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भारत-म्यांमार सम्बन्ध

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मेरे पिया गये रंगून,
वहां से किया है टेलीफून
अत्यन्त लोकप्रिय फिल्मी गीत में रंगून शब्द का इस्तेमाल इस बात का प्रतीक है कि भारत और म्यांमार के सम्बन्ध काफी प्राचीन हैं। समय के साथ-साथ बर्मा का नाम बदलकर म्यांमार कर दिया गया और राजधानी रंगून का नाम बदलकर यंगून कर दिया गया। भारत के लिए म्यांमार का महत्व बहुत ही स्पष्ट है। भारत और म्यांमार की सीमाएं आपस में लगती हैं जिसकी लम्बाई 1600 किलोमीटर से भी अधिक है तथा बंगाल की खाड़ी में एक समुद्री सीमा से भी दोनों देश जुड़े हुए हैं। दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच सेतु के रूप में म्यांमार ने भारत को आकर्षित किया है। भारत-म्यांमार सम्बन्धों के निर्माण के पीछे पांच बी हैं। ये पांच बी हैं-बौद्ध धर्म, बिजनेस यानी व्यापार, भरतनाट्यम, बॉलीवुड और बर्मा का टीक। 1937 तक तो बर्मा भी भारत का ही हिस्सा था और ब्रिटिश शासन के अधीन था। भारतीय स्वाधीनता की पहली संगठित लड़ाई का नेतृत्व करने वाले आखिरी मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को इसी देश में कैद में रखा गया और वहीं दफनाया गया था। बरसों बाद बाल गंगाधर तिलक को भी बर्मा की मांडले जेल में रखा गया था।

1951 की मैत्री संधि पर आधारित द्विपक्षीय सम्बन्ध समय की कसौटी पर खरे उतरे। 1987 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने म्यांमार की यात्रा कर दोनों देशों के बीच मजबूत सम्बन्धों की नींव रखी थी। 1988 में जुंटा द्वारा लोकतंत्र के आंदोलन के ङ्क्षहसक दमन के बाद सम्बन्धों में ठहराव आया। 1993 के बाद तो तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और फिर अटल बिहारी वाजपेयी ने म्यांमार से सम्बन्ध सुधारने के प्रयास किए। 2012 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन ङ्क्षसह ने म्यांमार की यात्रा की थी। इस दौरान दर्जनों करारों पर हस्ताक्षर किए गए थे। भारत ने म्यांमार को 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर के लिए एक नई लाइन ऑफ क्रेडिट प्रदान की थी। म्यांमार में राजनीतिक और आर्थिक सुधारों के बाद पिछले पांच वर्षों में भारत-म्यांमार सम्बन्धों में काफी उछाल आया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने सत्ता सम्भालते ही ‘पड़ोसी पहले’ की नीति अपनाई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक्ट ईस्ट नीति को लागू कर अमल में लाकर पड़ोसी देशों की यात्राएं कीं और सम्बन्धों के नए आयाम स्थापित किए।

1962 के भारत से युद्ध के बाद चीन ने म्यांमार में लगातार अपने हितों को बढ़ावा देना शुरू किया था जिसके चलते सैन्य सहयोग में वृद्धि हुई और बन्दरगाहों, नौसैनिक तथा खुफिया सुविधाओं और उद्योगों में चीन का प्रभाव बढ़ा। चीन ने वहां बन्दरगाह का निर्माण भी किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पड़ोसी देशों की अहमियत जानते हैं। उन्होंने हमेशा यह प्रयास किया कि नेपाल, म्यांमार, भूटान, श्रीलंका और बंगलादेश से भारत के सम्बन्ध मधुर रहें। असंतुलन को दूर करने के लिए ही प्रधानमंत्री मोदी ने म्यांमार के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का आधार तैयार किया है। पूर्व की सरकारों ने म्यांमार में सिट्ïटवे बन्दरगाह के विकास की योजनाओं के प्रति रुचि तो दिखाई लेकिन भारत उसे सही ढंग से क्रियान्वित ही नहीं कर सका। इसका कारण म्यांमार का सैनिक शासन भी रहा। लम्बे संघर्ष के बाद म्यांमार में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की सरकार आई। राष्ट्रपति तिन जॉ बने लेकिन नई सरकार की कमान असल में आंग सान सू की के हाथ में है। म्यांमार में उदारीकरण के बाद पश्चिमी देश और भारत वहां निवेश के अवसर ïखंगाल रहे हैं। अमेरिका, जापान और कुछ यूरोपीय देशों के विदेशमंत्री म्यांमार का दौरा कर चुके हैं। भारत के लिए यह जरूरी है कि म्यांमार से मित्रता बढ़ाई जाए।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने म्यांमार यात्रा के दौरान स्टेट काउंसलर आंग सान सू की से मुलाकात की। प्रधानमंत्री ने वहां चरमपंथी ङ्क्षहसा पर चिन्ता जताते हुए रोहिंग्या मुस्लिमों का मुद्दा भी उठाया, साथ ही यह संदेश भी दिया कि भारत उनकी समस्या के समाधान में हरसम्भव मदद को तैयार है। भारत और म्यांमार आतंकवाद और नशीले पदार्थों की तस्करी की चुनौती का सामना कर रहे हैं। सुरक्षा के मामले में भी हमारे हित एक जैसे हैं। प्रधानमंत्री ने भारत की जेलों में बन्द म्यांमार के 40 नागरिकों की रिहाई और साथ ही म्यांमार के नागरिकों के लिए मुफ्त वीजा देने की भी घोषणा की। भारत पहले से ही म्यांमार के रक्षा और सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के लिए प्रतिबद्ध है।

भारतीय सेना ने म्यांमार की सीमा में घुसकर आतंकियों को मार गिराया था जिन्होंने घात लगाकर 18 जवानों की हत्या की थी। इस कार्रवाई में म्यांमार की सरकार और सेना का भरपूर सहयोग मिला था। भारत म्यांमार के लिए बड़ा बाजार है। हर साल वह अरबों का सामान भारत को निर्यात करता है। अब जरूरत है कि वाणिज्य और व्यापार के लिए नए रास्ते तलाशे जाएं। भारत और म्यांमार सीमावर्ती इलाकों के लोगों का विकास करने के लिए बुनियादी ढांचे, सड़कों के निर्माण, स्कूलों और स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना, पुलों के निर्माण और कृषि सम्बन्धी प्रशिक्षण में सहयोग कर रहे हैं। दोनों देशों की मित्रता में मजबूती से ही म्यांमार की चीन पर निर्भरता कम होगी जो भारत के लिए सामरिक और रणनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है।

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