भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह जमीन से उठ कर राजनीति के शिखर पर पहुंचे हैं अतः इस देश की व्यावहारिक जमीनी सच्चाई को समझने में उन्हें देर नहीं लगती। भारत में मौजूदा समय त्यौहारों का चल रहा है जो नवरात्र से प्रारंभ हो चुका है। अतः श्री मोदी ने देशवासियों को कोरोना संक्रमण से लापरवाही न बरतने की सख्त हिदायत अपने राष्ट्रीय सम्बोधन में दी। कुछ लोगों को आश्चर्य हो सकता है कि प्रधानमन्त्री को इस सामान्य दिखने वाले विषय पर बोलने की क्या जरूरत थी मगर हकीकत यह है कि भारतीयों के आचार-विचार को समझने वाले प्रधानमन्त्री को इस विषय पर बोलना इसलिए जरूरी लगा क्योंकि त्यौहारों के मौसम में लोग प्रायः बेपरवाह हो जाते हैं इसीलिए उन्होंने लोगों को सलाह दी कि वे खुशियां तो मनायें मगर सावधानी के साथ त्यौहारी मौसम में जरा भी लापरवाही की जरूरत इसलिए नहीं है क्योंकि कोरोना जैसा संक्रमण एेसे ही अवसरों पर अपने पैर पसारने में सुविधा महसूस करता है।
केरल आन्ध्र व कर्नाटक इसके उदाहरण हैं जहां ओणम पर्व की वजह से संक्रमित लोगों की संख्या में भारी इजाफा हो गया था, जबकि दूसरी तरफ इसका प्रकोप भारत में घटने की तरफ लग रहा है तो लोगों में लापरवाही भी पैर पसार सकती है। यह हकीकत है कि श्रीलंका जैसे देश में कोरोना बीमारी से मरने वालों की संख्या भारत की अपेक्षा दस गुनी कम है और पाकिस्तान व अफगानिस्तान के मुकाबले भारत में यह दुगनी है परन्तु इन देशों की तुलना भारत की विशाल आबादी से किसी तौर पर नहीं की जा सकती। यह ठीक उसी तरह है जिस तरह भारत के महाराष्ट्र राज्य में कोरोना का प्रकोप सर्वाधिक है और उत्तर पूर्वी राज्यों में बहुत कम है यह तुलना इसलिए तार्किक है क्योंकि ये सभी देश एक समय भारत का ही हिस्सा रहे हैं।
भारत की विशाल 130 करोड़ की आबादी को देखते हुए कुल संक्रमित लोगों की 76 लाख संख्या आधा प्रतिशत से कुछ ज्यादा ही बैठती है जबकि विकसित यूरोपीय देशों में उनकी आबादी के मुकाबले यह प्रतिशतता बहुत अधिक है। इसी प्रकार इस बीमारी से मरने वालों की भी भारत में संख्या .01 प्रतिशत से भी कम बैठती है। मगर दूसरी तरफ इस बीमारी के चंगुल में आने के बाद भला-चंगा होकर घर जाने वाली की संख्या अब लगभग 90 प्रतिशत के पास है। यह सब भारत के चिकित्सकों के प्रयास से ही संभव हो पाया है क्योंकि अभी तक इस बीमारी का टीका (वैक्सीन) नहीं निकला है इसीलिए प्रधानमन्त्री ने चेतावनी दी कि जब तक यह टीका नहीं आ जाता है तब तक सभी नागरिकों को बहुत सावधान होकर कामकाज करने की जरूरत है। नवरात्र (दुर्गा पूजा) का त्यौहार प. बंगाल व गुजरात में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है. यदि साफ तरीके से कहा जाये तो प. बंगाल का यह त्यौहार राष्ट्रीय त्यौहार है जो सभी धर्मों के लोग पूरे उत्साह से मनाते हैं। इसका प्रमाण यह है कि बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना वाजेद ने प. बंगाल की मुख्यमन्त्री ममता दी के लिए दुर्गा पूजा पर विशेष भेंट भेजी है।
दूसरी तरफ उत्तर भारत के सभी राज्यों में इन दिनों दशहरा पर्व मनाने से पहले रामलीलाओं का दौर शुरू हो जाता है वैसे इन राज्यों मे दुर्गा पूजा व डांडिया नृत्य के आयोजन भी पूरे जोश-खरोश से होते हैं। अतः इन सभी आयोजनों में इकट्ठा होने वाली भीड़ को देखते हुए ही प्रधानमन्त्री ने सलाह दी कि सभी लोग कोरोना से बचने के उपायों के प्रति लापरवाह न हो और मुंह पर मास्क व आपसी उचित दूरी अवश्य बनाये रखे। इसके साथ ही देवी मन्दिरों में भी नवरात्र पर भारी भीड़ रहती है। इसे देखते हुए पूजा स्थलों के प्रबन्धकों को ही एेसे उपाय करने चाहिए जिससे कोरोना आचार संहिता का पालन हो सके। प्रधानमन्त्री का इस मुद्दे पर राष्ट्रीय सम्बोधन इसीलिए सामयिक था क्योंकि कोरोना को परास्त करने के लिए भारत के लोगों ने अभी तक जो मेहनत की है वह कहीं इस त्यौहारी समय में बेकार न चली जाये इस तरफ हमारे न्यायालयों का भी ध्यान है इसीलिए उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि किसी भी बड़े पूजा पंडाल में अधिकतम 45 व्यक्तियों से अधिक लोग जमा न हों। कोरोना के मामले एक तथ्य स्पष्ट है कि जब तक इसकी असली काट वैक्सीन नहीं आ जाती तब तक इस बीमारी का डर बना ही रहेगा। यही वजह है कि विभिन्न राज्य सरकारें इस बारे में जरूरत से ज्यादा सावधानी बरत रही हैं और बच्चों के विद्यालय खोलने से गुरेज कर रही हैं हालांकि उत्तर प्रदेश व पंजाब राज्यों में 9वीं से लेकर 12वीं तक के विद्यार्थियों के लिए विद्यालय खोल दिये गये हैं। इस मामले में महाराष्ट्र सरकार का कोरोना की भयावहता को देखते हुए पूजा स्थलों को न खोलने का फैसला पूरी तरह सही व वैज्ञानिक है। मगर इसके समानान्तर हमें अपनी अर्थव्यवस्था को भी पटरी पर लाना है दैनिक श्रम करके करोडों लोगों की रोजी-रोटी को भी बहाल करना है अतः कोरोना के खौफ से कोई भी कामकाजी व्यक्ति अपने घर में दुबक कर नहीं बैठ सकता। सावधानी बरतते हुए उसे रोजी-रोटी का जुगाड़ करना ही होगा इस मामले में राज्य सरकारें अपने क्षेत्र की परिस्थितियों के अनुसार उपयुक्त कदम उठा रही हैं। उनके इस कार्य में सभी स्तरों पर सहयोग किया जाना चाहिए और इसमें राजनीति किसी भी सूरत में नहीं खेली जानी चाहिए। यह कार्य राजनीतिक दलों का है वे कम से कम कोरोना को अपनी बयानबाजी से बख्श दें। क्योंकि इसका मुकाबला आम आदमी को ही अन्ततः करना है और यही आदमी देश बनाता है, उसके दम से ही कोई भी देश विकास करता है, इसलिए जरूरी है कि राजनीतिक कार्यक्रमों में भी कोरोना आचार संहिता को माना जाए।