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इसमें कोई शक नहीं कि हमारे देश में महिलाओं और पुरुषों की बराबरी की बात की जाती है परंतु हकीकत में ऐसा दिखाई नहीं देता। महिलाएं अब जागरूक होने लगी हैं और देश में महिलाओं को विशेष रूप से गरीबी वाले इलाकों में या गांव में भी अब खुले में शौच जाने से मुक्ति मिल गई है। सरकार की ओर से खुले में शौच को खत्म करने का आह्वान सचमुच एक अभियान की तरह चलाया गया। इस दृष्टिकोण से मोदी सरकार बधाई की पात्र है। व्यक्तिगत तौर पर मैंने खुद करनाल और पानीपत में सैकड़ों ग्रामीण महिलाओं के मुंह से खुले में शौच से मुक्ति की बातें सुनी थीं और इस बारे में कई बार डिबेट पर भी चर्चा की। इस कड़ी में पिछले दिनों दिल्ली हाईकोर्ट की ओर से प्रस्तुत स्टैंड मुझे बहुत पसंद आया, जिसमें एक्टिंग चीफ जस्टिस गीता मित्तल ने यह कहा कि केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और अन्य सिविक बॉडीज यह देखें कि सार्वजनिक स्थलों पर क्या महिलाएं अपने नवजात शिशुओं को ब्रेस्ट फीडिंग (स्तनपान) करवा सकती हैं।

जस्टिस गीता मित्तल जी ने इसके साथ ही केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और एमसीडी को नोटिस जारी कर दिया कि आखिरकार सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं को ब्रेस्ट फीडिंग की सुविधा क्यों नहीं दी जा रही? वैसे यह एक कड़वा सच है कि महिलाओं को सुविधाओं के नाम पर बहुत कुछ हुआ। पर हकीकत यह भी है कि उनके तक पहुंचा नहीं या कइयों को मालूम ही नहीं। शिशु चाहे दो महीने का हो या 4 माह का या 6 महीने का, महिलाएं आज के जमाने में घर से बाहर तो निकलती ही हैं। बड़े घरों की महिलाएं अपने बच्चों को कार में ब्रेस्ट फीडिंग करा सकती हैं, परंतु जस्टिस गीता मित्तल ने कहा कि दिल्ली में एयर पोर्ट तक पर ब्रेस्ट फीडिंग कराने की जगह महिलाओं को नहीं दी जा रही। इस पर तीनों सरकारें अपना रुख स्पष्ट करें। हम इस मामले पर माननीय अदालत का आभार व्यक्त करते हैं और साथ ही सरकार से यह अपेक्षा करना चाहते हैं कि आखिरकार महिलाओं को ब्रेस्ट फीडिंग की सुविधा के लिए वह कब पग उठाएगी।

हाईकोर्ट ने इस मामले में तीनों सरकारों से चार हफ्ते में रिपोर्ट मांगी है। मैं इस मामले में एक और जमीनी हकीकत लोगों के बीच रखना चाहती हूं, वो यह कि एमसीडी द्वारा जो शौचालय हैं वहां इतनी गंदगी है और इतनी बदबू है कि महिलाएं वहां जा ही नहीं पातीं। ऐसी जनसुविधाओं का क्या फायदा? सरकारी अस्पतालों में प्रसूति वार्डों में अनेक बच्चों को चूहों द्वारा काटने की घटनाएं बड़ी आम हैं। सुविधाएं देने के साथ-साथ सुचारू संचालन रखना भी बड़ी बात है। हालांकि सरकार की ओर से महिला सशक्तिकरण जैसे बड़े-बड़े डिपार्टमेंट बने हुए हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर जो हकीकत मैंने आपके सामने रखी, उसे देखकर सरकार अगर कदम उठाती है तो सचमुच यह महिलाओं को पुरुषों की समानता में ला खड़ा करेगा। वैसे भी देश में महिलाओं को अनेक अपराधों का सामना करना पड़ता है और यौन अपराध जितना महिलाओं के साथ हुए हैं उसमें भारत के खिलाफ टिप्पणियां तक की जा चुकी हैं। ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान सचमुच महान है और इसकी जितनी तारीफ की जाए,

वह कम है लेकिन हम यह कहेंगे और चाहते हैं कि महिलाओं को इस संवेदनशील ब्रेस्ट फीडिंग के मामले में ज्यादा सुविधाओं की जरूरत है। खाली एयरपोर्ट पर ही क्यों रेलवे स्टेशन, बस अड्डे, अस्पताल या अन्य प्रमुख बाजारों में भी महिलओं को ब्रेस्ड फीडिंग की सुविधाएं मिलनी चाहिएं। सरकारों को यह काम खुद करना चाहिए, परंतु यह काम दिल्ली हाईकोर्ट की ओर से याद कराया गया, उसके लिए कोर्ट का शुक्रिया और सरकार से उम्मीद है कि वह इसे जल्दी अंजाम देगी। यही नहीं हमारे देश में दिव्यांगों के लिए भी विशेष सुविधा होनी चाहिए। चाहे ट्रेन, बसें, बाथरूम हों, होटल हों या स्कूल, सब जगह पर दिव्यांगों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। सरकार इस बारे में कोशिश कर रही है परन्तु अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है।

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