास बहाली की भावना पर नक्सली हमला करते थे। आदिवासी इलाकों में जब चाहे राजनीतिक सिस्टम खत्म करने के गंदे इरादे लेकर कभी पूरे कांग्रेसी नेतृत्व पर हमला किया गया था, जिसमें 50 से अधिक लोग मारे गए थे। इसके बाद सरकार ने ऐसी व्यूह रचना रची कि नक्सली बराबर सुरक्षाबलों के जाल में फंसकर या तो मारे जा रहे हैं या फिर सरेंडर कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ में निर्वाचन आयोग ने दो चरणों में वोटिंग की व्यवस्था की थी। पहला चरण, जो पिछले दिनों पूरा हुआ, के तहत 18 सीटों पर लगभग 75 प्रतिशत वोटिंग यह दिखाती है कि लोगों का लोकतंत्र में विश्वास है और वे ‘गनतंत्र’ में यकीन नहीं रखते। धमकियां देने वाले नक्सलियों के मुंह पर इससे बड़ा तमाचा और नहीं हो सकता था। हालांकि नक्सलियों के घात लगाकर किए गए ब्लास्ट में हमारे सीआरपीएफ और पुलिस के कई जवानों को यद्यपि शहादत देनी पड़ी परंतु राजनाथ सिंह जी ने लंबी अवधि का प्लान बनाकर सुरक्षा का एक ऐसा तंत्र स्थापित किया जिसमें राज्य के राजनीतिक नेतृत्व को भी विश्वास में लिया गया। प्रशासन और पुलिस की मिलीजुली व्यवस्था से नक्सलियों के मंसूबों पर पानी फिर रहा है। अगर नक्सलवाद की बात की जाए तो मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओिडशा, झारखंड, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल भी इससे अछूते नहीं रहे लेकिन यह भी तो सच है कि आतंकवाद चाहे इसे जम्मू-कश्मीर के पृथकतावादी फैलाएं या नक्सलवादी, इसका खात्मा तो होना ही चाहिए।

मोदी सरकार की ओर से श्री राजनाथ सिंह ने प्लान बनाया और इसे लागू किया तथा आज परिणाम सबके सामने है। हमारा मानना है कि नक्सली अब बौखला चुके हैं। लोगों ने खुलकर पहले चरण में वोट डाले हैं और अंतिम चरण में जब 20 तारीख को वोटिंग होगी तो उम्मीद की जानी चाहिए कि लोग पहले की तरह ही लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए पोलिंग बूथों तक पहुंचेंगे। हमारा यह भी मानना है कि पिछले पंचायत चुनावों में कश्मीर घाटी में जहां महज 5 और 10 प्रतिशत तक पोलिंग हुई वहां के लोगों को भी छत्तीसगढ़ के लोगों ने संदेश दिया है कि उन्हें भी अपने घरों से बूथों तक पहुंचकर जमकर वोट डालनी चाहिएं, ताकि आतंकवादियों को करारा जवाब मिल सके। लोकतंत्र में वोटतंत्र का महत्व है। खुद चुनाव आयोग अब वोटतंत्र को न केवल मजबूत कर रहा है बल्कि लोगों को वोट के लिए आधुनिक तरीकों से प्रेरित भी कर रहा है। समय की मांग भी यही है। भारत अगर दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है तो उसकी वजह लोगों की वह आजादी है, वह सोच है जिसके तहत देश के लोग अपनी मर्जी से कारपोरेशन, विधानसभा या फिर संसद का प्रतिनिधि खुद चुनते हैं। आने वाले दिनों में राजनीतिक दृष्टिकोण से छत्तीसगढ़ को एक उदाहरण मानकर पूरे देश में वोटिंग के प्रति उत्साह की लहर को प्रचारित करना चाहिए। लोकतंत्र की इसी ताकत के दम पर उन समाज विरोधी और राष्ट्र विरोधी ताकतों को नेस्तनाबूद किया जा सकता है जिनके गंदे इरादों को वोट से कुचला जा सकता है।

बुलेट का सही जवाब लोकतंत्र में ईवीएम ही हो सकता है। हमारा मानना है कि कभी इस देश में 50-55 प्रतिशत वोटिंग को बम्पर वोटिंग कहा जाता था, परंतु अब चुनाव आयोग ने जिस तरह से छत्तीसगढ़ का उदाहरण लोगों के इस हौंसले की वजह से प्रस्तुत किया है तो अब अगर यह आंकड़ा 75 प्रतिशत तक पहुंचता है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर चुनावी प्रक्रिया को बा​िधत करने की कोशिशें पहले भी होती रही हैं। पंजाब और जम्मू-कश्मीर इससे अलग नहीं हैं। इन राज्यों ने तो पूर्व में आतंकियों को झेला है परंतु देश में यह संदेश कभी नहीं जाना चाहिए कि कभी किसी चुनाव का बायकाट कर दिया जाए या फिर लोगों को वोटिंग से रोकने के लिए धमकियां दी जाएं। छत्तीसगढ़ लोकतंत्र की ताकत का एक बड़ा उदाहरण है, जो लोकतंत्र की सही ताकत को दर्शा रहा है। इसीलिए भारतीय लोकतंत्र को सैल्यूट किया जाना चाहिए।

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