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नकारात्मकता नहीं जीत सकती

यह सच है कि दुनिया के किसी भी लोकतंत्र में आगे बढ़ने का सबसे सही तरीका मेलजोल ही है। आप मिलजुल कर आगे बढ़ सकते हैं।

यह सच है कि दुनिया के किसी भी लोकतंत्र में आगे बढ़ने का सबसे सही तरीका मेलजोल ही है। आप मिलजुल कर आगे बढ़ सकते हैं। भारतीय लोकतंत्र  की विशेषता ही यही है कि यहां समय-समय पर चुनावी गठजोड़ यानी की गठबंधन होते रहते हैं। क्योंकि हम सामने पड़े वक्त को देखकर इकट्ठे होते हैं इसीलिए जब विपक्ष ऐसी कोई पहल करता है और वह इसे गठबंधन का नाम देता है तो सत्तारूढ़ दल की ओर से इसे ठगबंधन का नाम दे दिया जाता है। 
जैसे इस समय देश में विशेष रूप से 2014 से लेकर 2019 तक और 2019 से आगे जो भी हालात बन रहे हैं इन सब में मोदी सरकार ने अपने आपको एक अलग पहचान दी है। देश के लोग उस पर भरोसा करते हैं। हमारा सवाल भी यही है कि भाजपा का गठबंधन एनडीए के नाम से है और लोग उस पर भरोसा कर रहे हैं जबकि कभी सत्ता में रहा कांग्रेस का यूपीए आजकल लोगों की पसंद से दूर  हो रहा है, तो इसकी वजह क्या है?
जो गठबंधन जीतता है वह नई-नई योजनाएं बनाता है लोगों का दिल जीतता है। जो हार जाता है अलग-अलग दलों के लोग बड़ी पार्टी को कोसते हैं तो फिर आपसी जंग होने लगती है और नकारात्मकता पैदा हो ही जाती है। 2019 के चुनावों में क्या हुआ क्या नहीं यह पूरा देश जानता है, लेकिन एक बात तो सबके सामने आ गई है कि कांग्रेस ही नहीं पूरा विपक्ष  नकारात्मकता पर केंद्रित रहा। जब तक विपक्ष नकारात्मक रहेगा या कांग्रेस नकारात्मक रवैया रखेगी उसका भविष्य नहीं संवरने वाला और धीरे-धीरे देश के नक्शे से वह गायब भी हो सकती है। 
सचमुच कांग्रेस के लिए यह बहुत ही गंभीर और बुरे स्वप्न जैसे हालात हैं। दरअसल विपक्ष को मिल कर भविष्य के लिए नीति बनानी होगी कि हमें सत्तारूढ़ पार्टी से कैसे लड़ना है। विपक्ष में रहकर हमले करना आसान होता है लेकिन अगर योग्यता न हो और लोगों का आप पर भरोसा भी न हो तो फिर आपकी बात नहीं बन सकती। दुर्भाग्य से कांग्रेस और विपक्ष के साथ यही हो रहा है। अब जबकि मोदी सरकार सत्ता में आ गई है तो यह स्वभाविक है कि लोकसभा के पहले सत्र की शुरुआत जब राष्ट्रपति के अभिभाषण से होती है तो सरकार अपनी भावी नीतियों  को सामने रखकर कुछ उम्मीदें रखेगी ही। राष्ट्रपति सरकार की उपलब्धियों का ही गुणगान करेंगे, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि इस अभिभाषण को लेकर धन्यवाद प्रस्ताव के प्रति आप सरकार पर गलत तरीके से हमला बोलें। 
कांग्रेस के लोकसभा में नेता अधीर रंजन चौधरी ने खुद पर नियंत्रण नहीं रखा और यह कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी रैलियों में हमेशा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी  को कई बार चोर कहा। उन्होंने कहा कि अगर सोनिया और राहुल चोर हैं तो वे लोकसभा में क्यों बैठे हैं। वह श्री मोदी को चुनौती दे रहे थे। हकीकत यह है कि खुद जब प्रधानमंत्री ने चौकीदार का नारा बुलंद किया था तो राफेल को लेकर राहुल गांधी ने उन्हें चोर कहा था। हकीकत सबके सामने है। इस चोर वाले बयान पर जोर वार-पलटवार हुए, कांग्रेस की लुटिया डूबने में इसका बड़ा हाथ रहा है। यह कांग्रेस की नकारात्मकता थी।
एक तरफ तो खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी लोकसभा चुनवों में कांग्रेस की हार को लेकर खुद अध्यक्ष पद छोड़ना चाहते हैं और दूसरी तरफ जिन चौधरी साहब को लोकसभा का नेता बनाया गया है उनकी नकारात्मकता भरी शैली को आप आक्रामक नहीं कह सकते इसीलिए जब प्रधानमंत्री के संबोधन की बारी आती है तो वो पलटवार से नहीं चूकते। यह मौका उन्हें खुद कांग्रेस ने दिया है। इशारों ही इशारों में पीएम ने कह दिया कि अगर अमेठी हार गई तो उसका मतलब यह तो नहीं कि हिंदुस्तान हार गया। कांग्रेस हारी तो इसका मतलब यह नहीं कि देश हार गया। 
मोदी ने कहा कि कांग्रेस ऐसी पार्टी है जो जीत पचा पाती है और ना हार स्वीकार करती है बल्कि अहंकार में जीती है। ईवीएम को दोष देकर आप सुप्रीम कोर्ट जाएं या कहीं और लेकिन लोकतंत्र को तो समझना ही चाहिए। पीएम मोदी ने यह सब बातें अधीर रंजन के जवाब में कहीं और हमारा यह मानना है कि उन्होंने नकारात्मकता का जवाब दिया है। एक और अहम बात यह है कि विपक्ष में सपा हो या बसपा गठबंधन बनाने और परिणाम आने के बाद इस गठबंधन की पोल खुल गई  है और यह बात प्रमाणित हो गई कि जब पीएम ने इस गठबंधन को ठगबंधन का नाम दिया था। 
अनेक नेता कांग्रेस को और उधर सपा-बसपा एक-दूसरे को कोष रहे हैं। साथ ही प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को भी वे कोसना नहीं भूलते। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने श्रीराम की जय को लेकर जो पंगेबाजी खड़ी की है वह खुद बेनकाब हो गई है। सब कुछ नकारात्मक जा रहा है। दिल्ली में कभी आम आदमी पार्टी से गठजोड़ की बातें और फिर अलग-अलग चुनाव लड़ना इसी तरह दक्षिण और पूर्वाेत्तर में कांग्रेस के साथ हुआ। कहने वाले कह रहे हैं कि बसपा ने तो उन्हें मुंह भी नहीं लगाया। एक ऐसी कांग्रेस जिसका गठन देश की आजादी को सामने रखकर किया गया हो आज एक-एक सीट को तरस रही है तो उसके बारे में विश्लेषक कहते हैं कि उसे नकारात्मकता की राजनीति से ऊपर उठना होगा। विपक्ष को भी विश्लेषक यही सलाह दे रहे हैं। 
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और पीएम मोदी के बारे में भी लोग यही कह रहे हैं कि वो नकारात्मकता नहीं करते बल्कि नकारात्मक चीजें करने वालों को जवाब देते हैं। कांग्रेस को विपक्ष को संभालना है तो एक हो जाना होगा। वरना उनका भविष्य खतरे में है। उनका वजूद डगमगा रहा है। अगर नकारात्मकता का दामन छोड़ दें और सकारात्मकता की ओर चलेंं  तो शायद कांग्रेस और विपक्ष आगे बढ़ सकता है। वरना मोदी को रोक पाना अब उनके बस की बात नहीं। इस जमीनी सच्चाई  को अब विपक्ष को समझ लेना होगा। 

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